
Last Updated on 25/11/2021 by Sarvan Kumar
भूमिज (Bhumij) भारत में पाई जाने वाली एक जनजाति है. यह मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, असम, झारखंड और बिहार में पाए जाते हैं. त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और छत्तीसगढ़ में भी इनकी थोड़ी बहुत आबादी है. बहुत कम संख्या में यह बांग्लादेश में भी पाए जाते हैं. जीवन यापन के लिए यह मुख्य रूप से कृषि, पशुपालन, मछली पकड़ने, शिकार और वन उत्पादों पर निर्भर हैं. भूमिहीन भूमिज मजदूर के रूप में काम करते हैं. यह मांसाहारी होते हैं, लेकिन सूअर का मांस और बीफ नहीं खाते. इनका इतिहास स्वर्णिम और गौरवशाली है. इनके पूर्वजों ने कभी भी अन्याय और अत्याचार को सहन नहीं किया. भूमिज विद्रोह के महानायक शहीद वीर गंगा नारायण सिंह, उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी लेकिन अधीनता को स्वीकार नहीं किया.आइए जानते हैं भूमिज जनजाति की इतिहास, भूमिज शब्द की उत्पति कैसे हुई?
भूमिज किस कैटेगरी में आते हैं?
आरक्षण व्यवस्था के अंतर्गत इन्हें पश्चिम बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, असम और बिहार में अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribe, ST) के रूप में वर्गीकृत किया गया है.
भूमिज की जनसंख्या कहां पाए जाते हैं?
भारत में इनकी कुल जनसंख्या लगभग 12 लाख है. इसमें से लगभग 4 लाख पश्चिम बंगाल में, 3 लाख उड़ीसा में, 2.5 लाख असम में और 2.2 लाख झारखंड में निवास करते हैं.पश्चिम बंगाल के मिदनापुर, पुरुलिया, बांकुरा और 24 परगना जिलों में इनकी घनी आबादी है. उड़ीसा में यह मुख्य रूप से मयूरभंज, सुंदरगढ़, क्योंझर और बालासोर जिलों में केंद्रित हैं. असम में यह मुख्य रूप से असम घाटी में पाए जाते हैं. झारखंड में यह पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम, सरायकेला खरसावां, बोकारो, हजारीबाग, रांची और धनबाद जिलों में पाए जाते हैं.
भूमिज किस धर्म को मानते है? उनकी भाषा क्या है?
यह हिंदू धर्म और सरना धर्म को मानते हैं. इन्हें जनजाति का हिंदू संस्करण कहा जाता है. यह सिंग बोंगा और धरम के नाम से सूर्य देव की पूजा करते हैं, दोनों ही उनके सर्वोच्च देवता माने जाते हैं. यह कई अन्य देवी देवताओं की पूजा भी करते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- जाहुबुरु, काराकाटा (बारिश और फसल की देवी), ग्राम देवता और देवशाली, बुरु (पर्वत देवता), मनसा (सर्प देवता), पाओली, जहरबुरी और अतरा देवी.
भूमिज शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
“भूमिज” शब्द का अर्थ होता है-“भूमि से उत्पन्न” या “भूमि के संतान”. आरंभ में कृषि को मुख्य पेशा के रूप में अपनाने के कारण संभवत इनका यह नाम पड़ा.
भूमिज समाज का इतिहास
भूमिज मुंडा की एक शाखा मानी जाती है. कर्नल डाल्टन ने इन्हें कोलेरियन समूह का माना है. भाषा की दृष्टि से यह कोलेरियन हैं. हर्बट होप रिस्ले इन्हें मुंडा जनजाति की एक शाखा मात्र मानते हैं, जो पूरब की ओर बढ़ गई और फैल गई. रिस्ले ने 1890 में उल्लेख किया है कि भूमिज स्वर्णरेखा नदी के दोनों किनारों पर स्थित क्षेत्रों में निवास करते थे. उनका दावा है कि भूमिज के पूर्वी शाखा ने अपने मूल भाषा से संबंध खो दिया और बंगाली बोलने लगे. रिस्ले के अनुसार, यह मुंडा जनजाति के एक समूह थे जो पूर्व में चले गए और अन्य मुंडाओं के साथ संबंध खो दिए, और बाद में गैर आदिवासी क्षेत्रों में आने पर हिंदू रीति-रिवाजों को अपना लिया. ब्रिटिश शासन के दौरान और उससे पहले, कई भूमिज जमींदार बन गए. उनमें से कुछ ने राजा और सरदार की उपाधि भी हासिल कर ली. भूमिजों का मानना है कि उनका मूल पेशा सैन्य सेवा था. बाद में यह कृषि और छोटे मोटे व्यवसाय मे लग गए. उनमें से कुछ असम के चाय जिलों में आकर बस गए. अपनी सामाजिक स्थिति को बेहतर करने के लिए उन्होंने खुद को क्षत्रिय घोषित कर दिया.


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