
Last Updated on 13/01/2022 by Sarvan Kumar
रबारी (Rabari) भारत में पाई जाने वाली एक प्राचीन जाति है. मूल रूप से यह एक चरवाहा जाति है. इनका पारंपरिक कार्य कृषि और पशुपालन है. इन्हें रैबारी, राईका, गोपालक और देवासी के नाम से भी जाना जाता है. यह एक क्षत्रिय जाति है इस जाति के लोग निडर, साहसी और बेहद ईमानदार होते हैं. इन्हें भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. राजस्थान के जालौर, सिरोही और पाली जिलों में इन्हें रबारी देवासी कहा जाता है. वहीं, उत्तरी राजस्थान, जयपुर और जोधपुर जिलों तथा हरियाणा और पंजाब में में इन्हें राईका के नाम से जाना जाता है. मध्य राजस्थान और गुजरात में यह देवासी, मालधारी, रबारी आदि नामों जाने जाते हैं. परंपरागत रूप से इनका मुख्य व्यवसाय पशुपालन ही था. राजस्थान के कच्छ क्षेत्र में निवास करने वाले रबारी उत्तम कोटि के ऊंटों को पालते आए हैं. वहीं, गुजरात और उत्तर प्रदेश में निवास करने वाले रबारी, गाय, भैंस, भेड़, बकरी आदि पशुओं को भी पालते हैं. आइए जानते हैं रबारी समाज का इतिहास, रबारी शब्द की उत्पति कैसे हुई?
रबारी समाज का इतिहास
पौराणिक मान्यता के अनुसार इनकी उत्पत्ति भगवान शिव से हुई है. भगवान शिव ने इन्हें माता पर्वती के ऊंटों की देखभाल के लिए उत्पन्न किया था.गुजरात उत्तर प्रदेश और सौराष्ट्र में निवास करने वाले रबारी जीविका के लिए कृषि भी करते हैं. भारत में कृषि मुख्य रूप से वर्षा पर निर्भर है. वर्षा की अनियमितता, बढ़ते औद्योगीकरण और भूमि की कमी के कारण इस जाति के लोगों ने जीविका के लिए अन्य व्यवसायों को को भी अपनाने लगे हैं. शिक्षा और रोजगार के आधुनिक अवसरों का लाभ उठाकर यह अब सभी क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं. भारत में इनकी जनसंख्या लगभग एक करोड़ के आसपास है. यह मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में पाए जाते हैं. यह नेपाल और पाकिस्तान सिंध प्रांत में भी निवास करते हैं. यह मुख्य रूप से हिंदू धर्म को मानते हैं. यह हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों जैसे नवरात्री, दीपावली, होली और जन्माष्ठमी शादी को धूमधाम से मनाते हैं. शोधकर्ताओं और इतिहासकारों के अनुसार, रबारी शब्द की उत्पत्ति फारसी भाषा के शब्द “रहबर” से हुई है, जिसका अर्थ होता है-मार्गदर्शक, पथ प्रदर्शक और रास्ता दिखाने वाला.

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