Ranjeet Bhartiya 25/06/2022
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Last Updated on 17/07/2022 by Sarvan Kumar

शारीरिक रूप से बलिष्ठ, मेहनतकश और पहलवानी के शौकीन अहीरों (यादवों) के बारे में कहा जाता है कि इनकी बुद्धि मोटी होती है. लेकिन क्या सच में इनकी बुद्धि मोटी होती है? अहीरों और सरदारों के बारे में एक कहावत प्रचलित है कि इनकी बुद्धि 12:00 बजे आती है या 12:00 बजे खुलती है. इस बात को लेकर सरदारों और अहीरों को चिढ़ाया जाता है और उनका मजाक बनाया जाता है. यहां स्पष्ट कर दें कि ना तो अहीरों की बुद्धि मोटी होती है, ना हीं इनकी बुद्धि केवल 12:00 बजे के बाद खुलती है. इसके पीछे की हकीकत जानने के बाद मजाक उड़ाने वालें खुद पर शर्म महसूस करेंगे और अहीरों और सरदारों के सम्मान में अपना सिर झुकायेंगे. आइए जानते हैं इस बात के पीछे क्या रहस्य है.

अहीर को बुद्धि कब आती है?

अहीर की बुद्धि 12:00 बजे सुधरेगी या अहीरों को बुद्धि 12:00 बजे आती है, इसके संबंध में कई प्रसंग कहे जाते हैं. जिसके बारे में विस्तार से नीचे बताया गया है-

(1). ऐसी मान्यता है कि यादवों की उत्पत्ति पौराणिक राजा ययाति के पुत्र यदु से हुई है. जब महाराज ययाति का विवाह हो रहा था तो बारात सज-धज कर तैयार हुई. महाराज ययाति के मन में विचार आया कि बारात उस समय निकाली जाए जब किसी को किसी प्रकार प्रकार का असुविधा और नुकसान ना हो. उन्होंने सोचा कि 12:00 बजे इतनी गर्मी होती है कि जीव-जंतु, कीड़े-मकोड़े, चीटियां आदि अंदर चले जाएंगे और इस प्रकार से किसी जीव का प्राण नहीं जाएगा. इसीलिए वह 12:00 बजे बारात लेकर निकले. तभी से यह कहा जाने लगा कि अहीरों को बुद्धि 12:00 बजे आती है.

(2). जब भगवान कृष्ण मथुरा के जेल में प्रकट हुए तब भादो की काली रात थी, आसमान में गहरे बादल लगे हुए थे और बारिश हो रही थी. कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में, कृष्ण पक्ष में, अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र के दिन रात के 12:00 बजे हुआ था.

(3). एक तीसरी किवदंती के अनुसार, पांचाल नरेश द्रुपद अपनी पुत्री द्रोपदी का विवाह एक ऐसे योद्धा से करना चाहते थे जो कि द्रोणाचार्य को हरा सके ताकि वह द्रोणाचार्य से अपने अपमान का बदला ले सकें. इसीलिए महाराज द्रुपद द्रोपदी का विवाह यदुकुल शिरोमणि श्री कृष्ण से करना चाहते थे. श्री कृष्ण किसी के व्यक्तिगत प्रतिशोध का मोहरा नहीं बनना चाहते थे इसीलिए उन्होंने विनम्रता पूर्वक विवाह के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया. फिर महाराज द्रुपद ने द्रौपदी का स्वयंवर रचाया, जिसके लिए देश-विदेश के राजाओं और राजकुमारों को न्योता भेजा गया. जब इस स्वयंवर में अर्जुन ने मछली के आंख को भेदा, उस समय दिन के 12:00 बज रहे थे.

(4). मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला एक कमजोर, लापरवाह अय्याश शासक था. शासन-प्रशासन पर उसकी पकड़ बहुत ढीली हो गई थी. इसका फायदा उठाकर पंजाब में सिखों, राजपूताना में राजपूतों और दक्षिण तथा मध्य भारत में मराठों ने अपनी स्थिति काफी मजबूत कर ली थी. कमजोर और ढहते मुगल साम्राज्य पर लुटेरा और फ़ारस (वर्तमान ईरान) के बादशाह नादिर शाह ने 1739 में आक्रमण कर दिया. वह पंजाब प्रांत को जीतता और लूटता हुआ दिल्ली तक आ गया. यहां 24 फरवरी 1739 को नादिर शाह और मोहम्मद शाह रंगीला के फौज के बीच एक निर्णायक लड़ाई हुई जिसे करनाल की लड़ाई (Battle of Karnal) के नाम से जाना जाता है. इस ऐतिहासिक युद्ध में यादव योद्धाओं ने भाग लिया था. अहीरवाल की तलवारे फिर जोश में चमक उठी. इसी युद्ध में वीर अहीर योद्धा बालकिशन लुटेरा मुस्लिम आक्रांता नादिर शाह के खिलाफ मुगलों की तरफ से बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे. नादिर शाह सैन्य शक्ति में काफी मजबूत था. नादिर शाह की सेना ने मोहम्मद शाह की सेना को केवल 3 घंटे के अंदर हरा दिया. मुहम्मद शाह ने आत्मसमर्पण कर दिया. नादिर शाह दिल्ली में प्रवेश कर गया. वह कई दोनों तक दिल्ली को लूटता रहा और कत्लेआम मचाता रहा. हजारों निर्दोष मारे गए. कत्लेआम का यह आलम था कि दिल्ली की सड़कें लाशों से ढक गईं. महिलाओं को प्रताड़ित किया गया और उनकी इज्जत लूटी गई. कई महिलाओं को पकड़कर कैद कर लिया गया. इसके बाद नादिर शाह ने लूटे हुए धन के साथ वापस सुरक्षित अपने वतन लौटने की योजना बनाया. जब यह बात सिखों को पता चली तो वह एकत्रित हुए. उन्होंने आपस में विचार-विमर्श किया. जब उन्हें पता चला कि नादिर शाह अपने साथ स्त्रियों को भी ले जाने की योजना बना रहा है तो उनका खून खौल गया. उन्होंने कहा कि लुटेरे तो धन ले ही जाते हैं, उसकी परवाह नहीं, लेकिन यह बात आत्मसम्मान की है. लूटेरा नादिर शाह हमारी बहू-बेटियों को भेड़-बकरियों की तरह अपने साथ ले जा रहा है. उन्होंने सामूहिक रूप से शपथ लिया कि हम अपने प्राणों का बलिदान देकर की भी अपने बहू-बेटियों को नादिरशाह के चंगुल से मुक्त कराएंगे. इसके लिए उन लोगों ने एक रणनीति बनाई. इस रणनीति के तहत उन्होंने तय किया कि नादिर शाह के खिलाफ छापामार युद्ध किया जाएगा और रात 12:00 बजे छोटी-छोटी टुकड़ियों के द्वारा कई तरफ से आक्रमण किया जाएगा. इस रणनीति के तहत सिख, जाट और अहीर योद्धा जब 12:00 बजता था तो एक व्यक्ति जोर से कहता था – “12:00 बज गए”. उसकी आवाज सुनकर दूसरा व्यक्ति भी जोर से आवाज देता था- “12:00 बज गए”. इस तरह से “12:00 बज गए” का उद्घोष 10:15 मिनट के अंदर सभी रणबांकुरों तक पहुंच जाता था. फिर छापामार गुरिल्ला युद्ध करके महिलाओं को नादिरशाह के कैद से छुड़ा लिया जाता था. तभी से यह कहावत प्रचलित है कि सरदारों और यादवों की बुद्धि 12:00 बजे खुलती है.

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