
Last Updated on 13/03/2023 by Sarvan Kumar
मनुस्मृति को हिन्दू धर्म का प्राचीन धार्मिक ग्रंथ माना जाता है. मनुस्मृति में मनुष्यों को चार वर्णो में बांटा गया है- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र. कई विद्वानों का मत है कि मनु ने प्रत्यक्ष रूप से जाति व्यवस्था की रचना नहीं की, बल्कि जाति व्यवस्था का बीज अवश्य बोया, जिससे समय के साथ हिंदू समाज 6000 से अधिक जातियों में विभाजित हो गया. आइए इसी क्रम में जानते हैं कि मनुस्मृति में कायस्थ जाति के बारे में क्या लिखा है
कायस्थ इन मनुस्मृति
इस लेख के मुख्य विषय पर आने से पहले यह आवश्यक है कि हम मनुस्मृति के बारे में संक्षेप में जान लें. आमतौर पर इस किताब को लेकर लोगों की दो तरह की राय है. एक वर्ग इसे स्त्री-विरोधी और दलित-विरोधी कहता है, तो दूसरा वर्ग इस ग्रंथ को वैदिक काल के शास्त्रों और स्मृति-ग्रन्थों में सर्वाधिक सम्माननीय और आदर्श ग्रन्थों में से एक मानता है. कई महाराज मनु द्वारा रचित इस ग्रंथ को एक श्रेष्ठ धर्मशास्त्र और नीतिशास्त्र मानते हैं और इसे सामाजिक व्यवस्थाओं के सुचारू संचालन के लिए एक प्रभावी संविधान के रूप में देखते हैं. मनुस्मृति में कुल 12 अध्याय हैं जिनमें 2684 श्लोक हैं. कुछ संस्करणों में श्लोकों की संख्या 2964 है. इस ग्रंथ में सृष्टि की उत्पत्ति, सामाजिक व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था, राज्य शासन, दंड विधान, सैन्य विज्ञान, संस्कार, कर्मफल आदि की व्याख्या की गई है. इस ग्रन्थ के दशम अध्याय में चारों वर्णों की उत्पत्ति तथा कर्तव्यों का वर्णन किया गया है. ब्रह्माजी के मुख से ब्राह्मण वर्ण निकला, जिसका काम पढ़ना, यज्ञ आदि करवाना है. ब्रह्माजी की भुजाओं से क्षत्रिय वर्ण निकला, जिसका काम रक्षा करना है. वैश्य ब्रह्माजी के पेट से निकला, जिसका काम समाज की आवश्यकताओं को पूर्ति करना, समाज सेवा और कृषि आदि करना है. शूद्रों का जन्म ब्रह्माजी के चरणों से हुआ जिनका काम सेवा करना और स्वच्छता बनाए रखना है.जहाँ तक कायस्थ जाति का प्रश्न है, मनुस्मृति में ‘कायस्थ’ शब्द का उल्लेख नहीं किया गया है. इससे ज्ञात होता है कि मनुस्मृति (दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व) के रचनाकाल तक कायस्थों का उद्भव नहीं हुआ था. प्रसिद्ध धर्मशास्त्री डॉ. पी.वी. काणे और अन्य विशेषज्ञों के अनुसार कायस्थ जाति की उत्पत्ति 6ठी शताब्दी के बाद हुई. लेकिन मनुस्मृति में ‘करण’ नामक जाति का उल्लेख मिलता है, जो लेखकों की जाति थी. मनुस्मृति के अनुसार ‘करण’ एक क्षत्रिय की संतान है जिसे अपने धार्मिक कार्यों को करने से वंचित कर दिया गया. अनेक विद्वानों का मत है कि वस्तुतः ब्राह्मणों का वह वर्ग जो प्रशासनिक तथा राजनीतिक कार्यों में लगा रहता था, ‘करण’ कहलाया. कालांतर में में यही करण ‘कायस्थ’ के नाम से जाने जाने लगे.

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