
Last Updated on 04/11/2018 by Sarvan Kumar
जतीन्द्र नाथ दास का संक्षिप्त जीवन परिचय : जतीन्द्र नाथ दास का जन्म 1904 में कोलकाता के एक साधारण बंगाली परिवार में हुआ था.
बहुत कम उम्र में ही जतीन्द्र बंगाल के क्रांतिकारी दल अनुशीलन समिति में शामिल हो गये. 1921 में जतीन्द्र दास ने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर कर हिस्सा लिया और जेल भी गए.
नवंबर 1925 में जब जतीन्द्र दास बंगाबासी कॉलेज कोलकाता में B.A. के छात्र थे तो उन्हें राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने के कारण गिरफ्तार करके मयमनसिंह सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया.
जेल में राजनीतिक कैदियों के साथ काफी बुरा बर्ताव किया जाता था. इसके विरोध में जतीन्द्र नाथ ने जेल में भूख हड़ताल शुरू कर दिया. जतीन्द्र नाथ 20 दिनों तक जेल में भूख हड़ताल पर रहे जिसके बाद जेल प्रशासन ने जतीन्द्र नाथ के सामने घुटने टेक दिए और जेल सुपरिटेंडेंट ने जतीन्द्र नाथ से माफी मांग लिया, जिसके बाद जतीन्द्र नाथ ने अपना अनशन समाप्त कर दिया.
इस घटना के बाद जतीन्द्र नाथ एक क्रांतिकारी के रूप में जाने जाने लगे और देश भर के क्रांतिकारी जतीन्द्र नाथ से संपर्क साधने लगे.
भगत सिंह और उनके साथियों के अनुरोध पर जतीन्द्र नाथ उनके लिए बम बनाने के लिए राजी हो गए.
जतीन्द्र नाथ ने सचिन्द्र नाथ सान्याल से बम बनाने का तरीका सीखा था.14 जून 1929 को, जतीन्द्र नाथ क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के कारण गिरफ्तार कर लिये गये और लाहौर जेल में बंद कर दिये गये.
लाहौर जेल में जतीन्द्र नाथ का हंगर स्ट्राइक (भूख हड़ताल)
लाहौर जेल के हालात बहुत खराब थे. लाहौर जेल में क्रांतिकारियों ने देखा की जेल में
भारतीय कैदियों और यूरोप के कैदियों के साथ भेदभाव किया जाता है.
भारतीय कैदियों का यूनिफॉर्म कई-कई दिनों तक साफ नहीं किया जाता था.
रसोई घर के हालात और भी बुरे थे रसोई घर में चूहे और तिलचट्टों का बसेरा था जो कि खाने के चीजों को दूषित कर दिया करते थे.
यही दूषित किया हुआ असुरक्षित खाना भारतीय कैदियों को दिया जाता था.
भारतीय कैदियों को जेल में पढ़ने की सामग्री जैसे समाचार पत्र इत्यादि नहीं दिए जाते थे.
उन्हें लिखने के लिए पेपर भी नहीं दिया जाता था.
लेकिन उसी जेल में बंद अंग्रेज कैदियों की स्थिति इससे बिल्कुल अलग थी. भारतीय कैदियों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता था. उनके साथ मारपीट की जाती थी और उन्हें कई तरह के प्रताड़ना को झेलना पड़ता था.
यह देख कर भगत सिंह और बटुकेश्वर नाथ जैसे क्रांतिकारियों ने जेल में समानता के लिए भूख हड़ताल करने का फैसला किया. धीरे-धीरे लाहौर जेल में बंद दूसरे क्रांतिकारी भी भूख हड़ताल में शामिल हो गए.
भूख हड़ताल ने ले ली जतीन्द्र नाथ की जान
भगत सिंह और दूसरे क्रांतिकारियों ने जतीन्द्र नाथ को भी भूख हड़ताल में शामिल होने के लिए अनुरोध किया जतीन्द्र नाथ भूख हड़ताल के लिए राजी तो हो गए लेकिन साथ ही एक शर्त रख दी. जतीन्द्र नाथ ने शर्त रखा कि उन्हें बीच में भूख हड़ताल तोड़ने के लिए किसी तरह का दबाव दबाव नहीं डाला जाएगा उनके लिए इस अनशन का मतलब होगा- मृत्यु या विजय.
