Ranjeet Bhartiya 30/10/2021

Last Updated on 16/01/2022 by Sarvan Kumar

राजभर दक्षिण एशिया का मूल निवासी समुदाय है. इन्हें विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे राजभर (Rajbhar), भर (Bhar), भार, भरत, भारत (Bharat), भरपटवा (Bharpatwa). अधिकांश राजभर भारत के उत्तरी और पूर्वी राज्यों में फैले हुए हैं. भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में यह एक बड़ा समुदाय है. भारत के पड़ोसी देशों, बांग्लादेश और नेपाल में भी इनकी एक छोटी आबादी है. यह जाति उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, बिहार, और भारत के अन्य राज्यों में निवास करती है.  पूर्वी उत्तर प्रदेश के आजमगढ़, मऊ, जौनपुर, गाजीपुर, गोंडा, गोरखपुर, वाराणसी, अंबेडकर नगरअयोध्या जिलों में इनकी बहुतायत आबादी है. इस जाति को नाविको या मल्लाहों की एक उपजाति के रूप में भी संदर्भित किया जाता है. वर्तमान में इस समुदाय की स्थिति जो भी हो, लेकिन इनका इतिहास स्वर्णिम और गौरवशाली है. ऐतिहासिक रूप से यह उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र, गंगा नदी के दोनों किनारे बनारस और इलाहाबाद के बीच, में बहुत शक्तिशाली थे. कभी पूरा इलाहाबाद जिला इनके नियंत्रण में था. इनके किले को भर-डीह कहा जाता है, जिनमें से कुछ बहुत विशाल आकार के थे. आज भी मिर्जापुर, जौनपुर, आजमगढ़, गाजीपुर, गोरखपुर और अवध क्षेत्र में पाए जाने वाले किलों के अवशेष राजभर जाति के समृद्ध और गौरवशाली इतिहास की गवाही देते हैं.आइए जानते हैं  राजभर जाति का इतिहास,  राजभर शब्द की उत्पति  कैैसे हुई?

राजभर शब्द की उत्पति कैसे हुई?

प्राचीन काल में इनकी गिनती सभ्य, उच्च और श्रेष्ठ जातियों में की जाती थी. आज से लगभग 2000 साल पहले भारतवर्ष के पुण्य धरा पर इनका शासन था. इस जाति में कई प्रतापी, शूरवीर और पराक्रमी राजाओं ने जन्म लिया है. जब शक (Saka) और हूण (Huns) जनजातियों ने उत्तर भारत पर आक्रमण करना शुरू किया, तो उनका सामना करने का हिम्मत किसी में नहीं था. ऐसे विकट और प्रतिकूल समय में राजभर जाति के लोग सामने आए. उन्होंने विदेशी आक्रांताओं को देश की सीमा से बाहर निकालने का भार अपने ऊपर लिया और अपने साहस, बाहुबल और पराक्रम के दम पर उन्हें सफलता पूर्वक देश के बाहर खदेड़ दिया. इस तरह से उन्होंने दुनिया के सामने अपने साहस, वीरता और पराक्रम का लोहा मनवाया. “विदेशी आक्रांताओं को देश की सीमा से बाहर खदेड़ने का भार ग्रहण करने”  के कारण इस समुदाय के लोग “राजभर या भर” के नाम से विख्यात हुए.

भारत का नाम ‘भर’ जाति पर?

राहुल सांकृत्यायन (9 अप्रैल 1893 – 14 अप्रैल 1963) जिन्हें महापंडित की उपाधि दी जाती है हिंदी के एक प्रमुख साहित्यकार थे. राहुल सांकृत्यायन के किताब ‘सतमी के बच्चे’ के अनुसार ‘भर’ भारत की एक प्राचीन जाति है, जब आर्य करीब 2000 साल पहले भारत आए तो उसके पहले भर जाति का ही साम्राज्य था. यह जाति सभ्यता के उच्च शिखर पर पहुंच चुकी थी जिसने हजारों राजमहल और सुदृढ़ नगर बसाए थे। वह जहाज से समुद्र में दूर-दूर तक यात्रा करते थे. उनका कहना है कि भारत का नाम भर जाति से ही आया है आर्यों से पराजित होने के बाद वह पश्चिम से पूर्व की ओर हटने लगे. सिंधु सभ्यता के इस सभ्य जाति की एक शाखा उत्तर प्रदेश और बिहार में जब जाकर बसे और भर नाम से प्रसिद्ध हुए।

राजभर जाति का इतिहास

इनका इतिहास गौरवशाली रहा है. मध्यकालीन भारत में इन्होंने खुद के छोटे-छोटे कबीलों को स्थापित किया था. पूर्वी उत्तर प्रदेश में इनके छोटे-छोटे राज्य हुआ करते थे. लेकिन उत्तर मध्य काल में राजपूतों और मुगलों ने उन्हें वहां से विस्थापित कर दिया था. भर जाति के अंतिम राजा को जौनपुर के सुल्तान इब्राहिम शाह शार्की ने मारा था. आर्य समाज आंदोलन से प्रभावित होकर, बैजनाथ प्रसाद अध्यापक ने 1940 में “राजभर जाति का इतिहास” नामक एक पुस्तक को प्रकाशित किया‌ था. इस पुस्तक में यह साबित करने का प्रयास किया गया था कि राजभर पहले शासक थे और इनका संबंध प्राचीन भर जनजाति से है.

