
Last Updated on 10/12/2021 by Sarvan Kumar
रंगरेज (Rangrez) भारत और पाकिस्तान में पाई जाने वाली एक जाति है. इन्हें आलिया रंगरेज या रंगराजू के नाम से भी जाना जाता है. परंपरागत रूप से यह समुदाय कपड़ों की रंगाई का काम करता है. उत्तर प्रदेश में यह समुदाय मुख्य रूप से भूमिहीन है. रोहिलखंड क्षेत्र में निवास करने वाले रंगरेज पर्याप्त भूमि के मालिक हैं. अन्य व्यवसायिक जातियों के भांति, इनके पारंपरिक व्यवसाय में गिरावट होने के कारण यह अब अपने पारंपरिक व्यवसाय को छोड़कर विभिन्न प्रकार के जीविका के अन्य विकल्पों और अन्य व्यवसायिक गतिविधियों में शामिल होने लगे हैं. इनमें से कुछ छोटे किसान हैं। इस समुदाय के कई सदस्य शिक्षित हैं, जो सरकारी नौकरी या निजी क्षेत्र में कार्यरत हैं. आइए जानते हैं रंगरेज समाज का इतिहास, रंगरेज की उत्पति कैसे हुई?
रंगरेज कहां पाए जाते हैं?
हिंदू रंगरेज मुख्य रूप से राजस्थान के मारवाड़, बिहार और उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं. मुस्लिम रंगरेज मुख्य रूप से उत्तर भारत में पाए जाते हैं. उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, गुजरात, दिल्ली और राजस्थान में इनकी अच्छी खासी आबादी है. उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से पीलीभीत, बरेली, कानपुर, औरैया, इटावा, आगरा, फिरोजाबाद, अलीगढ़, एटा, कासगंज और मुजफ्फरनगर जिलों में निवास करते हैं. राजस्थान में पाए जाने वाले रंगरेज समुदाय के लोग मोहम्मद गौरी के शासनकाल में दिल्ली से आकर यहां बसने का दावा करते हैं. यहां यह मुख्य रूप से अलवर, जयपुर, सीकर और सवाई माधोपुर जिलों में पाए जाते हैं. बिहार में मुख्य रूप से पटना, सिवान, सारण, मुंगेर, गया, भागलपुर और मुजफ्फरपुर जिलों में पाए जाते हैं. गुजरात में यह मुख्य रूप से सूरत, अहमदाबाद, बड़ोदरा, अंकलेश्वर, पाटन और वागरा जिलों में निवास करते हैं.इस समुदाय के कई सदस्य आजादी के बाद पाकिस्तान चले गए और कराची, सिंध में जाकर बस गए. धर्म से यह हिंदू और मुसलमान दोनों हो सकते हैं. मुस्लिम रंगरेज सुन्नी इस्लाम को मानते हैं. वह उत्तर भारत में पाए जाने वाले विभिन्न सूफी संतों जैसे ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के दरगाहो पर इबादत के लिए जाते हैं.यह हिंदी, उर्दू, अवधी और भोजपुरी भाषा बोलते हैं.
रंगरेज उप विभाजन
व्यवसायिक आधार पर रंगरेज समुदाय मुख्य रूप से तीन उप समूहों में विभाजित है-लालगढ़, नीलगढ़ और छिपी. इस सामाजिक पदानुक्रम में, छिपी सबसे नीचे आते हैं, क्योंकि यह कपड़े रंगती और छापते हैं. लालगढ़ और नीलगढ़ आमतौर पर नील (Indigo) से रंग तैयार करते हैं. परंपरागत रूप से लालगढ़ और नीलगढ़ उप समूहों में आपस में विवाह संबंध भी हैं. तीन प्रमुख उप समूहों के बाद, रंगरेज समाज कई भारी कुलों या बिरादरी में विभाजित है. उत्तर प्रदेश में पाया जाने वाला रंगरेज समुदाय कई बिरादरी या कुलों में विभाजित है, जैसे-सैयद, चीपा, चंदेलवाल, घोसी, सिद्धकी, उस्मानी, शेख और खत्री. राजस्थान में यह समुदाय कई किलो में विभाजित है, जिनमें प्रमुख हैं-खिलजी, चौहान, बगड़िया, तुगलक, सिंघानिया, गोरी, सोलंकी, अरब, सनमपारिया, सबुका और जजोंदिया.

रंगरेज शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
रंगरेज फारसी भाषा का एक शब्द है, इसका अर्थ होता है- “रंगने वाला (Dyer)”. कपड़ों की रंगाई के पारंपरिक व्यवसाय से जुड़े होने के कारण इस जाति का नाम रंगरेज पड़ा.
रंगरेज जाति का इतिहास
रंगरेज समुदाय के लोग मध्य एशियाई मूल का होने का दावा करते हैं. इनमें से कुछ के तुर्क मूल के होने की संभावना है. इनमें से कई हिंदू धर्मांतरित हैं, जो हिंदू रंगरेज जाति से धर्मांतरित होकर मुस्लिम रंगरेज बन गए. इनके पारिवारिक वंशावली रिकॉर्ड के अनुसार, इस बात की काफी संभावना है कि इस समुदाय के कुछ सदस्य विदेशी मूल के हैं, जो समय के साथ एक ऐसे समुदाय में विकसित हो गए जो वर्तमान में अंतर विवाह नियमों से बंधा हुआ है. वैज्ञानिक अध्ययन में, भारत में निवास करने वाले अंग्रेजों में पठान और सैयद के समान डीएनए इंटरमिक्सिंग नहीं देखी गई है. इससे यह पता चलता है कि यह समुदाय मध्य जाति के हिंदू धर्मांतरित हैं और इनका मुस्लिम राजपूतों, मेवाती या कायमखानी से कोई लेना देना नहीं है.
