
Last Updated on 13/01/2022 by Sarvan Kumar
गोंड (Gond) भारत में पाया जाने वाला एक प्रमुख जातीय समुदाय है. इन्हें कोईतुर (Koitur) या गोंडी (Gondi) भी कहा जाता है. यह भारत के प्राचीनतम समुदायों में से एक है. यह कृषि, खेतिहर मजदूर, पशुपालन और पालकी ढोने का काम करते हैं.यह हिंदी,गोंडी, उड़िया, मराठी और स्थानीय भाषा बोलते हैं। गोंड्डों का प्रदेश गोंडवाना के नाम से प्रसिद्ध है, जहां 15 वीं और 17 वीं शताब्दी राजगोंड राजवंशों का शासन था। आइए जानते हैं गोंड समाज का इतिहास, गोंड शब्द की उत्पति कैसे हुई?
गोंड किस कैटेगरी में आते हैं?
आरक्षण व्यवस्था के अंतर्गत इन्हें आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगना, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribe, ST) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. यहां यह बता दें कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में ही इन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है, बाकी जिलों में इन्हें अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है.
गोंड जनसंख्या, कहां पाए जाते हैं?
यह मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, बिहार, कर्नाटक और झारखंड में पाए जाते हैं. पश्चिम बंगाल और गुजरात में भी इनकी थोड़ी बहुत आबादी है. उत्तर प्रदेश में यह जाति मुख्य रूप से सोनभद्र, मिर्जापुर, वाराणसी, चंदौली, जौनपुर, भदोही, आजमगढ़, गाजीपुर, मऊ, देवरिया, बलिया आदि जिलों में निवास करती है
गोंड किस धर्म को मानते है?
अधिकांश गोंड अभी भी प्रकृति पूजा की अपनी पुरानी परंपरा का पालन करते हैं. लेकिन भारत के अन्य जनजातियों की भांति उनके धर्म पर हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है. इनके मूल धर्म का नाम “कोया पुनेम” (Koyapunem) है, जिसका अर्थ होता है- “प्रकृति का मार्ग”. कुछ गोंड सरना धर्म का पालन भी करते हैं. कई गोंड आज भी हिंदू धर्म का का अनुसरण करते हैं और विष्णु तथा अन्य हिंदू देवी देवताओं की पूजा करते हैं. गोंड लोक परंपरा में बारादेव के नाम से जाने जाने वाले एक उच्च देवता की पूजा की जाती है. बारादेव को भगवान, बड़ा देव या कुपर लिंगो के नाम से भी जाना जाता हैं. दशहरा, पोला, फाग और पशु उत्सव इनके प्रमुख त्यौहार हैं. आइए जानते हैं
गोंड शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
गोंड शब्द की उत्पत्ति के बारे में कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है. संभवत यह शब्द बाहरी लोगों द्वारा इस जनजाति को संदर्भित करने के लिए प्रयोग किया जाता था. कुछ लोग मानते हैं कि इस शब्द की उत्पत्ति कोंडा शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है-पहाड़ी.
गोंड समाज का इतिहास
इनका इतिहास गौरवशाली है. गोंड्डों का प्रदेश गोंडवाना के नाम से प्रसिद्ध है, जहां 15 वीं और 17 वीं शताब्दी राजगोंड राजवंशों का शासन था. राजगोंड राजवंशों शासन मध्य भारत से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार तक फैला हुआ था. 15 वीं शताब्दी में चार महत्वपूर्ण गोंड साम्राज्य थे- खेरला, गढ़ मंडला, देवगढ़ और चांदागढ़. गोंड राजवंश के प्रसिद्ध शासकों में राजा बख्त बुलंद शाह और रानी दुर्गावती का नाम शामिल है.
गोंड समाज के प्रमुख व्यक्ति
कोमाराम भीम (22 अक्टूबर, 1901-8 अक्टूबर 1940): जनजातीय नेता और स्वतंत्रता सेनानी.
दलपत शाह: गोंडवाना राज्य के राजा और रानी दुर्गावती के पति
हृदय शाह: गोंडवाना राज्य के राजा
राजा चक्रधर सिंह बहादुर (19 अगस्त, 1950-7 अक्टूबर, 1947): रायगढ़ रियासत के राजा
वीर बाबुराव शेडमाके (12 मार्च 1833- 21 अक्टूबर 1858): स्वतंत्रता सेनानी
वीर नारायण सिंह (1795-1857): स्वतंत्रता सेनानी
गुंडा धुर: जनजातीय नेता और स्वतंत्रता सेनानी
मोतीरावण कंगाली (2 फरवरी 1949- 30 अक्टूबर 1915): भाषाविद् और लेखक
भज्जू सिंह श्याम (जन्म-1971): पदम श्री से सम्मानित कलाकार
जनगढ़ सिंह श्याम (1962-2001): कलाकार
वेंकट रमन सिंह श्याम (जन्म-28 अक्टूबर 1970): कलाकार
दुर्गाबाई व्योम (जन्म- 1973): कलाकार

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