Last Updated on 14/03/2023 by Sarvan Kumar
पटवा हिंदी बेल्ट में निवास करने वाली एक हिंदू जाति है. यह परंपरागत रूप से बुनकरों की एक व्यवसायिक जाति है. रेशम के लटो और और धागे से हथकरघा (handloom) गमछा, चादर, बेडशीट आदि बनाना इनका मुख्य पेशा रहा है. यह पारंपरिक रूप से मोतियों में धागे पिरोने तथा सोने और चांदी के धागों को बांधने के कार्य से जुड़े रहे हैं.वर्तमान में यह महिलाओं के श्रृंगार के सामान, झूमके, हार और सौंदर्य प्रसाधन बेचने का काम करते हैं. यह घरों में प्रयोग किए जाने वाले छोटे-मोटे सामानों तथा ताड़ से बने हाथ के पंखे भी बेचते हैं. बदलते वक्त के साथ उन्होंने हैंडलूम के जगह पावर लूम का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. साथ ही इन्होंने अन्य व्यवसायों में भी विस्तार किया है. आइए जानते हैं पटवा समाज का इतिहास, पटवा शब्द की उत्पति कैसे हुई?
पटवा ,कहां पाए जाते हैं?
वर्तमान में पटवा मुख्य रूप से राजस्थान से पाए जाते हैं, राजस्थान के अलावा महाराष्ट्र में भी इनकी कुछ आबादी है जिनमे मुंबई, ठाणे, यवतमाल, नागपुर, नासिक और पुणे प्रमुख है. हिंदी भाषी राज्यों जैसे बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, चंडीगढ़ और दिल्ली में भी पाए जाते हैं. बिहार में यह मुख्य रूप से नालंदा, गया, भागलपुर, नवादा और पटना जिलों में पाए जाते हैं.
पटवा की उपजातियां
काम के आधार पर इनकी प्रमुख उपजातियां हैं- खंडवा, लोहेरा, नेमा, श्रीवास्तव, देववंशीबैश , कचेरा और नरोवा, जो बाद में उनके पारंपरिक जाति व्यवसाय में विशेषज्ञता के आधार पर विकसित हुए. पटवा को पारंपरिक रूप से कुछ क्षेत्रों में पटहर के रूप में भी जाना जाता है.
पटवा जाति के सरनेम
इनके द्वारा समुदाय का नाम (पटवा) उपनाम के रूप में प्रयोग किया जाता है. लेकिन हाल ही में, लोगों ने गुप्ता, गुप्त, शर्मा, वर्मा, वर्मन, गोयल, माहेश्वरी, खंडेलवाल आदि जैसे कई उपनामों को अपनाया है.
पटवा किस धर्म को मानते हैं?
यह हिंदू समुदाय हैं. यह देवी भगवती और जगदंबा समेत अन्य हिंदू देवी देवताओं की पूजा करते हैं.
पटवा शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
पटवा शब्द की उत्पत्ति हिंदी शब्द पट से हुई है जिसका अर्थ रेशम होता है. जो लोग रेशम और सूती धागे के व्यवसाय में लगे होते हैं उन्हें पटवा कहा जाता है. THE TRIBES AND CASTES OF THE CENTRAL PROVINCES OF INDIA किताब जो 1916 में R. V. Russell के द्वारा लिखी गयी थीं के अनुसार पटवा ओसवाल बनिया के अंतर्गत आते हैं और इन्हें लखेरा का ही पर्यायवाची माना गया है.
पटवा की उत्पत्ति कैसे हुई?
PEOPLE OF INDIA MAHARASHTRA VOLUME XXX PART THREE जिसके लेखक B.V. Bhanu, B.R. Bhatnagar,
D.K. Bose, V.S. Kulkarni, J. Sreenath हैं. यह पुस्तक को 2004 में पॉपुलर प्रकाशन के द्वारा प्रकाशित की गयी हैं. इनके उत्पति के बारे में एक किवदंती बतायी गयी है. जो इस प्रकार है.
पटवा भगवान विष्णु के हृदय से उत्पन्न हुए हैं और इस प्रकार, वे स्वयं को देववंशी भी कहते हैं। भगवान शंकर और पार्वती के विवाह के समय, दुल्हन पक्ष की ओर से समारोह को संपन्न करने के लिए कोई ब्राह्मण पुजारी नहीं था, हालांकि ब्रह्मा उसी उद्देश्य से दूल्हे की ओर से थे। ऐसी स्थिति में भगवान विष्णु के हृदय से एक युगल की उत्पत्ति हुई और पुरुष को वधू पक्ष के लिए पुरोहित गतिविधियों को करने के लिए निर्देशित किया गया। विवाह समारोह के बाद, भगवान विष्णु ने उस व्यक्ति को रेशम के धागे और सूती धागे के व्यवसाय के माध्यम से अपनी आजीविका बनाए रखने का सुझाव दिया और इस प्रकार, समुदाय का नाम पटवा रखा गया. इस पुस्तक में यह भी कहा गया है की समुदाय के अस्तित्व का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों जैसे स्कंधपुराण, ब्रह्मनोथ- पथ मार्थंड और ब्राह्मण निर्णय में भी मिलता है.
गया के पटवा जाति का इतिहास
कहा जाता है कि अकबर के नवरत्नों में से एक राजा मानसिंह ने पटवा को राजस्थान से स्थानांतरित करके,
बिहार के गया जिले में फल्गु नदी के तट पर स्थित, विष्णुपद मंदिर के दूसरी ओर बसाया था. हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पिंडदान पूजा के समय कपड़े का एक टुकड़ा देना अनिवार्य है. इसी मांग को पूरा करने के लिए राजा मानसिंह ने पटवा को गया में बसाया था. गया में पटवा समुदाय की एक कॉलोनी है, जिसे राजा मान सिंह के सम्मान में मानपुर कहा जाता है. यहां आज भी सूती के कपड़े बनाए जाते हैं.
IIT village of India Patwa Toli
बिहार में अत्यंत पिछड़ी जाति के अंतर्गत आने वाला पटवा समाज शिक्षा के प्रसार के कारण अन्य जातियों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया है. यहां यह समाज बड़ी संख्या में IIT इंजीनियर को पैदा करने के लिए जाना जाता है. बेहद कम आबादी वाला यह समाज साल 1996 से लेकर अब तक 400 से ज्यादा IIT इंजीनियरों को पैदा कर चुका है. पटवाटोली, गया जिले के मानपुर ब्लॉक में एक इलाका है, जो भारत के बिहार में परंपरागत रूप से बुनकरों के लिए जाना जाता है, लेकिन अब IIT village of India के नाम से मशहूर है. इलाके में 1,000 घरों में कम से कम एक इंजीनियर है