Ranjeet Bhartiya 02/02/2023
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Last Updated on 13/03/2023 by Sarvan Kumar

क्षत्रियों का इतिहास शौर्य, वीरता, त्याग और बलिदान की गाथाओं से भरा पड़ा है. प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक क्षत्रियों ने सदैव दूसरों की रक्षा का कार्य किया है. इतिहास गवाह है कि जरूरत पड़ने पर क्षत्रियों ने अपना सर्वस्व निछावर कर दिया और अपने प्राणों की आहुति देकर मातृभूमि, भारतीय संस्कृति और धर्म की रक्षा की. भारत में क्षत्रिय समाज की कई शाखाएँ हैं. आइए इसी क्रम में जानते हैं भारशिव क्षत्रिय के बारे में.

भारशिव क्षत्रिय

भारशिव क्षत्रिय (Bharashiv Kshatriya) क्षत्रियों की एक प्राचीन शाखा है. उत्तर भारत और मध्य भारत के एक बड़े क्षेत्र पर कभी भारशिव क्षत्रियों का शासन था. इतिहासकारों का मानना है कि भारतीय राजवंश उस समय के सबसे शक्तिशाली राजवंशों में से एक था. वैदिक काल में यह समुदाय राजभर उपनाम से प्रचलित हुआ. भारशिव क्षत्रियों के बारे में विभिन्न ग्रंथों, ऐतिहासिक दस्तावेजों तथा अन्य स्रोतों में निम्नलिखित बातों का उल्लेख मिलता है-

•भारशिव भारत के प्राचीन क्षत्रिय थे. इनका संबंध क्षत्रियों के उस उप-कबीले से था जो शिव के उपासक थे. भारशिव नागवंशीय क्षत्रिय थे.

•भर/राजभर साम्राज्य नामक पुस्तक के लेखक एम.बी. राजभर के अनुसार ऋग वैदिक काल में भर जनजाति को भरत जनजाति के रूप में जाना जाता था. एम.बी. राजभर यह भी लिखते हैं कि ‘भर’ शब्द की उत्पत्ति भरत से हुई है जिसका वर्णन ऋग्वेद में कई बार आया है. महाभारत युद्ध के बाद भरत राजा कमजोर हो गए और आक्रमणकारियों ने आक्रमण करना शुरू कर दिया.

•’भारशिव वंश’ की स्थापना 150 से 234 की अवधि के दौरान हुई थी. इस वंश के शासकों ने भारतीय इतिहास के ‘अंधकार युग’ के दौरान उत्तर भारत और मध्य भारत के बड़े हिस्से पर शासन किया. पद्मावती और मथुरा में उनकी राजधानी थी.

•गुप्त शासकों के आगमन से पूर्व तथा कुषाण राजाओं के बाद भारशिव वंश के राजाओं के शासन का ज्ञान मिलता है.

•जब कुषाणों ने वाराणसी और आसपास के क्षेत्रों पर हमला किया और कब्जा कर लिया, तो वाराणसी के शासक ने पद्मावती के शक्तिशाली भारशिव शासकों से मदद मांगी. भारशिव योद्धाओं ने कुषाणों को गंगा की भूमि से बाहर खदेड़ दिया. अपनी जीत के बाद, उन्होंने पवित्र गंगा में स्नान किया और अश्वमेध यज्ञ किया. बता दें कि अश्वमेध यज्ञ प्राचीन काल में शक्तिशाली क्षत्रिय शासकों द्वारा अपनी शक्ति और प्रभाव का प्रदर्शन करने के उद्देश्य से किया जाता था.

•भारशिव नामकरण का कारण यह प्रतीत होता है कि वे अपने साथ शिवलिंग लिये रहते थे. सम्भवतः उसी के भार वाहन करने के कारण ये भारशिव कहलाये होंगे.

•नाग क्षत्रिय शिव के पुजारी थे और अपनी पीठ पर वे शिवलिंग धारण करते थे. इसीलिए इन्हें ‘भारशिव नाग’ भी कहा जाता था.

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