
Last Updated on 04/06/2023 by Sarvan Kumar
भारत ने आर्थिक और तकनीकी मोर्चे पर महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है, लेकिन जाति, समुदाय और लिंग के आधार पर भेदभाव के बढ़ते मामले देश के लिए चिंता का विषय हैं. भारत आज भी कई प्रकार की सामाजिक बुराइयों से पीड़ित है, जिनमें जातिगत भेदभाव और दलित उत्पीड़न प्रमुख हैं. दलितों पर अत्याचार, भेदभाव और हिंसा के लिए जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवाद को जिम्मेदार ठहराया जाता है. इसलिए कई लोगों का मानना है कि देश से जाति व्यवस्था को समाप्त कर देना चाहिए और भविष्य का भारत जातिविहीन और वर्गविहीन होना चाहिए. आइए इसी क्रम में जानते हैं कि क्या दलित ब्राह्मण बन सकते हैं.
क्या दलित ब्राह्मण बन सकते हैं?
दलित ब्राह्मण बन सकता है या नहीं, इस सवाल का जवाब लोग अपने-अपने हिसाब से देते हैं. कट्टर जातिवादी और रूढ़िवादी ब्राह्मण अभी भी मानते हैं कि व्यक्ति जन्म से ही ब्राह्मण होता है. अर्थात उनके अनुसार दूसरी जाति का व्यक्ति ब्राह्मण नहीं बन सकता है. लेकिन ऐसे उदारवादी लोगों की कमी नहीं है जो यह मानते हैं कि कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण होने के मापदंडों को पूरा करने के बाद कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण बन सकता है. मंदिरों में परंपरागत रूप से ऊंची जाति के ब्राह्मणों का वर्चस्व रहा है और ब्राह्मण पुजारी के रूप में काम करते रहे हैं. लेकिन सदियों पुरानी इस परंपरा को अब चुनौती दी जा रही है. दक्षिण भारत के कई राज्यों जैसे तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में गैर-ब्राह्मण समुदाय के लोगों को प्रशिक्षित करके मंदिरों में पुजारी के रूप में नियुक्त किया जा रहा है.
वर्तमान में दलित समुदाय के लोग केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश के कई मंदिरों में पुजारी के रूप में काम कर रहे हैं. यानी अब किसी भी जाति का व्यक्ति ब्राह्मण बन सकता है.
मंदिरों में गैर-ब्राह्मणों को पुजारी बनाए जाने का विरोध करने वालों की संख्या भी कम नहीं है. विरोधियों का कहना है कि केवल ब्राह्मण ही वेदज्ञ हैं. वे पूजा-अर्चना की परंपरा में पले-बढ़े होते हैं. किसी को प्रशिक्षण देकर पुजारी बनाने से वह धर्मशास्त्रों का ज्ञाता नहीं हो जाता. इसलिए हमें परंपरा का हीं पालन करना चाहिए. आइए अब इस प्रश्न का उत्तर कुछ बुनियादी तथ्यों और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार खोजने का प्रयास करते हैं कि क्या दलित ब्राह्मण हो सकते हैं या नहीं.
•वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था प्रकृति और सिद्धांत में भिन्न हैं. इनके बीच कई विशिष्ट अंतर हैं, लेकिन लोग अक्सर वर्ण और जाति को एक हीं मान लेते हैं. ऋग्वैदिक समाज चार वर्णों में विभाजित था, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, इनके अलावा अवर्ण भी थे. वैदिक काल में वर्ण की रेखा अलंघनीय नहीं थी. क्षत्रिय ब्राह्मण बन सकते थे और बने भी. विश्वामित्र जन्म से ब्राह्मण नहीं, बल्कि क्षत्रिय थे. उन्होंने तप शुरू कर दिया और वेद-पुराण का ज्ञान लेकर महान ऋषि यानी कि ब्राह्मण बन गए. शूद्रों ने भी ब्राह्मणत्व प्राप्त किया. वेदव्यास की माता निषाद कन्या थीं. इस प्रकार से वर्ण की रेखा अलंघनीय नहीं होने के कारण किसी भी जाति का व्यक्ति ब्राह्मण बन सकता है, अर्थात दलित भी ब्राह्मण बन सकते हैं.
•वेदों की भाँति हिंदुओं के प्राचीन धर्म शास्त्र मनुस्मृति में भी वर्ण व्यवस्था पर बल दिया गया है न कि जाति व्यवस्था पर. मनुस्मृति में निम्नलिखित श्लोक का उल्लेख मिलता है-
जन्मना जायते शूद्र: कर्मणा द्विज उच्यते।
अर्थ – जो जन्म से शूद्र होते हैं, कर्म के आधार पर द्विज कहलाते हैं. अर्थात, सभी जन्म से शूद्र होते हैं और कर्म से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र बनते हैं. इस प्रकार एक दलित व्यक्ति भी अच्छे कर्मों के आधार पर ब्राह्मण बन सकता है.
•भगवत गीता के चौथे अध्याय (श्लोक संख्या 13) में भगवान श्री कृष्ण वर्ण व्यवस्था का वर्णन करते हैं, जो इस प्रकार हैं-
चातुर्वर्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।
तस्य कर्तारमपि मां विद्धयकर्तारमव्ययम् ॥13॥
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- मनुष्यों के गुणों और कर्मों के अनुसार मेरे द्वारा चार वर्णों की रचना की गयी है.
अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र जन्म से नहीं बल्कि गुण और कर्म के आधार पर होते हैं. इस प्रकार से भागवत के गीता के अनुसार भी कोई भी व्यक्ति गुण और कर्म के आधार पर ब्राह्मण बन सकता है.

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