Ranjeet Bhartiya 08/11/2021
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Last Updated on 08/11/2021 by Sarvan Kumar

नट उत्तर भारत में पाया जाने वाला एक जाति समुदाय है. यह परंपरागत रूप से बाजीगरी, कलाबाजी और नाच-गाकर अपना जीवन यापन करते हैं. इन्हें बाजीगर या कलाबाज भी कहा जाता है. शरीर के अंग-प्रत्यंग को लचीला बना कर, अलग-अलग मुद्रा बनाकर, रस्सी पर चलकर और विभिन्न प्रकार के करतब दिखाकर लोगों का मनोरंजन करना इनका मुख्य पेशा है. इनकी स्त्रियां सुंदर होने के साथ-साथ हाव भाव के साथ नृत्य और गायन के प्रदर्शन में निपुण होती हैं. यह विभिन्न तरह के वाद्य यंत्रों को बजाने में भी माहिर होते हैं. आइए जानते हैं नट समाज का इतिहास, नट शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

नट समाज की वर्तमान स्थिति

बिहार में यह समुदाय पशु व्यापार के के काम से जुड़ा हुआ है. यह अन्य खानाबदोश समुदायों की तरह हाशिए पर है. पंजाब में यह एक भूमिहीन गरीब समुदाय हैं, जो मुख्य रूप से अकुशल मजदूरों के रूप में काम करते हैं. उन्होंने पारंपरिक रस्सी निर्माण का कार्य त्याग दिया है. पहले यह समुदाय खानाबदोश था, लेकिन अब यह बस गए हैं. पंजाब में यह मुख्य रूप से गुरदासपुर और अमृतसर जिलों में पाए जाते हैं. हरियाणा में नट एक अर्ध-खानाबदोश समुदाय है जो मुख्य रूप से करनाल, फरीदाबाद, गुड़गांव और रोहतक जिलों में पाए जाते हैं. उन्होंने अपने पारंपरिक पेशे को त्याग दिया है और बड़े पैमाने पर भूमिहीन कृषि श्रमिक के रूप में कार्य करते हैं तथा रोजी-रोटी की तलाश में विभिन्न स्थानों की ओर पलायन करते हैं.

नट किस कैटेगरी में आते हैं?

शिक्षा आदि का विशेष अधिकार देकर समाज के मुख्यधारा में जोड़ने के लिए इन्हें भारत सरकार के सकारात्मक भेदभाव की व्यवस्था आरक्षण के अंतर्गत अनुसूचित जाति (scheduled caste) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है.

नट की जनसंख्या, धर्म, कहां पाए जाते हैं?

यह मुख्य रूप से बिहार, पंजाब, हरियाणा उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं. मुस्लिम नट मुख्य रूप से बिहार के मधुबनी,दरभंगा, समस्तीपुर और पटना जिले में पाए जाते हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश में इनकी जनसंख्या 214344 दर्ज की गई थी.

धर्म
धर्म से यह हिंदू और मुसलमान दोनों हो सकते हैं. अधिकांश नट हिंदू हैं. मुस्लिम नट मूल रूप से हिंदू ही थे, जो धर्म परिवर्तित करके मुसलमान हो गए.

नट समाज की उपजाति

नट समाज मुख्य रूप से दो उप जातियों में विभाजित है-बजनिया नट और बृजवासी नट.

बजनिया नट

बजनिया नट का नाम हिंदी शब्द बजाना से लिया गया है, जिसका अर्थ है- संगीत वाद्ययंत्र बजाना. यह परंपरागत रूप से बाजीगरी या कलाबाजी और गाने-बजाने का काम करते हैं. यह मुख्य रूप से एक खानाबदोश समुदाय है, जो गांव के अंत में शिविर लगाकर अस्थाई रूप से निवास करता है. बजनिया नट 5 समूहों में विभाजित हैं- कर्नत, कलाबाज (ठाकुर नट), कबूतर भानमाता, चमार नट और मुस्लिम नट. यह पांच उप समूह विशेष व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. जैसे-कर्नत गायक का काम करते थे और कलाबाज कलाबाजी का काम करते थे. मुस्लिम नट को छोड़कर, सभी उप समूह धर्म से हिंदू हैं और यह काली मैया और बुंदेला की पूजा करते हैं.

बृजवासी नट

बृजवासी नट बृज या आधुनिक मथुरा में निवास करने वाला एक क्षेत्रीय समूह है. बृजवासी नट का अर्थ है बृज में निवास करने वाला नट. बृजवासी नट एक भूमिहीन समुदाय है, जो मुख्य रूप से संगीतकार और नर्तक हैं. बृजवासी नटों की स्त्रियां नर्तकी के रूप में नाचने का काम करती हैं और उनके पुरुष वाद्य यंत्रों को बजाने का काम करते हैं. यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद, शाहजहांपुर, हरदोई, बरेली, बदायूं, मैनपुरी, इटावा और आगरा जिलो में पाए जाते हैं. यह धर्म से हिंदू है और बृज भाषा बोलते हैं. यह दुर्गा माता की पूजा करते हैं. बृजवासी नट 7 कुलो में विभाजित हैं- बिज्रावत, धरम सौत, काकेरा, ग्वाल, कुर्रा, मुचर और वदौत.

उप समूह

नट जाति 14 समूहों में विभाजित है-निटुरिया, राढ़ी, छभैया, तिकुलहारा, तिरकुटा, पुश्तिया, राठौर, कजरहटिया, कठबंगी, बनवारिया, कौगढ़, लोधरा, कोरोहिया और गुलगुलिया या गौलेरी.

नट शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

संस्कृत में नट शब्द का अर्थ नर्तक होता है, और नट पारंपरिक रूप से मनोरंजन करने वाले और कलाबाज या बाजीगर थे.

नट समाज का इतिहास

इनकी उत्पत्ति के बारे में अनेक मान्यताएं हैं.बिहार में, नट राजपूत मूल का होने का दावा करते हैं. इनकी परंपराएं बाजीगर जाति के समान है. पंजाब में, नट मूल रूप से मारवाड़ के ब्राह्मण होने का दावा करते हैं, जिनका मुख्य काम अंतिम संस्कार की चिताओं की आपूर्ति करना था. एक बार जब इस समुदाय के लोग चिता को ले जा रहे थे, तो उनमें से एक की मृत्यु हो गई. इस बात को अपशगुन के रूप में देखते हुए, उन्हें समुदाय से बहिष्कृत कर दिया गया. इसीलिए उन्होंने नृत्य और बाजीगरी का पेशा अपना लिया. यहां यह बताना जरूरी है कि, यह समुदाय पंजाब के एक अन्य समुदाय ‘बाजीगर’ से निकटता से जुड़ा हुआ है. लेकिन दोनों समुदाय अलग-अलग हैं और यह अंतर्विवाह नहीं करते हैं. हरियाणा में, नट परंपराओं के अनुसार, यह आसा और बासा नाम के दो चमार भाइयों के वंशज हैं.

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