Ranjeet Bhartiya 17/11/2021

Last Updated on 22/05/2022 by Sarvan Kumar

मीना या मीणा (Meena or Mina) भारत में पाई जाने वाली एक आदिवासी जाति है. इन्हें भारत के प्राचीनतम जातियों में से माना जाता है. इस जाति की गिनती भारत के वीर क्षत्रिय योद्धा जातियों में की जाती है. जीवन यापन के लिए यह मुख्य रूप से कृषि और पशुपालन पर निर्भर हैं. हालांकि अब यह आधुनिक शिक्षा और रोजगार के अवसरों का लाभ उठाते हुए हर क्षेत्र में प्रगति कर रहे हैं और अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं.अधिकांश मीणा हिंदू धर्म का अनुसरण करते हैं. यह भगवान मीन, शिव और अन्य हिंदू देवी देवताओं की पूजा करते हैं. यह हिंदी, मेवाड़ी, धुंधरी, गढ़वाली, मारवाड़ी, मालवी, भीली भाषा, आदि बोलते हैं. आइए जानते हैं मीणा जाति का इतिहास, मीणा शब्द की उत्पति कैसे हुई?

मीणा किस कैटेगरी में आते हैं?

आरक्षण व्यवस्था के अंतर्गत इन्हें विभिन्न राज्यों में अलग-अलग वर्ग में वर्गीकृत किया गया है. राजस्थान में इन्हें अनुसूचित जनजाति (Schedule Tribe, ST) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. मध्यप्रदेश में विदिशा जिले के सिरोंज तहसील में इन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में रखा गया है, जबकि राज्य के अन्य जिलों में इन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Class, OBC) शामिल किया गया है. महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में इन्हें ओबीसी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.

मीणा जाति की जनसंख्या,कहां पाए जाते हैं?

यह मुख्य रूप से राजस्थान में निवास करते हैं. मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और महाराष्ट्र आदि राज्यों में भी इनकी आबादी है. जनसंख्या के मामले में यह राजस्थान में सबसे बड़ी जनजाति है. अलवर, भरतपुर, जयपुर, और उदयपुर के आसपास के क्षेत्रों में इनकी घनी आबादी है. यह मध्य प्रदेश के लगभग 23 जिलों में निवास करते हैं. उत्तर प्रदेश में इन्हें राजस्थान से विस्थापित माना जाता है, और यह कई पीढ़ियों से मुख्य रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मथुरा, संभल और बदायूं जिले में रह रहे हैं.

मीणा जाति की उप-जातियां 

मीना जनजाति कई कुलों और उप-कुलों (अदखों) में विभाजित है, जिनका नाम उनके पूर्वजों के नाम पर रखा गया है. कुछ अदखों में एरियट, अहारी, कटारा, कलसुआ, खराडी, डामोर, घोघरा, डाली, डोमा, नानामा, दादोर, मनौत, चारपोता, महिंदा, राणा, दामिया, ददिया, परमार, फरगी, बमना, खत, हुरात, हेला, भगोरा, और वागत, आदि शामिल हैं.

भील मीणा
भील मीणा मीणाओं का एक उप-विभाजन है. एक संस्कृतिकरण प्रक्रिया (Sanskritisation) के हिस्से के रूप में, कुछ भील खुद को मीणा के रूप में पेश करते हैं, जो भील आदिवासी लोगों की तुलना में उच्च सामाजिक-आर्थिक स्थिति रखते हैं. भील मीणा मुख्य रूप से सिरोही, उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर और चित्तौड़गढ़ जिले में पाए जाते हैं.

उज्ज्वल मीणा
“उज्ज्वल मीणा” मीणाओं का एक और उप-विभाजन है. इन्हें “उजाला मीना” या “परिहार मीणा” भी कहा जाता है. यह छापामार युद्ध में माहिर थे. उच्च सामाजिक स्थिति की तलाश में यह राजपूत होने का दावा करते हैं और खुद को भील से अलग बताते हैं. यह अन्य मीणाओं के विपरीत शाकाहार का पालन करते हैं. राजस्थान के टोंक, भीलवाड़ा और बूंदी जिलों में इनकी बहुतायत आबादी है, जमींदार मीणा और चौकीदार मीणा इनके अन्य प्रचलित सामाजिक विभाजन हैं.
जमींदार मीणा
जमींदार मीणा तुलनात्मक रूप से अधिक संपन्न होते हैं. यह वह समूह है जिन्होंने शक्तिशाली राजपूत आक्रमणकारियों के समक्ष समर्पण कर दिया था और राजपूतों द्वारा प्रदान किए गए भूमि पर बस गए थे.

चौकीदार मीणा/ नयाबासी मीणा
जो राजपूत शासकों के सामने आत्म समर्थन नहीं किए और उनसे गुरिल्ला युद्ध किया करते थे, उन्हें चौकीदार मीणा कहा जाता है. अपनी स्वच्छंद प्रकृति के कारण यह चौकीदारी का काम करते थे. यह मुख्य रूप से भूमिहीन थे और अपनी इच्छा के अनुरूप कहीं भी बस जाते थे. इसीलिए इन्हें नयाबासी कहा जाता है. चौकीदार मीणा मुख्य रूप से राजस्थान के सीकर, झुंझुनू और जयपुर जिले में पाए जाते हैं.

मीणा शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

इस जाति का नाम संस्कृत के शब्द मीन से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है-मछली.

विष्णु भगवान का मत्स्य अवतार image: Wikimedia Commons

मीणा जाति का इतिहास

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से प्रथम अवतार, मत्स्य अवतार, से अपनी उत्पत्ति का दावा करते हैं. यह प्राचीन मत्स्य साम्राज्य से संबंधित होने का दावा करते हैं. यह छठी शताब्दी के मत्स्य राज वंश के वंशज होने का दावा करते हैं. इतिहासकार प्रमोद कुमार के अनुसार, यह संभावना है कि प्राचीन मत्स्य साम्राज्य में रहने वाली जनजातियों को मीन कहा जाता था, लेकिन यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता. मीणा समुदाय के लोग चैत्र शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि को भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की  मत्स्य जयंती या मीनेष जयंती बड़े धूमधाम से त्यौहार के रुप में मनाते हैं. राजस्थान के इतिहास में इस जाति का महत्वपूर्ण स्थान है. इन्होंने राजस्थान के कुछ स्थानों पर शासन किया था, लेकिन बाद में राजपूतों और मुस्लिम शासकों ने उस पर कब्जा कर लिया. मीना‌ शासकों को हराकर राव देवा ने 1342 ईस्वी में बूंदी, कछवाहा राजपूतों ने धुंधार और मुस्लिम शासकों ने चपोली जीत लिया. कोटा, झालावाड़, करौली और जालौर जैसे कई क्षेत्रों में, जहां पहले मीणा का प्रभाव था, उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया गया था.

 

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