Sarvan Kumar 15/02/2023
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Last Updated on 15/02/2023 by Sarvan Kumar

आज कोई रामचरितमानस के बारे में अनाप-शनाप कह रहा है तो कोई भगवान राम को काल्पनिक बता रहा है. पर आज से 400 साल से भी पहले भारत के पावन धरती पर एक महामानव ने जन्म लिया था जिन्होंने अपने भक्ती के बल पर भगवान श्रीराम के साक्षात दर्शन किए थे.एक राष्ट्र भक्त संत के रूप से जाने जाने वाले इस महापुरुष का नाम समर्थ रामदास था. उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर छत्रपति महाराज शिवाजी ने उन्हें अपना गुरु माना था .आज उनकी जयंती है, इस शुभ अवसर पर आइए जानते है गुरू समर्थ रामदास (sant samarth ramdas) की बारे में 10 रोचक जानकारी.

गुरू समर्थ रामदास के बारे में 10 रोचक जानकारी

गुरू रामदास (1606 – 1682) महाराष्ट्र के एक प्रसिद्ध सन्त थे। उन्होने दासबोध नामक एक ग्रन्थ की रचना की जो मराठी में है। 12 वर्ष तक वे भारतवर्ष का भ्रमण करते रहे। घुमते घुमते वे हिमालय आये। हिमालय का पवित्र वातावरण देखने के बाद मूलतः विरक्त स्वभाव के रामदास जी के मन का वैराग्यभाव जागृत हो गया। अब आत्मसाक्षात्कार हो गया, ईश्वर दर्शन हो गया, तो इस देह को धारण करने की क्या जरुरत है ? ऐसा विचार उनके मन में आया। उन्होंने खुद को 1000 फीट से मंदाकिनी नदी में झोंक दिया। लेकिन उसी समय प्रभु श्रीराम ने उन्हें ऊपर उठ लिया और धर्म कार्य करने की आज्ञा दी। अपने शरीर को धर्म के लिए अर्पित करने का निश्चय उन्होंने कर लिया।

1. समर्थ रामदास का जन्म राम नवमी के दिन सन 1608 को महाराष्ट्र के जालना गाँव में ब्राह्मण परिवार में हुआ. उनके पिता का नाम सूर्यजीपन्त और माँ का नाम राणुबाई था.

2. समर्थ रामदास का असली नाम ‘नारायण सूर्याजीपंत कुलकर्णी’ था.

3. बचपन में ही उन्हें साक्षात प्रभु रामचंद्रजी के दर्शन हुए थे. इसलिए वे रामदास कहलाते थे.

4. उस समय महाराष्ट्र में मराठों का शासन था. शिवाजी महाराज रामदासजी के कार्य से बहुत प्रभावित हुए तथा जब इनका मिलन हुआ तब शिवाजी महाराज ने अपना राज्य रामदासजी की झोली में डाल दिया. समर्थ गुरु रामदास छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु थे.

5.रामदास शिवाजी से कहते हैं “यह राज्य न तुम्हारा हैं न ही मेरा. यह राज्य श्री राम का हैं. हम सिर्फ न्यासी हैं”

6.उन्होंने युवाओं के यह बताया कि युवा उर्जा से ही मजबूत राष्ट्र की स्थापना की जा सकती हैं. उन्होंने जगह-जगह व्यायाम एवं कसरत करने के लिए व्यायामशाला की स्थापना की एवं हनुमान जी की मूर्ति लगाकर नियमित पूजा करने की सलाह दी.

7. 12 साल की उम्र में नारायण के माता-पिता उनका विवाह करा देना चाहते थे लेकिन वह इस विवाह से बिलकुल भी खुश नहीं थे. वह जानते थे कि उन्हें कहाँ जाना हैं. विवाह के दिन वह मंडप से भाग गए जिसके बाद वह कभी भी घर वापस नहीं गए.

8.12 वर्ष तक कठिन तपस्या करने के बाद उन्हें भगवान राम के साक्षात्कार हुए. जब उन्हें आत्मसाक्षात्कार हुए तब उनकी आयु मात्र 24 वर्ष थी.

9. तीर्थ यात्रा करते हुए वे श्रीनगर आए। वहाँ उनकी भेंट सिखोंके के गुरु हरगोविंद जी महाराज से हुई। गुरु हरगोविंद जी महाराज ने उन्हें धर्म रक्षा हेतु शस्त्र सज्ज रहने का मार्गदर्शन किया.

10.एक शिल्पकार ने प्रभु राम, माता सीता और लक्ष्मण की मूर्ति बनाकर उन्हें भिजवायी थी। समर्थ गुरु रामदास पांच दिन तक उस देव प्रतिमा के आगे निर्जल उपवास कर 1682 ईस्वी में 73 वर्ष की आयु में पद्मासन में बैठकर रामनाम का जाप करते हुए ब्रह्मलीन हो गये थे

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