Sarvan Kumar 18/11/2022
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Last Updated on 18/11/2022 by Sarvan Kumar

महाभारत प्राचीन भारत का सबसे बड़ा महाकाव्य है। ये एक धार्मिक ग्रन्थ भी है। विश्व का सबसे लंबा यह साहित्यिक  ग्रंथ और महाकाव्य, हिन्दू धर्म के मुख्यतम ग्रंथों में से एक है। इस ग्रन्थ को हिन्दू धर्म में पंचम वेद माना जाता है. महाभारत को महर्षि वेद व्यासजी ने लिखा था। महाभारत की रचना कब कि गई थी? इसका कोई सटीक उत्तर नहीं है। वास्तव में, जिस महाभारत का लिखित रूप आज हम देखते है उसका विकास लगभग हजार साल के कालखंड में हुआ है. इतिहास में इसकी रचना का कोई एक विशेष वर्ष तय नहीं किया गया है। आइए जानते हैं महाभारत की मुख्य कथा क्या है?

महाभारत की मुख्य कथा क्या है?

महाभारत कथा के मूल में महाभारत का युद्ध है जो द्वापर युग में हुआ था. एक तरफ पांडव थे और दूसरे तरफ कौरव. युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव इन पाँच भाईयों को पाण्डु पुत्र या पांडव के नाम से जाना जाता है.कौरव सेना में दुर्योधन सहित सौ भाईयों के अलावे महारथी भीष्म पितामह, गुरू द्रोणाचार्य, कुलगुरू कृपाचार्य, और कर्ण जैसे योद्धा भी थे. महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला. उस युद्ध में 10  दिनों तक भीष्म सेनापति थे. जब तक भीष्म सेनापति थे तब तक युद्ध नियमों अनुसार चलता रहा. भीष्म के बाद द्रोणाचार्य सेनापति बने. उसके बाद इस युद्ध में सभी नियम तोड़े गये. तेरहवें दिन अभिमन्यु का वध हुआ. पंद्रहवें दिन द्रोणाचार्य का मस्तक काटा गया. 17 वें दिन कर्ण की मृत्यु होती है और 18 वें दिन दुर्योधन की मृत्यु हुई। यह युद्ध हस्तिनापुर के राज सिंहासन के लिए हुआ था. युद्ध का परिणाम पांडवों के पक्ष में रहा और जीत के बाद युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया. महाभारत के युद्ध को धर्म और अधर्म के बीच का लड़ाई भी कहा जाता है. धर्म यानी पांडवों का साथ दे रहे थे द्वारकाधीश श्री कृष्णा. श्री कृष्णा पांडवों के साथ नहीं होते तो यह युद्ध पांडव कभी नहीं जीत पाते. श्री कृष्णा ने अधर्म का यानि कौरवों का नाश करने में पांडवों का साथ दिया. विश्व प्रसिद्ध गीता महाभारत का ही एक अंग है. जब अर्जुन का मन शोकाकुल हो गया था,  अपनो को ही सामने देख उनके हाथ शिथिल हो गए. जब अर्जुन  युद्ध के लिए तैयार नहीं हो रहे थे भगवान कृष्णा ने युद्ध भूमि में उपदेश ( गीता ) देकर कर्म की शिक्षा दी और अर्जुन के अशांत मन को शांत कर युद्ध के लिए तैयार किया. महाभारत में सिर्फ युद्ध का ही विवरण नही है इसमें इस काल खंड के प्रशानिक, सामाजिक, सांस्कृतिक हर तरह की जानकारियां दी गयी है. कौरवों और पांडवों के जन्म से लेकर मृत्यु तक की सारी घटनाक्रम को बड़े विस्तार से लिखा गया है.

