
Last Updated on 28/01/2019 by Sarvan Kumar
“कर चले हम फिदा जानो तन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों “
वो अपनी जान देकर देश की विरासत हमारे हवाले छोड़ गए.
हम उनकी विरासत कैसे संभाल के रखे हैं ये तो सभी जानते हैं .
उनकी कुर्बानी को हम थोड़ा भी समझ पाते तो हमारा देश कहीं और होता.
जब खुदीराम बोस फांसी पर चढ़े थे तो उनकी आयु केवल 18 साल 18 महीने और 8 दिन था .
3 दिसंबर 1889 को जन्मे खुदीराम बोस को 11 अगस्त 1908 को फांसी के फंदे से लटका दिया गया था.
फांसी के समय भी खुदीराम बोस को तनिक भी अफसोस नही था. खुदीराम बोस ने हँसते हुये वंदे मातरम गाते हुये मौत को गले लगा लिया.
महात्मा गांधी और उन जैसे महान लोगों को खुदीराम के फांसी पर कोई अफसोस नही हुआ , वो खुदीराम के फेंके हुये बम से मारे गए 2 अंग्रेज महिलाओं के प्रति दुख प्रकट कर रहे थे.
सवाल ये है कि क्या वो पागल थे य़ा बेवकूफ- हमें समझना होगा कि उनकी जान हमारे कारण से गयी थी.
वे अपनी नही हमारी लड़ाई लड़ रहे थे.
दासता कैसे किसी को स्वीकार हो सकता है.
अपने ही लोगों पर कोई बाहरी लोगों का जुल्म और अत्याचार कैसे सहन कर सकता है.
जिस अंग्रेज जज किंग्सफर्ड को खुदीराम बोस और उनके साथी क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी सजा-ए -मौत देना चाहते थे वो क्या भला आदमी था वो अतयंत ही क्रूर और निर्दय जज था.
अपने क्रूर फैसले से वो भारतीय लोगों पर जुल्म ढ़ाय़ा करता था.
दिल्ली से कोलकता जाते हुये मुजफ्फरपुर से आगे लगभग 38 KM की दुरी पर खुदीराम बोस पूसा स्टेशन आता है यहीं पर खुदीराम बोस को पकड़ लिया गया था.
रेल की पटरी को ही सड़क मानकर लगभग 25 मील दौड़ते रहे थे खुदीराम.
जब भागते- भागते थक के चूर हो गए तो इसी स्टेशन पर वो आराम करने ठहर गये.
भूख से बेहाल खुदीराम ने भुंजी लाय लेकर खाना शुरू किया.
प्यासे खुदीराम ने दुकानदार से पानी मांगा.
दुकानदार ने जो किया उसके लिए देश उसे कभी माफ नही करेगा. उसको खुदीराम बोस पर शक हो गया उसने पुलिस को सूचना दे दी और एक शेर पकड़ा गया.
अब ये लेख पढ़कर कितनों के आँख मे आंसू आयेंगे और कितनो को नही इसका अंदाजा हम नही लगा सकते. लेकिन उस समय भी देश के बहुत से आँखों में आंसू की एक बुंद भी नही टपका सिर्फ पांच दिन हुये ट्रायल में उनको मौत की सजा सुना दी गयी.
कुछ लोग कह सकते हैं कि खुदीराम बोस निर्दोष लोगों को मार दिया पर खुदीराम बोस ने जानबूझकर ऐसा नही किया था.
वो निर्दयी जज किंग्सफर्ड को सबक सिखाना चाहते थे.
इसके लिए खुदीराम और उनके दोस्त प्रफुल्ल ने चाकी ने लगभग 8 दिन तक किंग्सफर्ड की गतिविधियों पर नज़र रखा था.
मुजफ्फरपुर के एक बार से एक लाल रंग की कार निकली थी ठीक वैसा ही जैसा किंग्सफर्ड के पास थी. खुदीराम और उनके दोस्त ने किंग्सफर्ड की गाड़ी समझ के बम फेंक दिया था.
जिस कार पर बम फेंका था उसमे किंग्सफर्ड के अतिथी , उनकी पत्नी , लड़की और एक नौकर था.
नौकर और लड़की मौके पर ही मारे गए और पत्नी ने अस्पताल में दम तोड़ दिया.
कहा जा सकता है निर्दोष लोग मारे गए पर खुदीराम बोस को कतई ये अंदाजा नही था की कार में कोई और है.
अब सवाल ये उठता है कि खुदीराम बोस को इतना कष्ट झेलने की क्या ज़रूरत थी.
बचपन से ही खुदीराम बोस को दासता स्वीकार नही थी. केवल 15 साल की आयु में वे सक्रिय क्रांतिकारी बन गए थे. दो बार पकड़े भी गए थे पर कम उम्र के कारण उनको हिदायत देकर छोड़ दिया गया था.
कब और कहाँ हुआ था जन्म-
खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को बंगाल के
मेदिनीपुर ज़िले के छोटे से गाँव हबीबपुर में हुआ था.
उनके पिता का नाम त्रैलोक्य नाथ बोस और माता का नाम लक्ष्मीप्रिय देवी था.
क्या काम करते थे माता पिता
उनके पिता तहसीलदार थे और माँ धार्मिक स्वाभाव की घरेलू महिला थी।

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