दूसरे क्रांतिकारी यह सुनकर थोड़े सकते में आ गए क्योंकि वो जानते थे जतिंद्रनाथ अपने वचन के पक्के हैं.
इससे पहले भी जतीन्द्र नाथ मयमनसिंह सेंट्रल जेल में 20 दिनों तक भूख हड़ताल कर चुके थे और उनके सामने जेल प्रशासन को घुटने टेकना पड़ा था.
जतीन्द्र नाथ ने विजय या मृत्यु का संकल्प लेकर लाहौर सेंट्रल जेल में अन्य क्रांतिकारियों के साथ भूख हड़ताल शुरू कर दिया.
जतीन्द्र नाथ दास ने लाहौर सेंट्रल जेल में भूख हड़ताल की शुरुआत की थी वह दिन था 13 जुलाई 1929. उनका भूख हड़ताल 63 दिनों तक चला. जेल प्रशासन ने कई बार जतीन्द्र नाथ को जबरदस्ती खाना खिलाने की कोशिश किया लेकिन सारे प्रयास असफल रहे.
मामले की गंभीरता को देखते हुए जेल प्रशासन ने जतीन्द्र नाथ को बिना शर्त छोड़े जाने कि सिफारिश किया जिसे सरकार ने मना कर दिया. हालांकि सरकार ने उन्हें बेल पर छोड़ने का ऑफर दिया.
लेकिन जतीन्द्र दास पीछे हटने वालों में नहीं थे. उन्होंने तो मृत्यु या विजय का संकल्प लिया था जिस पर वो अंत तक अडिग रहे. भूख हड़ताल के 63 वें दिन जतीन्द्र दास ने 13 सितंबर 1929 को अपने प्राण त्याग दिए.
उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए लाहौर सेंट्रल जेल से कोलकाता लाया गया यहां तक का सफर दुर्गा भाभी के नेतृत्व में पूरा किया गया .
सुभाष चंद्र बोस पार्थिव शरीर को लेने आए थे
जब जतीन्द्र नाथ दास का पार्थिव शरीर हावड़ा रेलवे स्टेशन पहुंचा तो लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई. हावड़ा रेलवे स्टेशन पर उनके पार्थिव शरीर को लेने आए थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस. हावड़ा रेलवे स्टेशन से शमशान भूमि के 2 मील का सफर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में पूरा किया गया.
जतीन्द्र नाथ दास के मृत्यु पर वायसराय ने लंदन सूचना भेजा. संदेश में कहा गया, ‘ भूख हड़ताल के कारण 13 सितंबर 1929 , 1:00 बजे दोपहर जतीन्द्र नाथ दास की मृत्यु हो गई है. पिछली रात पांच अन्य क्रांतिकारियों ने भूख हड़ताल खत्म कर दिया है. अब केवल भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ही भूख हड़ताल पर हैं.
जतीन्द्र नाथ दास के मृत्यु पर जवाहरलाल नेहरू ने कहा,’भारतीय शहीदों के लंबे और उत्कृष्ट श्रृंखला में आज एक और नाम जुड़ गया. हम सब इनके सामने सर झुकाकर प्रार्थना करें कि हमें इस संघर्ष को आगे ले जाने की शक्ति मिले. हालांकि यह संघर्ष लंबा है लेकिन जो भी हो हम तब तक संघर्ष करें जब तक हम विजयी ना हो जायें.
सुभाष चंद्र बोस ने जतीन्द्र नाथ दास को “भारत के युवा दधची” के रूप में वर्णित किया. दधची एक प्रसिद्ध थे जिन्होंने राक्षस को मारने के लिए अपना जीवन त्याग दिया था.
जतीन्द्र नाथ दास का संक्षिप्त जीवन परिचय पढ़कर अगर आपके मन में भी देशभक्ति की भावना जगी हो तो इसे share जरूर करे।

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