Ranjeet Bhartiya 22/12/2021
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Last Updated on 22/12/2021 by Sarvan Kumar

कसाब (Qassab) भारत और पाकिस्तान में पाई जाने वाली एक मुस्लिम जाति है. कभी-कभी अधिकांश कुरेश जाति के सदस्यों को भी कसाब के रूप में जाना जाता है. वर्तमान में, वह कसाब जो मांस काटने और बेचने के व्यवसाय में लगे हुए हैं, उन्हें कुरेशी के नाम से जाना जाता है.परंपरागत रूप से यह समुदाय जानवरों को वध कर मांस काटने और बेचने के व्यवसाय से जुड़ा रहा है. मांस बेचने के अलावा, यह समुदाय जानवरों की खरीद बिक्री और खाल के व्यापार में भी शामिल है. यह मुख्य रूप से उत्तर भारत में पाए जाते हैं. उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, बिहार और महाराष्ट्र में इनकी अच्छी खासी आबादी है. यह पूरे उत्तर प्रदेश और बिहार में पाए जाते हैं.उत्तर प्रदेश में कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी और फतेहपुर में इनकी बहुतायत आबादी है.राजस्थान में यह अजमेर, जयपुर, नागौर, जोधपुर और पाली जिले में पाए जाते हैं.महाराष्ट्र में यह समुदाय मुख्य रूप से अमरावती, बुलढाणा, अकोला, चंद्रपुर, नागपुर, पुणे, भिवंडी और मुंबई में पाए जाते हैं. यह सुन्नी इस्लाम को मानते हैं.यह हिंदी, उर्दू, हरियाणवी, मराठी और मेवाड़ी बोलते हैं. आइए जानते हैंं कसाब समुदाय का इतिहास, कसाब की उत्पत्ति कैसे हुई?

कसाब समुदाय का उप विभाजन

कसाब समुदाय दो प्रमुख उप समूहों में विभाजित है-बड़ा कसाब और छोटा कसाब. बैल, सांड और भैंस जैसे बड़े जानवरों का वध करने वाले बड़ा कसाब कहलाते हैं. जबकि, बकरी आदि छोटे जानवरों का वध करने वाले छोटा कसाब कहलाते हैं. महाराष्ट्र में यह समुदाय दो समूहों में विभाजित है, गाई कसाब और बकर कसाब. गाई कसाब बैल, और भैंस का मांस यानी की बीफ बेचने का काम करते हैं. जबकि, बकर कसाब मटन बेचने के व्यवसाय में शामिल है. समुदाय के आगे भी इनका विभाजन है और यह यह तीन समूहों में विभाजित हैं-चौधरी, सौदागोर और सिक्कू. उत्तर प्रदेश में, ‘बावर्ची’ कसाब के भीतर एक उप समूह है. उनका यह नाम उर्दू शब्द बावर्ची से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है- “रसोईया”. कहा जाता है कि कसाब समुदाय में व्यापक विभाजन तब हुआ, जब लखनऊ के एक कसाब समूह ने कसाई का काम छोड़कर खाना पकाने के व्यवसाई को अपना लिया. अब बावर्ची और पड़ोसी कसाब समुदायों के बीच विवाह संबंध नहीं है.

कसाब समुदाय की उत्पति

कसाब अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है-“कसाई”. कहा जाता है कि यह समुदाय मुस्लिम आक्रमणकारी मोहम्मद ग़ोरी की सेना के साथ भारत आया था.यह मुहम्मद ग़ोरी की सेना में सैनिक थे, और सेना को खिलाने के लिए जानवरों को हलाल करते थे. जब मोहम्मद ग़ोरी वापस लौट गया तो उसके कुछ लोग दिल्ली में ही रह गए, जिसमें कसाब (कुरैशी) भी शामिल थे. पंजाबी कसाब कई राजपूत जनजातियों, जैसे कि भट्टी या खोखर, के वंशज होने का दावा करते हैं. इनका मानना है कि इनके पूर्वजों में से एक ने कसाई का व्यवसाय अपना लिया था. कश्मीर घाटी के कसाब को “गनई” के नाम से जाना जाता है. लेकिन सभी गनई कसाब या कसाई नहीं हैं. कई समाजशास्त्री और मानवविज्ञानी  मानते हैं कि कश्मीरी गनई मूल रूप से ब्राह्मण थे. 16वीं शताब्दी में कश्मीर में इस्लाम के आगमन के साथ ही यहां रहने वाले कसाई समुदाय ने धीरे धीरे “गनई” नाम अपना लिया. कहा जाता है कि महाराष्ट्र के कसाब हैदराबाद से अमरावती आए थे, और यह हैदराबाद के निज़ाम की सेना में सैनिक थे. अभी भी यह उर्दू की दखनी बोली बोलते हैं.

कसाब समुदाय के प्रमुख व्यक्ति

बॉलीवुड कलाकार: हुमा कुरैशी और साकिब सलीम कुरेशी

प्रशासक: एस वाई कुरैशी (भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त)

राजनेता: याकूब कुरैशी, अजीज कुरैशी (मिजोरम के 15वें गवर्नर)

संगीत: फजल कुरेशी (तबला वादक)

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