
काशी के एक चर्मकार परिवार में जन्मे संत रविदास एक महान संत और कवि थे. अपने विनीत स्वभाव और उदार विचारों के लिए प्रसिद्ध रविदास जी ने भारतीय समाज में फैले कुरीतियों को बहुत नजदीक से देखा और समझा. वह समतामूलक समाज के समर्थक थे. जिस तरह से प्राचीन काल में महात्मा बुद्ध ने ब्राह्मणवाद को चुनौती दी, ठीक उसी प्रकार से मध्यकाल में रविदास ने पुरोहित वर्ग के वर्चस्व को चुनौती देने का काम किया. अपनी रचनाओं में उन्होंने छुआछूत, जात-पात, ऊंच-नीच और धार्मिक पाखंड आदि विषयों पर उन्होंने सीधी सरल भाषा में विवेचना किया. उन्होंने समाज को भक्ति, प्रेम, शांति और सौहार्द का संदेश देकर उद्धार का रास्ता दिखाया. इस लेख में हम संत रविदास जी के कुछ प्रसिद्ध और बेहतरीन दोहे अर्थ सहित जानेंगे.
संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित
(1).
ऊँचे कुल के कारणै, ब्राह्मन कोय न होय।
जउ जानहि ब्रह्म आत्मा, रैदास कहि ब्राह्मन सोय॥
अर्थ- केवल उच्च कुल में जन्म लेने के कारण ही किसी को ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता. रैदास जी कहते हैं जो ब्रह्म/ब्रहात्मा को जानता है, वही ब्राह्मण कहलाने योग्य है.
(2).
रैदास ब्राह्मण मति पूजिए, जए होवै गुन हीन।
पूजिहिं चरन चंडाल के, जउ होवै गुन प्रवीन॥
अर्थ- रैदास कहते हैं कि गुणहीन ब्राह्मण की पूजा नहीं करनी चाहिए. एक गुणहीन ब्राह्मण की तुलना में एक गुणी चांडाल के चरणों की पूजा करना बेहतर है.
(3).
जात पांत के फेर मंहि, उरझि रहइ सब लोग।
मानुषता कूं खात हइ, रैदास जात कर रोग॥
अर्थ- अज्ञानता के कारण सभी लोग जाति और पंथ के चक्र में फंस गए हैं. रैदास का कहना है कि अगर अगर जाती-पाति के उलझन से बाहर नहीं निकले तो दिन जाति की यह बीमारी पूरी मानवता को निगल जाएगी.
(4).
बेद पढ़ई पंडित बन्यो, गांठ पन्ही तउ चमार।
रैदास मानुष इक हइ, नाम धरै हइ चार॥
अर्थ- सभी मनुष्य समान हैं, लेकिन उनके चार नाम (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) रख दिए गए हैं, जैसे वेदों को पढ़ने वाले को पंडित (ब्राह्मण) कहा जाता है और जूतों को गाँठने वाले को चर्मकार (शूद्र) कहा जाता है.
(5).
मस्जिद सों कुछ घिन नहीं, मंदिर सों नहीं पिआर।
दोए मंह अल्लाह राम नहीं, कहै रैदास चमार॥
अर्थ- रविदास जी कहते हैं, मुझे न तो मस्जिद से नफरत है और न ही मुझे मंदिर से प्यार है. हकीकत यह है कि न तो अल्लाह मस्जिद में रहता है और न ही राम मंदिर में.
(6).
रैदास सोई सूरा भला, जो लरै धरम के हेत।
अंग−अंग कटि भुंइ गिरै, तउ न छाड़ै खेत॥
अर्थ- रैदास कहते हैं कि वही शूरवीर श्रेष्ठ है जो धर्म की रक्षा के लिए लड़ते हुए अपने अंग-अंग कटकर युद्ध भूमि में गिर जाने पर भी युद्धभूमि से पीठ नहीं दिखाता.
(7).
मुसलमान सों दोस्ती, हिंदुअन सों कर प्रीत।
रैदास जोति सभ राम की, सभ हैं अपने मीत॥
अर्थ- हमें मुसलमानों और हिंदुओं दोनों से समान रूप से मित्रता और प्रेम करना चाहिए. दोनों के भीतर एक ही ईश्वर का प्रकाश चमक रहा है. सब हमारे अपने दोस्त हैं.
(8).
मंदिर मसजिद दोउ एक हैं इन मंह अंतर नाहि।
रैदास राम रहमान का, झगड़उ कोउ नाहि॥
अर्थ- मंदिर और मस्जिद दोनों एक हैं. उनके बीच कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं है. रैदास कहते हैं कि राम-रहमान का झगड़ा बेकार है.
(9).
हिंदू पूजइ देहरा मुसलमान मसीति।
रैदास पूजइ उस राम कूं, जिह निरंतर प्रीति॥
अर्थ- हिंदू मंदिरों में पूजा करने जाते हैं और मुसलमान मस्जिदों में ख़ुदा की इबादत करने जाते हैं. दोनों अज्ञानी हैं. दोनों में परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम नहीं है. रैदास कहते हैं कि मुझे उस राम से सच्चा प्रेम है, जिसकी मैं पूजा करता हूं.
(10).
माथे तिलक हाथ जपमाला, जग ठगने कूं स्वांग बनाया।
मारग छाड़ि कुमारग उहकै, सांची प्रीत बिनु राम न पाया॥
अर्थ- भगवान को पाने के लिए माथे पर तिलक लगाना और माला जपना दुनिया को धोखा देने का एक हथकंडा है. प्रेम का मार्ग छोड़कर ढोंग करने से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होगी. सच्चे प्रेम के बिना ईश्वर को पाना असंभव है.
References;
•Sant Ravidas Ratnawali
By Mamta Jha · 2021
•Sant Ravidas
By Manish Kumar · 2021
•रविदास का काव्य और अर्थ विज्ञान ( Ravidas Ka Kavya Aur Arth Vigyan )
By डॉ. बन्सी लाल टोहाना ( Dr. Bansi Lal Tohna) · 2022
•Bhartiya Lokoktiyon Me Jatiya Dwesh
By Esa. Esa Gautama · 2007
•https://hindi.theprint.in/opinion/ravidas-had-dreamt-of-an-equal-society-much-before-karl-marx/45947/

Disclosure: Some of the links below are affiliate links, meaning that at no additional cost to you, I will receive a commission if you click through and make a purchase. For more information, read our full affiliate disclosure here. |