Ranjeet Bhartiya 18/06/2022

Last Updated on 18/06/2022 by Sarvan Kumar

यादवों का इतिहास हमेशा से गौरवशाली रहा है. यदुवंशी क्षत्रियों के द्वारा कई रियासतों को स्थापित किया गया था. लेकिन इतिहास के किताबों में यदुवंशियों के समृद्धिशाली रियासतों को वह स्थान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे. आइए जानते हैं यादव रियासतों के बारे में-

यादव रियासत

नराजोल राज (Narajole Raj)

नराजोल राज पश्चिम मेदिनीपुर जिले के नराजोल में स्थित एक मध्ययुगीन शाही राजवंश था और बाद में ब्रिटिश शासन काल के दौरान यह एक जमींदारी स्टेट  (zamindari estate) था. पत्रकार, समाजशास्त्री, लेखक और शोधकर्ता बिनॉय घोष (14 जून 1917 – 24 जुलाई 1980) के अनुसार, सदगोप समुदाय से ताल्लुक रखने वाले उदय नारायण घोष ने इस शाही राजवंश की स्थापना की थी. बता दें कि सदगोप बंगाली हिंदू यादव जाति की एक उपजाति है, जो भारत में पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, झारखंड और बिहार राज्य के कुछ हिस्सों में पाई जाती है.

मिदनापुर राज (Midnapore Raj)

मिदनापुर राज को कर्णगढ़ राज (Karnagarh Raj) के नाम से भी जाना जाता है. यह पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले में स्थित है. मध्यकाल में सदगोप यादवों द्वारा इस राजवंश की स्थापना की गई थी. ब्रिटिश शासन काल के दौरान यह पश्चिम बंगाल की एक प्रसिद्ध जमींदारी थी.

सुरुल राज (Surul Raj)

सुरुल राज, औपनिवेशिक युग के दौरान, भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में बीरभूम जिले के बोलपुर उपखंड में सदगोप यादवों की एक जमींदारी थी.

कालिकापुर राज (Kalikapur Raj)

कालिकापुर राज, अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान, पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले में सदगोप यादवों का एक जमींदारी एस्टेट था.

हदल नारायणपुर राज (Hadal Narayanpur Raj)

पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले में स्थित हदल नारायणपुर राज एक जमींदारी एस्टेट था. सदगोप समाज से ताल्लुक रखने वाले श्री मुचिराम घोष को बिष्णुपुर के राजा गोपाल सिंह ने हदल नारायणपुर और उसके आसपास के क्षेत्रों की जमींदारी के साथ मंडल (मंडलपति) की उपाधि प्रदान किया था.

मुरहो एस्टेट (Murho Estate)

मुरहो एस्टेट (1700–1949) बिहार के तत्कालीन भागलपुर जिले (जो वर्तमान में मधेपुरा जिले में है) में यादवों (अहीरों) की एक प्रसिद्ध जमींदारी (estate) थी.

बेलवरगंज एस्टेट (Belwargunj Estate)

बेलवारगंज एस्टेट बिहार राज्य में पटना जिले के मजरौत (Majhraut) में यादवों की एक जमींदारी थी.

तिनटंगा एस्टेट (Tintanga Estate)

तिनटंगा एस्टेट बिहार के भागलपुर जिले के नवगछिया में एक रियासत और बाद में एक उल्लेखनीय जमींदारी एस्टेट थी. बिहार के विभिन्न हिस्सों, झारखंड और यहां तक कि बंगाल के कुछ हिस्सों तक फैले तिनटंगा इस्टेट की स्थापना सदगोप यादवों द्वारा की गई थीं.

परसादी एस्टेट (Parasadi Estate)

परसादी एस्टेट (16 वीं शताब्दी-1949) बिहार के सारण जिले के परसा उपखंड में यादवों की एक जमींदारी थी.

नईगाँव रेबाई राज्य (Naigaon Rebai State)

नईगाँव रेबाई ब्रिटिश शासन काल के दौरान बुंदेलखंड में स्थित एक रियासत थी. इसकी स्थापना 1807 में ठाकुर लक्ष्मण सिंह जुदेव ने बांदा के नवाब को पराजित करके किया था.

जलीलपुर एस्टेट (Jalilpur Estate)

जलीलपुर जमींदारी का संबंध यदुवंशी क्षत्रियों से है. इसकी उत्पत्ति 1759 में हुई थी.

भिरावटी राज (Bhiraoti Raj)

भिरावटी रियासत की गिनती पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रतिष्ठित क्षत्रिय यादव राजवाड़ों में की जाती है.

शाहपुर बम्हेटा (Shahpur Bamheta)

शाहपुर बम्हेटा उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में स्थित यदुवंशी अहीरों का एक भूतपूर्व रियासत है.

रेवाड़ी रियासत

रेवाड़ी यदुवंशी क्षत्रियों की पौराणिक भूमि रही है. महाभारत काल के दौरान रेवत नाम के एक राजा थे. उनकी पुत्री का नाम रेवती था. राजा अपनी पुत्री को प्यार से रीवा बुलाया करते थे. राजा ने अपनी पुत्री नाम पर “रीवा वाडी” नामक नगर स्थापित किया. बाद में रीवा का विवाह भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम से हुआ. राजा ने अपनी बेटी को उपहार के रूप में “रीवा वाडी” दिया. कालांतर में “रीवा वाडी” नगर “रेवाड़ी” के रूप में जाना गया.

भिटी रावत रियासत ( Bhiti Rawat Riyasat)

यदुवंशी क्षत्रियों की यह प्रतिष्ठित रियासत उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के शहजनवा में स्थित है. भिटी रियासत के रावत यादव (अहीर) जाति से सम्बंध रखते है.

रूपधानी जमींदारी (Rupdhani Zamindari)

रुपधनी रियासत उत्तर प्रदेश के एटा जिले में स्थित है. आजादी से पूर्व, इस रियासत की सीमा में एटा मैनपुरी और फिरोजाबाद के सैकड़ों गांव शामिल थे.

महुराज रियासत

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जनपद बिजनौर में स्थित‌ यदुवंशी क्षत्रियों की का प्रतिष्ठित रियासत थी, जिसकी शुरुआत 18वीं सदी में रावल तानाजी ने की थी.

वाडियार राज्य (Wadiyar State)

पौराणिक कथा के अनुसार, वाडियार अपने वंश को भगवान कृष्ण से ढूंढते हैं. यह द्वारका से मैसूर पहुंचे और इस जगह की प्राकृतिक सुंदरता को देखकर मैसूर को अपना निवास स्थान बना लिया.

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