महाभारत की कहानी संक्षिप्त में

महाभारत की कहानी का शुरुआत हस्तिनापुर से होती है. हस्तिनापुर को कौरवों के कुरु साम्राज्य के रूप में चित्रित किया गया है. वर्तमान में यह
भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के मेरठ जिले का एक शहर है. हस्तिनापुर में तब राजा शांतनु का शासन  था. पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध और बुध से इला-नन्दन पुरूरवा का जन्म हुआ. उनसे आयु, आयु से राजा नहुष और नहुष से ययाति उत्पन्न हुए। ययाति से पुरू हुए। पूरू के वंश में भरत और भरत के कुल में राजा कुरु हुए. कुरु के वंश में शान्तनु हुए।. शान्तनु से गंगानन्दन भीष्म उत्पन्न हुए. शान्तनु से सत्यवती के गर्भ से चित्रांगद और विचित्रवीर्य उत्पन्न हुए थे. चित्रांगद नाम वाले गन्धर्व के द्वारा मारे गये और राजा विचित्रवीर्य राजयक्ष्मा से ग्रस्त हो स्वर्गवासी हो गये. तब सत्यवती की आज्ञा से व्यासजी ने नियोग के द्वारा अम्बिका के गर्भ से धृतराष्ट्र और अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु को उत्पन्न किया.  धृतराष्ट्र ने गांधारी द्वारा सौ पुत्रों को जन्म दिया, जिनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था और पाण्डु के युधिष्टर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव आदि पांच पुत्र हुए. धृतराष्ट्र जन्म से ही नेत्रहीन थे, अतः उनकी जगह पर पाण्डु को राजा बनाया गया. एक बार वन में आखेट खेलते हुए पाण्डु के बाण से एक मैथुनरत मृगरुपधारी ऋषि की मृत्यु हो गयी.  उस ऋषि से शापित हो कि “अब जब कभी भी तू मैथुनरत होगा तो तेरी मृत्यु हो जायेगी”, पाण्डु अत्यन्त दुःखी होकर अपनी रानियों सहित समस्त वासनाओं का त्याग करके तथा हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र को अपना का प्रतिनिधि बनाकर वन में रहने लगें. पाण्डु के कहने पर कुन्ती ने दुर्वासा ऋषि के दिये मन्त्र से यमराज को आमन्त्रित कर उनसे युधिष्ठिर और कालान्तर में वायुदेव से भीम तथा इन्द्र से अर्जुन को उत्पन्न किया. कुन्ती से ही उस मन्त्र की दीक्षा ले माद्री ने अश्वनीकुमारों से नकुल तथा सहदेव को जन्म दिया. कुन्ती ने विवाह से पहले सूर्य के अंश से कर्ण को जन्म दिया और लोकलाज के भय से कर्ण को गंगा नदी में बहा दिया. शकुनि के छलकपट से दुर्योधन ने पाण्डवों को बचपन में कई बार मारने का प्रयत्न किया तथा युवावस्था में भी जब युधिष्ठिर को युवराज बना दिया गया तो लाक्ष के बने हुए घर लाक्षाग्रह में पाण्डवों को भेजकर उन्हें आग से जलाने का प्रयत्न किया, किन्तु विदुर की सहायता के कारण से वे उस जलते हुए गृह से बाहर निकल गये. विदुर को छोड़कर सभी पाण्डवों को मृत समझने लगे और इस कारण धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को युवराज बना दिया. गृहयुद्ध के संकट से बचने के लिए युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र द्वारा दिए खण्डहर स्वरुप खाण्डव वन को आधे राज्य के रूप में स्वीकार कर लिया. सम्पूर्ण दिशाओं पर विजय पाते हुए प्रचुर सुवर्णराशि से परिपूर्ण राजसूय यज्ञ का अनुष्ठान किया. उनका वैभव दुर्योधन के लिये असह्य हो गया अतः शकुनि, कर्ण और दुर्योधन आदि ने युधिष्ठिर के साथ जूए में प्रवृत्त होकर उसके भाइयो, द्रौपदी और उनके राज्य को कपट द्यूत के द्वारा हँसते-हँसते जीत लिया और कुरु राज्य सभा में द्रौपदी को निर्वस्त्र करने का प्रयास किया. परन्तु गांधारी ने आकर ऐसा होने से रोक दिया. धृतराष्ट्र ने एक बार फिर दुर्योधन की प्रेरणा से उन्हें से जुआ खेलने की आज्ञा दी. यह तय हुआ कि एक ही दांव में जो भी पक्ष हार जाएगा, वे मृगचर्म धारण कर बारह वर्ष वनवास करेंगे और एक वर्ष अज्ञातवास में रहेंगे. उस एक वर्ष में भी यदि उन्हें पहचान लिया गया तो फिर से बारह वर्ष का वनवास भोगना होगा. इस प्रकार पुन जूए में परास्त होकर युधिष्ठिर अपने भाइयों सहित वन में चले गये. वहाँ बारहवाँ वर्ष बीतने पर एक वर्ष के अज्ञातवास के लिए वे विराट नगर में गये. १२ वर्षो के ज्ञात और एक वर्ष के अज्ञातवास पूरा करने के बाद भी कौरवों ने पाण्डवों को उनका राज्य देने से मना कर दिया.युधिष्ठिर और दुर्योधन की सेनाएँ कुरुक्षेत्र के मैदान में जा डटीं. की सारी सेना के मारे जाने पर अन्त में उसका भीमसेन के साथ गदा युद्ध हुआ. भीम ने छ्ल से उसकी जांघ पर प्रहार करके उसे मार डाला. तत्पश्चात् युधिष्ठिर राजसिंहासन पर आसीन हुए.युधिष्ठिर ने संसार की अनित्यता का विचार करके परीक्षित को राजासन पर बिठाया और द्रौपदी तथा भाइयों को साथ ले हिमालय की तरफ महाप्रस्थान के पथ पर अग्रसर हुए. उस महापथ में युधिष्ठिर को छोड़ सभी एक-एक करके गिर पड़े। अन्त में युधिष्ठिर इन्द्र के रथ पर आरूढ़ हो (दिव्य रूप धारी) भाइयों सहित स्वर्ग को चले गये।वेदव्यास ने जो महाभारत ग्रंथ ‍की रचना की उसमें कुल आदि पर्व, सभा पर्व, वन पर्व, विराट पर्व, उद्योग पर्व, भीष्म पर्व, द्रोण पर्व, अश्वमेधिक पर्व, महाप्रस्थानिक पर्व, सौप्तिक पर्व, स्त्री पर्व, शांति पर्व, अनुशासन पर्व, मौसल पर्व, कर्ण पर्व, शल्य पर्व, स्वर्गारोहण पर्व तथा आश्रम्वासिक पर्व.अध्यायों को पर्व भी कहा जाता है. महाभारत के कई भाग हैं जो आमतौर पर अपने आप में एक अलग और पूर्ण पुस्तकें मानी जाती हैं. मुख्य रूप से इन भागों को अलग से महत्व दिया जाता है भगवद गीता श्री कृष्ण द्वारा भीष्मपर्व में अर्जुन को दिया गया उपदेश.  दमयन्ती अथवा नल दमयन्ती, अरण्यकपर्व में एक प्रेम कथा।कृष्णवार्ता : भगवान श्री कृष्ण की कहानी राम रामायण का अरण्यकपर्व में एक संक्षिप्त रूप. ॠष्य ॠंग एक ॠषि की प्रेम कथा।विष्णुसहस्रनाम विष्णु के १००० नामों की महिमा है.

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