
Last Updated on 30/01/2021 by Sarvan Kumar
आप अगर मुस्लिम धर्म मानते हैं तो आपको कुरान के अनुसार चलना होगा। आप ईसाई हैं तो आपको बाइबिल का अनुसरण करना होगा। ऐसे में अगर हम हिन्दू हैं तो हमें किस ग्रंथ के अनुसार चलना होगा इस सवाल का जवाब देना कठिन हो जाता है। होता यह है कि अगर हम भगवान विष्णु, शंकर, ब्रह्मा, राम, कृष्ण, माँ दुर्गा इत्यादि की पूजा करते हैं तो हमें हिन्दू कह दिया जाता है।
लेकिन ऐसा नहीं है सिर्फ पुजा पाठ करने भर से आप हिन्दू नहीं कहलाते। हिन्दू कौन है यह आपका कर्म तय करता है। हिन्दू धर्म
ग्रंथ एक नहीं कई है जैसे वेद,पुराण,उपनिषद्, रामायण, महाभारत,गीता इत्यादि। आइए जानते हैं इन धर्मग्रंथों से हमें क्या शिक्षाएं मिलती है.हिन्दू धर्म की शिक्षाएं, क्यों हिन्दू धर्म है विश्व का महान धर्म ?
हिन्दू धर्म की शिक्षाएं
रामायण हमें क्या शिक्षा देती है
रावण बहुत बलवान था, उसे कोई पराजित नहीं कर सकता था पर वह बुराई का प्रतीक था। रावण को मारने के लिए भगवान को खुद जन्म लेना पड़ा। इससे साबित होता है की बुराई कितनी भी बड़ी क्यों ना हो आखिर उसकी पराजय निश्चित है। रामायण हमें सीख देती है कि असत्य पर सत्य की विजय हमेशा होती है इसीलिए हम अपने जीवन में सत्य मार्ग को पकड़े रहे। रामायण हमें एक आदर्श पुत्र, आदर्श पति, आदर्श राजा बनने की सीख देती है। राम सिर्फ पिता के कहने पर वन चले गये वो चाहते तो मना भी कर सकते थे। लेकिन वे पिता के वचन का मान रखने के लिए राज्य ठुकरा दिया। एक पत्नी का क्या कर्तव्य होता है ये हमें सीता के चरित्र से सीखनी चाहिए। पति के सुख-दुःख में पत्नी को हमेशा साथ रहना चाहिए। एक आदर्श भाई कैसा हो ये हमें भरत और लक्ष्मण के चरित्र से सीखने की जरूरत है।
रामायण से मिली सीख सिर्फ हिन्दू लोगों के लिए नहीं है ये तो किसी भी धर्म के मानने वाले लोग अपने जीवन में उतार सकते हैं।
महाभारत से हमें क्या शिक्षा मिलती है
महाभारत युद्ध में दो पक्ष था एक कौरवों का और एक पांडवों का। कौरव जहाँ अधर्म के साथ खड़े थे वहीं पांडव धर्म के साथ।
पांडवों की जीत ये साबित करती है कि धर्म की जीत हमेशा ही होती है। गीता महाभारत का हीं एक अंग है इसमें भगवान कृष्ण ने अर्जुन को तब उपदेश दिया जब अर्जुन के कदम लड़खड़ाने लगे थे। अपनो को सामने देख अर्जुन युद्ध के लिए तैयार नहीं हो रहे थे।
गीता के उपदेश
कुरुक्षेत्र में 5000 वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया जो श्रीमद्भगवदगीता के नाम से प्रसिद्ध है | यह कौरवों व पांडवों के बीच युद्ध महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। गीता में 18 अध्याय और 710 श्लोक हैं।
श्री गीता शास्त्र के पाठकों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है स्थूलदर्शी और सूक्ष्मदर्शी। स्थूलदर्शी पाठक केवल वाक्यों के बाहरी अर्थ को ही ग्रहण कर सिद्धांत किया करते हैं। परंतु सूक्ष्मदर्शी पाठकगण शास्त्र के बाहरी अर्थ से संतुष्ट ना होकर गंभीर तात्विक अर्थ का अनुसंधान करते हैं। स्थूलदर्शी पाठकगण आदि से अंत तक गीता का पाठ कर यह सिद्धांत ग्रहण करते हैं कि कर्म ही गीता का प्रतिपाद्य विषय है, क्योंकि अर्जुन ने संपूर्ण गीता सुनकर अंत में युद्ध करना ही श्रेयस्कर समझा। सूक्ष्मदर्शी पाठक गण वैसे स्थूल सिद्धांत से संतुष्ट नहीं होते वह या तो ब्रह्म ज्ञान को अथवा परम भक्ति को ही गीता का तात्पर्य स्थिर करते हैं। उनका कहना यह है कि अर्जुन का युद्ध अंगीकार करना केवल अधिकार निष्ठा का उदाहरण मात्र है। यह गीता का चरम तात्पर्य नहीं है। मनुष्य अपने स्वभाव के अनुसार कर्माधिकार प्राप्त करता है और कर्माधिकार का आश्रय कर जीवन यात्रा का निर्वाह करते -करते तत्वज्ञान प्राप्त करता है। कर्म का आश्रय किए बिना जीवन का निर्वाह होना कठिन है। जीवन यात्रा का निर्वाह नहीं होने से तत्वदर्शन भी सुलभ नहीं होता है इसीलिए प्रारंभिक अवस्था में वर्णाश्रमोचित सत्कर्म का आश्रय ग्रहण करना आवश्यक है। किंतु यह जान लेना आवश्यक है कि सत्कर्म के अंतर्गत भी भगवदर्पित निष्काम कर्म ही गीता को मान्य है। इसके द्वारा क्रमशः चित्त शुद्धि और तत्व ज्ञान होता है तथा अंत में भगवत भक्ति द्वारा ही भगवत्प्राप्ति होती है।
जिस प्रकार एक छोटे जलाशय के द्वारा जितना प्रयोजन सिद्ध होता है उतना प्रयोजन एक बड़े जलाशय के द्वारा अनायास ही सिद्ध हो जाते हैं।उसी प्रकार वेदों में वर्णित विभिन्न देवताओं की पूजा से जो भी फल प्राप्त होते हैं वह सभी फल वेद तात्पर्यविद भक्तियुक्त ब्राह्मणों के भगवत उपासना के द्वारा अनायास ही प्राप्त होते हैं.
जानें हिन्दू धर्म कितना पुराना है हिन्दू धर्म की स्थापना किसने की

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