सोमनाथ मंदिर ध्वस्त किये जाने का प्रतिशोध

जब भी मातृभूमि और धर्म की रक्षा की बात आई, राजभर समुदाय के लोग अग्रिम पंक्ति में खड़े नजर आए. साल 1026 में गजनी के महमूद ने सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया और भगवान शिव की मूर्ति को तोड़ दिया. इस हमले में गजनवी ने सोमनाथ मंदिर की संपत्ति को लूट लिया और हमले में हजारों लोग भी मारे गए थे. कहा जाता है कि सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी ने महमूद ग़ज़नवी को सोमनाथ मंदिर में प्रसिद्ध मूर्ति को ध्वस्त करने के लिए राजी किया था. जब श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव को यह बात पता चली तो उन्होंने प्रतिशोध लेने का संकल्प किया. 11वीं शताब्दी की शुरुआत में उन्होंने बहराइच में मुस्लिम आक्रमणकारी और ग़ज़नवी सेनापति सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी को पराजित कर मार डाला था. और इस तरह से मातृभूमि और धर्म की रक्षा की.

राजभर जाति की जनसंख्या

जनगणना के आंकड़ों के अभाव में किसी भी जाति की जनसंख्या का सटीक आकलन संभव नहीं है. लेकिन सामाजिक न्याय समिति 2001 हुकुम सिंह की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में राजभर जाति की जनसंख्या 2.44% है. पूर्वी उत्तर प्रदेश में राजभरों की आबादी करीब 20 प्रतिशत है.

राजभर  जाति  किस कैटेगरी में आते हैं?

उत्तर प्रदेश में इन्हें आरक्षण व्यवस्था के अंतर्गत अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है. साल 2013 में, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार ने भर और अन्य 16 अति पिछड़ी जातियों को ओबीसी सूची से निकालकर अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) वर्ग में शामिल करने का प्रस्ताव दिया गया था. लेकिन इसे वोट बैंक की राजनीति मानते हुए अदालती रोक के बाद भारत सरकार ने स्थगित कर दिया था.

राजभर  जाति  की वर्तमान स्थिति

भर मुख्य रूप से छोटे किसानों का समुदाय है. समान्यतः इस जाति के लोगों का भूमि स्वामित्व कम ही है. इनमें से ज्यादातर लोग भूमिहीन और खेतिहर मजदूर हैं, जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं. आमदनी बढ़ोतरी के लिए यह मजदूरी तथा अन्य छोटे-मोटे कार्य करते हैं. इनमें से कुछ दुकानदारी का काम करते हैं. आधुनिक शिक्षा और रोजगार के अवसरों का लाभ उठाकर यह विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं, जहां यह अपना और अपने समुदाय की मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं.

राजभर किस धर्म को मानते हैं?

लगभग सभी राजभर हिंदू धर्म को मानते हैं. यह हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करते हैं. परंपरागत रूप से भगवान शिव में इनकी विशेष आस्था है. भगवान शिव के परम उपासक होने के कारण यह भारशिव के नाम से प्रसिद्ध हैं. यह हिंदू त्योहारों जैसे होली, दिवाली आदि को बड़े धूमधाम से श्रद्धा पूर्वक मनाते हैं. यह हिंदी, अवधी और भोजपुरी भाषा बोलते हैं.

भारत का नाम भर जाति पर

राहुल सांकृत्यायन (9 अप्रैल 1893 – 14 अप्रैल 1963) जिन्हें महापंडित की उपाधि दी जाती है हिंदी के एक प्रमुख साहित्यकार थे. राहुल सांकृत्यायन के किताब ‘सतमी के बच्चे’ के अनुसार ‘भर’ भारत की एक प्राचीन जाति है, जब आर्य करीब 2000 साल पहले भारत आए तो उसके पहले भर जाति का ही साम्राज्य था. यह जाति सभ्यता के उच्च शिखर पर पहुंच चुकी थी जिसने हजारों राजमहल और सुदृढ़ नगर बसाए थे। वह जहाज से समुद्र में दूर-दूर तक यात्रा करते थे. उनका कहना है कि भारत का नाम भर जाति से ही आया है आर्यों से पराजित होने के बाद वह पश्चिम से पूर्व की ओर हटने लगे. सिंधु सभ्यता के इस सभ्य जाति की एक शाखा उत्तर प्रदेश और बिहार में जब जाकर बसे और भर नाम से प्रसिद्ध हुए।

राजभर  जाति के प्रमुख व्यक्ति

राजा सुहेलदेव

इस जाति के लोग राजा सुहेलदेव को अपना नायक बताते हैं. कहा जाता है कि 11 वीं सदी में महमूद ग़ज़नवी के भारत पर आक्रमण के समय सालार मसूद ग़ाज़ी ने बहराइच पर हमला किया था. लेकिन वह वहां के राजा सुहेलदेव से बुरी तरह पराजित हुआ और लड़ाई में मारा गया.

ओम प्रकाश राजभर

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के संस्थापक ओम प्रकाश राजभर इसी जाति से आते हैं. उनकी पहचान पिछड़ी जाति के बड़े नेता के तौर पर की जाती है. उन्होंने टेंपो चालक से उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री तक का राजनीतिक सफर तय किया है. साल 2017 में ओमप्रकाश पहली बार विधायक बने थे. विधायक चुने जाने के बाद उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया था.

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