
Last Updated on 13/03/2023 by Sarvan Kumar
भारत में वंशावली लेखन की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. तीर्थ पुरोहितों के अभिलेखों में देश भर के राजाओं, महाराजाओं, साधु-संतों, राजनेताओं और आम लोगों के परिवारों की वंशावली मौजूद है. इन वंशावलियों में जातियों, कुलों, उपजातियों का भी उल्लेख मिलता है, जो भारतीय संस्कृति और सामाजिक इतिहास का प्रमाण है. वंशावलियों से हमें अपने गौरवशाली अतीत की जानकारी मिलती है. आइए इसी क्रम में जानते हैं राजभर वंशावली के बारे में.
राजभर वंशावली
राजभर वंशावली जानने से पहले इस समुदाय से जुड़े कुछ ऐतिहासिक तथ्यों को जान लेना आवश्यक है. भारत को छोटी-छोटी रियासतों में कैसे बांटा गया, यह जानना भी जरूरी है. राजभर भारत में रहने वाली एक मूल जाति है, जो वैदिक काल से भारत में मौजूद है. प्रारम्भ में इस समुदाय को भरत के नाम से जाना जाता था. समय के साथ इस समुदाय में कई बदलाव हुए और अलग-अलग समय में इसे अलग-अलग नामों से संबोधित किया गया जैसे कि भर, भारशिव और राजभर. इतिहासकारों का मानना है कि लगभग 2000 वर्ष पूर्व भारत में इस जाति के लोगों का शासन था. कुषाण साम्राज्य के पतन के बाद और गुप्त साम्राज्य के उदय से पहले तीसरी और चौथी शताब्दी के दौरान उत्तर-मध्य भारत के कुछ हिस्सों पर नागा राजवंश ने शासन किया, जिसे आधुनिक इतिहासकार वाकाटक राजवंश के अभिलेखों में भारशिव के नाम से पहचानते हैं. हर्षवर्धन के बाद भारत छोटी-छोटी रियासतों में बंट गया. इनमें से कई रियासतों पर राजभर शासकों का शासन था.
एम.बी. राजभर ने अपनी पुस्तक “भर/राजभर साम्राज्य” में तीन महत्वपूर्ण राजभर वंशों का उल्लेख किया है – भारशिव वंश, कटक वंश और कर्कोटक वंश (The Karkotaka Dynasty). इस पुस्तक में भर वंश के अनेक सम्राटों के बारे में विस्तार से बताया गया है, उनमें से कुछ महत्वपूर्ण सम्राटों का उल्लेख हम नीचे कर रहे हैं-
•महाराजा केरारवीर (जौनपुर)
•महाराजा नल (लखनऊ)
•महाराजा भारद्वाज (अवध)
•महाराजा खीरधर (श्रावस्ती)
•राजा नन्दुक (मनियागढ़)
•महाराजा बारा (बाराबंकी)
•महाराजा तिलोकचन्द (बहराइच)
•महाराजा परिक्षित (आजमगढ़).
•महाराजा मदन (मिर्जापुर).
•राजा मानदेव (प्रतापगढ़)
•राजा दलदेव (रायबरेली)
•अल्देव और मल्देव (प्रतापगढ़)..
•महाराजा मंगलसेन (अवध).

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