
Last Updated on 07/10/2022 by Sarvan Kumar
साधु-संत यूं ही महान नहीं बन जाते. उन्हें भी अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए, समाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए और ईश्वर की प्राप्ति के लिए कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. उनसे ईश्वर और समाज दोनों के द्वारा कई प्रकार की परीक्षाएं ली जाती है. इन परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के बाद ही उन्हें सिद्धि मिलती है और समाज उन्हें स्वीकार करता है. संत रविदास एक महान सिद्ध संत थे. लेकिन सिद्धि प्राप्त करने और समाज द्वारा स्वीकार किए जाने से पहले उन्हें भी कई तरह की परीक्षाओं से गुजरना पड़ा. आइए जानते हैं रविदास की परीक्षा के बारे में.
रविदास की परीक्षा
भगवान की लीला अपरंपार है. भगवान को कृपा का सागर और दया सिंधु माना जाता है. लेकिन भगवान कृपा करने से पहले भक्तों की परीक्षा भी बहुत लेते हैं. भगवान यह देखने के लिए परीक्षा लेते हैं कि वह व्यक्ति उनके कृपा का पात्र है या नहीं. जिसमें धैर्य होता है, जिसके मन में लोभ, लालच और अहंकार नहीं होता तथा जिसका मन पवित्र होता है, भगवान उसी पर अपनी कृपा दृष्टि डालते हैं. यूं तो कई वृतांत है जहां पर भगवान ने रविदास जी की भक्ति की परीक्षा ली. यहां हम एक प्रसिद्ध वृतांत का उल्लेख कर रहे हैं.
भगवान कृष्ण स्वयं रविदास जी की ली परीक्षा
संपत्ति के नाम पर रविदास के पास केवल एक छोटी सी झोपड़ी थी. वह इसी झोपड़ी में अपनी पत्नी के साथ रहते थे. जीवन निर्वाह के लिए जूते बनाने का काम करते थे. जो कुछ कमाते उसी में संतोष से रहते. कभी-कभी उन्हें अपनी पत्नी समेत भूखे पेट भी सोना पड़ जाता था. लेकिन फिर भी कभी इनके मन में धन दौलत के लिए लालच नहीं आया. वह किसी दूसरे के धन को छूना भी पाप समझते थे. एक किवदंती के अनुसार एक बार एक साधु रविदास जी के घर आए. रविदास जी ने उनका बहुत आदर सत्कार किया. रविदास जी की नि:स्वार्थ भाव और श्रद्धा-भक्ति से साधु अति प्रसन्न हुए. उन्होंने रविदास जी की निर्धनता दूर करने के लिए पारसमणि देनी चाही, जो लोहे को छूते हीं सोना बना देती है. रविदास जी ने पारसमणि को यह कहते हुए लेने से इंकार कर दिया कि उनके लिए राम से बड़ा धन कुछ नहीं है. लाख जतन करने के बाद भी जब रविदास जी ने पारसमणि स्वीकार नहीं किया तो साधु थक हार कर पारसमणि को उनकी झोपड़ी के छप्पर में खोंस कर चले गए. लगभग 13 महीने बाद जब वह फिर आए तो उन्हें पारसमणि यथास्थान रखी मिली. रविदास जी ने उसे छुआ तक नहीं था. कहा जाता है कि साधु के भेष में भगवान कृष्ण स्वयं रविदास जी की परीक्षा लेने आए थे.
ब्राह्मणों को घमंड तोड़ा
साधु संतों की परीक्षा केवल भगवान ही नहीं लेते बल्कि समाज भी लेता है. रविदास की जी के समय में समाज कई प्रकार के कुरीतियों से ग्रस्त था जैसे कि जातिवाद, पाखंड आदि. रविदास जी ने समाज में व्याप्त इन कुरीतियों का विरोध किया और लोगों को सही रास्ता दिखाना शुरू किया. धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि फैलने लगी जिससे काशी के पाखंडी पुरोहितों को ईर्ष्या होने लगी. उन्होंने काशी के राजा से शिकायत कर दी कि रविदास जी एक शूद्र होते हुए भी भगवान की पूजा रहे हैं और धर्म प्रचार कर रहे हैं. काशी के राजा भी शूद्र द्वारा धर्म प्रचार को उचित नहीं मानते थे. इसीलिए उन्होंने परीक्षा लेने के लिए रविदास जी को बुलाया. दरबार में पाखंडी ब्राह्मणों और रविदास जी के काफी समय तक वाद विवाद हुआ. फिर काशी नरेश ने शास्त्रार्थ की घोषणा कर दी. ब्राह्मणों ने देखा कि उनकी हार निश्चित है, इसीलिए हार जीत के फैसले के पहले ही शास्त्रार्थ को टाल दिया गया. बाद में यह तय हुआ कि दोनों पक्ष भगवान की मूर्ति का आह्वान करेंगे और जिसके आह्वान से मूर्ति गोद में आकर बैठेगी उसी को विजयी घोषित किया जाएगा. ब्राह्मणों को घमंड था कि रविदास जी शुद्र हैं, तो उनके आह्वान से भगवान कैसे एक शूद्र के पास चले जाएंगे. लेकिन हुआ इसके विपरीत, जब दोनों पक्षों ने भगवान की मूर्ति का आह्वान किया तो मूर्ति ब्राह्मणों के पास ना जाकर रविदास जी के गोद में आ गई. इस घटना के बाद ब्राह्मण अत्यंत ही लज्जित हुए और संत रविदास जी को सिंहासन पर बैठा कर पूरे शहर में घुमाया गया. इस प्रकार से इस परीक्षा में भी संत रविदास जी उत्तीर्ण हो गए और समाज में उनकी ख्याति और बढ़ गई.
References;
•Sant Ravidas
By Manish Kumar · 2021
Publisher:Prabhat Prakashan
•Mahakavi Ravidas Samaj Chetna Ke Agradut
By Dr. Vijay Kumar Trisharan · 2008
Publisher:Gautam Book Centre
•Gandhiji in South Africa
By M.K. Gandhi · 2021
Publisher:Prabhat Prakashan

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