
Last Updated on 10/02/2023 by Sarvan Kumar
तुलसीदास द्वारा रचित “रामचरित मानस” में लिखी गई चौपाई; “ढोल गंवार शूद्र पशु और नारी सब ताड़ना के अधिकारी” पर संग्राम जारी है. समाजवादी पार्टी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के ब्यान के बाद वाद -विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. चौपाई के विरोध करने वालों का तर्क यह है कि ताड़ना का अर्थ पीटना (दंड देना) होता है. यांनी की चौपाई के माध्यम से तुलसीदास जी ने नारी, पशु और वंचितों को दंड का भागी बताया है लिहाजा इसे रामचरित मानस से हटाया जाए. चौपाई में कुछ भी गलत नहीं है कहने वाले ताड़ना का अर्थ शिक्षा देना बताया है. दोनों पक्षों के लोग एक दूसरे को समझने का प्रयास नहीं कर रहे है, गलतफहमी में कोई रामचरित मानस जला रहा है तो कोई स्वामी प्रसाद मौर्य का गर्दन काट लेने की बात कर रहा है. आइए निष्पक्ष होकर जानने का प्रयास करते हैं “ढोल गंवार शूद्र पशु और नारी सब ताड़ना के अधिकारी” का सही अर्थ क्या है.
ताड़ना का अर्थ?
चौपाई में ताड़ना शब्द ही है जिस पर सबसे ज्यादा विवाद है सबसे पहले इसी का अर्थ कुछ संदर्भों का साथ समझते है. एक किताब है जिसका नाम है “परमेश्वर का छुड़ाने वाला हृदय” जिसके लेखक Ashish Raichur है. 2021 में प्रकाशित है All Peoples Church & World Outreach, Bangalore, India. हिन्दी भाषा में लिखी इस किताब के 27वें पेज में लिखा है-
“परमेश्वर जिनसे प्रेम करता है उन्हें ताड़ना देता है। उसकी ताड़ना प्रेम पूर्ण सुधार है, जो हमारी भलाई के लिए है, हमारे विनाश के लिए नहीं. यह परमेश्वर के छुड़ानेवाले (मुक्तिदायी ) हृदय से आता है, जो हमारी मूर्खता से हमें छुटकारा देने की कोशिश करता है. तुम दुख को ताड़ना समझकर सह लो. परमेश्वर तुम्हें पुत्र जानकर तुम्हारे साथ बर्ताव करता है वह कौन सा पुत्र है, जिसकी ताड़ना पिता नहीं करता? यदि वह ताड़ना जिसके भागी सब होते हैं, तुम्हारी नहीं हुई, तो तुम पुत्र नहीं, पर व्यभिचार की सन्तान ठहरे!” इस संदर्भ का अर्थ यह प्रतीत होता है जिनसे हम प्यार करते है अगर वो गलती करें तो वो ताड़ना के अधिकारी है. ताड़ना का यहां अर्थ यह हुआ की जो हम पर आश्रित है उनके गलती करने पर हम डांटे या कोई दंड दे यह दंड छोटी या बड़ी हो सकती है. पर यह दंड भले के लिए है कोई अत्याचार नहीं. शूद्र सेवक वर्ग को कहा जाता है इसका जाति से कोई लेना देना नहीं है. जो भी आज नौकरी कर रहे हैं वो आज के शूद्र है और सबको पता है गलती करने पर उनको दंड दिया जाता है. ताड़ना यहां पर भी हो रहा हैं पर वर्तमान समुदाय में इसका मतलब छोटी डांट, सही ज्ञान देना या नौकरी से निकाल देना हो सकता है. आजकल ताड़ना का अर्थ लोग यह निकाल रहे हैं जब भी छोटी जाति के लोग मिले पीट दो.
जहाँ तक नारी का सवाल है तो भारतीय समाज शुरू से पितृसत्तात्मक रहा है. यहां पत्नी, लड़कियां, और माताएं किसी पुरुष के निगरानी में रहते हैं. आज तो स्थिति पूरी तरह बदल गयी है पर पुराने समय में औरतें आर्थिक रूप से पुरुष साथी पर निर्भर रहते थे. इनके गलतियां करने पर उन्हें हम डांटते है. ये हम उनकी भलाई के लिए कर रहे हैं. इसका मतलब यह नहीं हुआ की हम उन्हें प्यार नहीं करते उनका भला करने के लिए ही हम उन्हें ताड़ना दे रहे है. आज भी जब हमारी मां बहन घर से बाहर जाती है तो हम उनकी निगरानी रखते हैं. उन्हें समझाते रहते है कि यहां मत जाओ वहाँ मत जाओ किस से मिलना है किससे नहीं ये पुरुष है तय करते रहे हैं.औरतों के लिए ताड़ना शब्द आज के ज़माने में उतनी मायने नहीं रखती. क्योंकि आज नारी हर तरह से काबिल है और अपना भला बुरा सोच सकते है.
जहाँ तक ढोल का सवाल है ताड़ना का अर्थ पीटना तो कभीं नहीं हो सकता क्योंकि ढोल के पीटने से कर्कश आवाज निकलेगी ना की सुरीला स्वर. आज भी जब कोई जोर- जोर से किसी बात को बार- बार कहता है तो हम कहते है की ढोल क्यों पीट रहे हो? ढोल से सुरीली ध्वनि निकालने के लिए ढोल बजाना होता है ना की पीटना. ढोल के लिए ताड़ना तो तब शुरू होता है जब वो सुरीली आवाज ना दे. मुझे आज भी याद है जब घर पर कीर्तन होता था कभी-कभी ढोल सही सुर नहीं देता तो ढोल बजाने वाले कलाकार बीच में रुककर या कीर्तन से पहले ढ़ोल को ठीक करने में लग जाते थे. उनके पास कुछ औजार होते थे जैसे छोटी हथौड़े ,नट बोल्ट कसने वाला रिंच. वो इनके माध्यम से ढोल को कसते थे. कुछ ढोल में रस्सियां लगी होती थी वे इसे हाथों से कसते थे, इसे ढोल को खिंची लगाना कहते हैं. ऐसा करते वक्त वो ढोल को हल्के ‘हल्के पीटते भी थे. वह यह काम तब तक करते हैं जब तक ढोल से सुरीली आवाज न आने लगे. ढोल का ताड़ना यही है यह ढोल के अच्छे के लिए है. ढोल को थोड़ी देर के लिए दुःख जरूर होगा पर बाद में वह यही कहेगा मैं ताड़ने लायक हो गया था.ढोल गंवार शूद्र पशु और नारी चौपाई का अर्थ किसी और लेख में किसी और सन्दर्भ से समझने का प्रयास करेंगे.

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