
Last Updated on 28/06/2023 by Sarvan Kumar
भूमिहार, जिसे बाभन भी कहा जाता है, एक हिंदू जाति है जो मुख्य रूप से बिहार (मिथिला क्षेत्र सहित), उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र, झारखंड, मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र और नेपाल में पाई जाती है। स्वतन्त्र भारत में जातिगत गणना नहीं हुई है, 1911 के जनगणना के अनुसार बिहार की कुल आबादी 10,38,04,637 थी। बिहार में भूमिहारों की अनुमानित प्रतिशत लगभग 5% है। इस आधार पर देखा जाए तो भूमिहारों की जनसंख्या बिहार में 53 लाख के आसपास होनी चाहिए। इसके अलावा उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल में भी भूमिहारों की ठीक- ठाक आबादी है।
हथुआ स्टेट भूमिहारों के गौरवशाली इतिहास को बताता है। आइए जानते हैं भूमिहारों का इतिहास, भूमिहार का अर्थ भूमिहार शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
भूमिहारों का इतिहास
भूमिहारों के उत्पत्ति के बारे में कई सिद्धांत H.H.Risley की किताब The Tibes Of Caste of Bengal ( Volume 1) से मिलती है। इस पुस्तक का प्रकाशन 1892 में की गई थी।
भूमिहारों के उत्पत्ति का पहला सिद्धांत
महर्षि परशुराम द्वारा क्षत्रियों का संहार करने के बाद ब्राह्मणों को शासक बनाया गया, इन्हीं ब्राह्मणों को ही बाद में बाभन या भूमिहार कहा गया। इस सिद्धांत के अनुसार भूमिहार पहले ब्राह्मण ही थे जो कि शासक बनने के बाद ब्राह्मण संस्कार छोड़कर भूमि अधिग्रहण करना शुरू कर दिया। इन्हें भूमिहार ब्राह्मण, बाभन, अयाचक कहा जाने लगा। भूमिहार ब्राह्मण, भगवान परशुराम को प्राचीन समय से अपना मूल पुरुष और कुल गुरु मानते है।भूमिहार ब्राह्मण कुछ जगह प्राचीन समय से पुरोहिती करते चले आ रहे है अनुसंधान करने पर पता लगा कि प्रयाग की त्रिवेणी के सभी पंडे भूमिहार हैं।
भूमिहारों के उत्पत्ति के का दूसरा सिद्धांत
H.H.Risley के ही अनुसारअयोध्या के किसी राजा का कोई संतान नहीं था। इस दोष को दूर करने के लिए उन्हें किसी ब्राह्मण का बलि देने को कहा गया। इस उद्देश्य के लिए ऋषि जमदग्नि (परशुराम के भी पिता) के एक पुत्र को लाया गया। ऋषि विश्वामित्र (जोकि बलि के लाए गए युवक के मामा थे) को जब यह बात पता चला तो उन्होंने बिना कोई बलि दिए ही राजा को पुत्र होने का वरदान दे दिया। बलि के लिए लाए गए बच्चे को एक जमीन देकर बसा दिया गया। वही युवक आगे चलकर बाभनों के जनक कहलाए।
भूमिहारों के उत्पत्ति के का तीसरा सिद्धांत
H.H.Risley के अनुसार यह सर्वाधिक प्रचलित मत है।
महाभारत काल में मगध के राजा जरासंध ने बलिदान के एक आयोजन में बहुत सारे ब्राह्मणों को उपस्थित रखने का निर्णय लिया। जरासंध ने अपने मंत्री को आदेश दिया कि कम से कम एक लाख ब्राह्मणों को उपस्थित रखा जाए । जरासंध के मंत्री ने बहुत प्रयास किया पर इतनी संख्या जुटाने में वह सफल नही हो सके । उन्होंने छोटी जातियों के लोगों के ब्राह्मण वेेश में बुला लिया पर, जरासंध समझ गए यह असली ब्राह्मण नहीं है यही ब्राह्मण बाद में बाभन कहलाए। इस सिद्धांत को ज्यादा सही नहीं माना जा सकता क्योंकि शारीरिक बनावट से यह आर्यन रेस के लगते हैं।अंग्रेज विद्वान मि. बीन्स ने लिखा है – “भूमिहार एक अच्छी किस्म की बहादुर प्रजाति है, जिसमे आर्य जाति की सभी विशिष्टताएं विद्यमान है। ये स्वाभाव से निर्भीक व हावी होने वालें होते हैं।
ब्राह्मण और भूमिहार दोनो ब्राह्मण समुदाय के अंग है , भूमिहार लोगों ने पारंपरिक पूजा पाठ करना और भिक्षा लेना छोड़ दिया। वो जमींदारी और कृषि में जुट गए जोकि आम भिक्षा लेने वाले ब्राह्मण नहीं करते थे , बड़े जमींदार भूमिहार ब्राह्मणों ने खुद को इससे अलग कर दिया , वही याचक ब्राह्मण ने भूमिहार ब्राह्मणों को ब्राह्मण समाज से ही अलग कर दिया
भूमिहार की परिभाषा, भूमिहार शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
भूमिहार और ब्राह्मण में क्या अंतर है, भूमिहारों के ब्राह्मण होने के दस प्रमाण।

Disclosure: Some of the links below are affiliate links, meaning that at no additional cost to you, I will receive a commission if you click through and make a purchase. For more information, read our full affiliate disclosure here. |