
Last Updated on 17/12/2021 by Sarvan Kumar
अरोड़ा (Arora) भारतीय उपमहाद्वीप के सिंध और पंजाब क्षेत्र में पाया जाने वाला एक इंडो आर्यन समुदाय है. इन्हें क्षत्रिय या वैश्य वर्ण का माना जाता है. सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से यह एक अगड़ी जाति है. सरकारी और निजी क्षेत्रों में इनका अच्छा प्रतिनिधित्व है. वर्तमान में यह आर्थिक रूप से संपन्न हैं और अपने परंपरागत कार्य धन उधार देने और दुकानदारी पर निर्भर नहीं है. डॉक्टर, इंजीनियर और प्रशासक के रूप में इनकी सफेदपोश नौकरियों (white collar jobs) में मजबूत उपस्थिति है. बिजनेस के क्षेत्र में भी इस समाज की प्रभावशाली उपस्थिति है. आरक्षण प्रणाली के अंतर्गत इन्हें सामान्य वर्ग (General Category) में शामिल किया गया है. आइए जानते हैं अरोड़ा समुदाय का इतिहास, अरोड़ा शब्द की उत्पति कैसे हुई?
अरोड़ा कहां पाए जाते हैं?
यह मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, जम्मू, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात तथा देश के अन्य हिस्सों में निवास करते हैं.
धर्म और भाषा
धर्म से यह हिंदू और सिख हैं. धर्म के आधार पर अरोड़ा दो मुख्य उप समूहों में विभाजित हैं-हिंदू अरोड़ा और सिख अरोड़ा. अधिकांश अरोड़ा हिंदू धर्म को मानते हैं. हिंदू और सिख अरोड़ा के बीच विवाह संबंध आम है.यह पंजाबी, हिंदी और हिंदी भाषा बोलते हैं.
अरोड़ा जाति की उत्पत्ति कैसे हुई?
अरोड़ा शब्द की उत्पत्ति इनके मूल निवास स्थान “अरोर” से हुई है. अरोर पाकिस्तान के सिंध प्रांत के सुक्कर जिले में स्थित एक शहर है, जिसे वर्तमान में रोहरी के नाम से जाना जाता है. इनकी उत्पत्ति खत्री से हुई है. यह खत्रियों की एक उपजाति है. ऐसी मान्यता है कि खत्री , लाहौर और मुल्तान के खत्री हैं, जबकि अरोड़ा पाकिस्तान के आरोर, यानी कि आधुनिक रोहरी और सुक्कर (सिंध) के खत्री हैं. ऐतिहासिक रूप से, यह समुदाय मुख्य रूप से पश्चिमी पंजाब में लाहौर के दक्षिण और पश्चिम जिलों में पाया जाता था. भारत विभाजन के बाद, पंजाब से जिन पंजाबियों का पलायन हुआ, उसमें से अधिकांश खत्री और अरोड़ा थे. ऐसा प्रतीत होता है कि महाराजा रणजीत सिंह के समय या उससे पहले अरोड़ा लाहौर, और मुल्तान से आकर अमृतसर में बस गए. अध्ययनों से पता चलता है कि अरोड़ा, खत्री, बेदी, अहलूवालिया आदि पंजाबियों की कुछ महत्वपूर्ण जातियां है.मुगल काल के दौरान, 18 वीं शताब्दी में, अफगानिस्तान, मध्य एशिया और भारत के बीच व्यापार का माध्यम था. अफगानिस्तान में हिंदू पंजाबी खत्री और अरोड़ा व्यापारियों द्वारा अनाज का व्यापार किया जाता था. अंग्रेजों के शासन से पहले, अरोड़ा समुदाय पंजाब की तीन प्रमुख धन उधार देने वाली जातियों में से एक थे. 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान, पंजाब में अरोड़ा सिख समुदाय दुकानदारी और छोटे व्यवसाय करने लगे. पंजाब के कुछ भागों में इनकी आबादी इतनी बढ़ गई कि उन्हें अपने पारंपरिक व्यवसाय से बाहर रोजगार तलाश करनी पड़ती थी. ऐसे में यह दुकानदार, मुनीम, अकाउंटेंट और साहूकार के रूप में काम करने लगे. इनमें से कुछ इमारती लकड़ी के व्यापार में शामिल हो गए. इन सब गतिविधियों से इन्होंने पूर्वी पंजाब में अपना प्रभुत्व बना लिया.

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