
Last Updated on 04/12/2018 by Sarvan Kumar
सामा -चकेवा त्यौहार। उत्तर भारतीय और खासकर बिहार के लोगोंं के लिए कार्तिक (नवंबर) का महीना ढेर सारी खुशियां लेकर आता है.पहले दिवाली, फिर छठ पूजा और फिर मैथिल भाषी लोगों का अनोखा पर्व सामा चकेवा। कार्तिक महीने में यहां के लोगों का जीवन आनंदमय हो जाता है। भाई- बहन के बीच घनिष्ठ प्रेम को दर्शाता है सामा-चकेवा। भारत में ऐसे कई त्योहार हैं जो भाई- बहन के प्यार को दर्शाते हैं।
क्यों मनाते हैं सामा- चकेवा?
सामा चकेवा के पीछे की कहानी महाभारत काल की है। भगवान कृष्ण की पुत्री थी जिसका नाम था सामा। सामा काफी सुन्दर थी और साथ में काफ़ी धार्मिक भी थी। कुछ लोग सामा से जलन करते थे। उन लोगों ने सामा पर अवैध संबंध का गलत आरोप लगा दिया।भगवान कृष्ण ,जो सामा के पिता थे, गुस्से में आकर सामा को पत्थर बना देते हैं। ये बात जब सामा के पति को पता चलता है तो वे भगवान कृष्ण को समझाते हैं ।सामा के पक्ष लेेेेने के कारण कृष्ण उन्हे पंछी बना देते हैं। चकेवा जो सामा काा भाई था वो बहुत उदास हो जाता है। वेे कृष्ण को विनति करते हैं कि वे सामा और उसके पति को असली रूप में ला दे। चकेवा समझाता है की उसकी बहन ऐसी नहीं थी। भगवान कृष्ण को भी बाद मे गलती का एहसास होता है। फिर भगवान कृष्ण एक उपाय बताातें है। अगर पारण (छठ पूजा की उषा अर्घ्य) से अगले आठ दिन तक सामा की मूर्ति की पुजा कर नदी में विसर्जित करेेेगा तो सामा असली रूप में आ जायेेेगी। चकेवा अपने त्याग -तपस्या से अपनी बहन को फिर से मनुष्य बना देता है।

चुगला कौन है?
सामा चकेवा त्यौहार में एक और किरदार है जिसका नाम है चुगला।चुगला को खलनायक दिखाया जाता है। दरअसल चुगला वही किरदार था जिसने भगवान कृष्ण के कान भरे थे। जिस की बातों में आकर भगवान कृष्ण ने अपनी पुत्री सामा को पत्थर बन जाने का शाप दे दिया था। चुगला आज भी ऐसे आदमी को कहा जाता है जो चुगलखोरी करता है। यानी जो झूठे कहानी बनाकर इधर से उधर बात कर लोगों को बदनाम करता है।
सामा चकेवा का पर्व कैसे मनाते हैं?
8 दिन तक चलने वाले इस पर्व में महिलाएं सामा चकेवा खेलती हैं। बांस की बनी टोकरियों में मिट्टी की बनी सामा चकेवा की छोटी मूर्तियां रखी जाती है। महिलाएं अपने सखियों की टोली बनाकर मैथिली लोकगीत गाती हैं। टोली बनाकर महिलाएं सड़क पर दूर निकल जाती हैं।अंत में चुगला का मुंह जलाया जाता है।
दी जाती है सामा चकेवा को अंतिम विदाई?
8 दिन तक मैथिली लोकगीत गाते हुए सामा को दी जाती है अश्रुपूर्ण विदाई।अंतिम दिन बहन अपने भाई को नई धान के फसल से बनाया चूड़ा और दही खिलाती है। सामा अभी अपने मायके में हैं और उसे ससुराल भेजना होता है। केले के तने से डोली बनाई जाती है।रंग-बिरंगे फूलों से डोली को सजाया जाता है। जिस तरह बेटी के विदाई के समय बर्तन , अन्न, धन फर्नीचर देने का रिवाज है। सामा को भी सांकेतिक रूप से मिट्टी से बनी हुई यह सारी चीजें दी जाती है। गीत गाते हुए महिलाएं सामा चकेवा को पास के तालाब, पोखर , नदी इत्यादि में विसर्जित कर देती हैं।इस तरह से सामा-चकेवा का पर्व संपन्न हो जाता है।

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