
Last Updated on 20/01/2023 by Sarvan Kumar
भारत की पवित्र भूमि पर अनेक ऐसे महापुरुष जन्म लेते रहे हैं, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर समाज, देश और धर्म की रक्षा की है. भारत में महापुरुषों की जयंती मनाने की पुरानी परंपरा रही है. इस अवसर पर हम महापुरुषों के व्यक्तित्व, व्यवहार, चरित्र और संघर्ष को याद करते हैं और उन्हें नमन करते हैं. महापुरुषों की जयंती इसलिए मनाई जाती है ताकि हम उन्हें भूल न जाएं. हम उनके चरित्र, शिक्षा और संघर्ष से आत्मबल और प्रेरणा लेकर जीवन में आगे बढ़ते रहें. इसी क्रम में आइए जानते हैं महाराजा सुहेलदेव जयंती के बारे में.
महाराजा सुहेलदेव जयंती
हर साल बसंत पंचमी के मौके पर महाराजा सुहेलदेव जयंती मनायी जाती है. महाराजा सुहेलदेव राजभर जयंती समारोह इस बार (2023) 26 जनवरी को मनाया जाएगा. इस लेख के मुख्य विषय पर आने से पहले भारत पर मुस्लिम आक्रमण और मुस्लिम आक्रमणकारियों की प्रवृत्ति को समझना आवश्यक है. मोहम्मद बिन कासिम, तैमूर लंग, मोहम्मद गोरी, महमूद गजनवी जैसे कई क्रूर और अत्याचारी आक्रमणकारियों ने भारत पर आक्रमण किया और बड़े पैमाने पर लूटपाट, नरसंहार और जबरन धर्म परिवर्तन की घटनाओं को अंजाम दिया. इन आक्रमणकारियों का मूल उद्देश्य धन लूटना और इस्लाम धर्म का प्रसार करना था. इनमें से कुछ आक्रमणकारी ऐसे थे जो धार्मिक कट्टरता से अंधे हो गए थे, वे भारत के मंदिरों को ध्वस्त करने और मूर्तियों को नष्ट करने के लिए आए थे, जैसे महमूद गजनवी. महमूद गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया. सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण करके गजनवी ने न केवल सोना, चाँदी और हीरे जवाहरात लूटे बल्कि सोमनाथ मंदिर को भी भारी नुकसान पहुँचाया. कट्टरपंथी मंसूबों के साथ, महमूद गजनवी के भांजे सालार मसूद ने 1033 में बहराइच पर हमला किया जहां उसका सामना महाराजा सुहेलदेव से हुआ. महाराजा सुहेलदेव उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के श्रावस्ती के शासक थे, जिन्होंने 11वीं शताब्दी में शासन किया था. गजनवी द्वारा सोमनाथ मंदिर को लूटने और मंदिर को नुकसान पहुंचाने की घटना से महाराज सुहेलदेव पहले ही आहत थे. सालार मसूद की सेना और राजा सुहेलदेव के बीच भीषण युद्ध हुआ. इस युद्ध में मसूद की हार हुई और वह महाराजा सुहेलदेव के हाथों मारा गया. इस तरह महाराजा सुहेलदेव ने मातृभूमि और धर्म की रक्षा की और इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गए.
सुहेलदेव का जन्म कब हुआ था
माघ बसंत पंचमी के दिन पैदा हुए थे महाराजा सुहेलदेव. अवध गजेटियर के मुताबिक बहराइच के महाराजा प्रसेनजित के घर माघ माह की बसंत पंचमी के दिन 990 ई. को सुहेलदेव ने जन्म लिया. महाराजा सुहेलदेव का शासन काल 1027 ई. से 1077 तक स्वीकार किया गया है. उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार पूर्व में गोरखपुर और पश्चिम में सीतापुर तक किया. महाराजा सुहेलदेव का वर्णन फारसी में लिखे ऐतिहासिक उपन्यास ‘मिरात-ए-मसूदी’ में भी विस्तार से मिलता है. बाकी ऐतिहासिक किताबें उनके नाम पर अलग-अलग मत रखती हैं. उन्हें सकरदेव, सुहीरध्वज, सुहरीदिल, सुहरीदलध्वज, राय सुह्रिद देव, सुसज से लेकर सुहारदल के नाम से जाना गया है. हर साल महाराजा सुहेलदेव की जयंती धूमधाम से मनाई जाती है. इस आयोजन के माध्यम से लोगों को महाराजा सुहेलदेव के जीवन चरित्र, शौर्य, धर्म और मातृभूमि की रक्षा के लिए उनके बलिदान के बारे में बताया जाता है, ताकि आने वाली पीढ़ियां उनके बारे में जान सकें और उनके सद्भावना संदेश को जन-जन तक पहुंचाया जा सके. बता दें कि मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश की स्थानीय लोककथाओं में महाराजा सुहेलदेव का संबंध राजभर जाति से माना जाता है.
References:
•Bharatiya Bhoogol Ka Sankshipt Itihas
By Sanyal Sanjeev · 2019
•Bhaarat- Tattv Avam Sattv
By Rajeshwar Khare · 2021
•https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/hathras/remember-raja-suheldev-on-birth-anniversary-hathras-news-ali2564400107

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