Ranjeet Bhartiya 04/10/2022

Last Updated on 05/10/2022 by Sarvan Kumar

संतों की संगति से हमें अनेक लाभ मिलते हैं. उनके उपदेश और प्रवचन व्यक्ति और समाज के व्यापक मन से गंदगी, कड़वाहट और नकारात्मकता को दूर करते हैं और अंतःकरण को शुद्ध करते हैं. ऐसे ही एक महान संत थे रविदास जी, जिन्होंने अपनी शिक्षाओं, दोहों के माध्यम से व्यक्ति और समाज को सामाजिक बुराइयों, जात-पात के बंधनों, बाह्य आडंबरों से मुक्त करने का प्रयास किया और सद्गुण के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया. आइए जानते हैं संत रविदास जी के कुछ अनमोल वचनों के बारे में जो आज के संदर्भ में भी प्रासंगिक हैं और उन्हें अपने जीवन में उतारकर हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं.संत रविदास जी के अमृत वचनों की सूची बहुत लंबी है, इसलिए हम यहां उनके कुछ प्रमुख संदेशों और अनमोल वचनों का ही उल्लेख कर रहे हैं-

(1).

इंसान छोटा या बड़ा अपने जन्म से नहीं बल्कि अपने कर्मों से होता है. व्यक्ति के कर्म ही उसे ऊँचा या नीचा बनाते हैं.

(2).

हमें हमेशा कर्म करते रहना चाहिए और उसके साथ आने वाले फल की आशा नहीं छोड़नी चाहिए, क्योंकि कर्म ही हमारा धर्म है और फल हमारा सौभाग्य है.

(3).

अज्ञानता के कारण सभी लोग जाति और पंथ के चक्र में फंस गए हैं. अगर वह इस जातिवाद से बाहर नहीं निकला तो एक दिन जाति की यह बीमारी पूरी मानवता को निगल जाएगी.

(4).

किसी की जाति नहीं पूछनी चाहिए क्योंकि सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं. यहां कोई जाति, बुरी जाति नहीं है.

(5).

ईश्वर के सभी मनुष्यों को दो हाथ और पैर, एक समान आंख और कान दिए हैं, इसलिए हिंदू और मुस्लिम में कोई अंतर नहीं है.

(6).

सीमा से अधिक धन का संचय दुख देता है. वास्तविक सुख अधिक धन की इच्छा का त्याग करने से ही प्राप्त होता है.

(7).

भले ही कोई हजारों वर्षों तक भगवान का नाम लेता रहे, लेकिन जब तक मन शुद्ध न हो, तब तक ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है.

(8).

कोई भी मनुष्य जन्म से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र नहीं होता है. यदि कोई व्यक्ति उच्च वर्ण प्राप्त करना चाहता है, तो वह अच्छे कर्मों से ही उसे प्राप्त कर सकता है.

(9).

जो मनुष्य केवल शारीरिक स्वच्छता और बाहरी सुंदरता पर ध्यान देता है और मन की पवित्रता पर ध्यान नहीं देता है, वह निश्चित रूप से नरक में जाएगा.

(10).

न मस्जिद में अल्लाह रहता है और न ही राम मंदिर में.

(11).

पराधीनता एक महान पाप है. पराधीन से कोई प्यार नहीं करता.

(12).

जीव का वध करके परमात्मा को प्राप्त नहीं किया जा सकता है.

(13).

जब तक क्षमता है, मनुष्य को ईमानदारी से कमाना और खाना चाहिए.

(14).

मनुष्य को निष्काम भाव से कर्म करते रहना चाहिए. कर्म करना ही मनुष्य का धर्म है.

(15).

केवल ऊँचे कुल में जन्म लेने से कोई ब्राह्मण नहीं हो जाता. असली ब्राह्मण वही है जो ब्रह्म (ब्रहात्मा) को जानता है.


References;

•पुस्तक : रैदास ग्रंथावली (पृष्ठ 94) रचनाकार : डॉ. जगदीश शरण प्रकाशन : साहित्य संस्थान संस्करण : 2011

•Sant Ravidas Ratnawali

By Mamta Jha · 2021

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