Last Updated on 29/12/2021 by Sarvan Kumar
ओम प्रकाश राजभर ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1981 में बहुजन नायक के नाम से मशहूर, मान्यवर कांशीराम से प्रभावित होकर किया. वह बहुजन समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता बन गए. 15 साल तक पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में काम करने के बाद 1996 में वह बहुजन समाज पार्टी के जिला अध्यक्ष बनाए गए. 1996 में ही राजभर कोलअसला विधानसभा सीट से बसपा के प्रत्याशी बनाए गए, लेकिन चुनाव हार गए. राजभर को 1995 में पहली राजनीतिक सफलता मिली जब उनकी पत्नी वाराणसी जिला पंचायत में सदस्य चुनी गई. साल 2001 में भदोही का नाम बदलकर संतकबीरनगर रख दिया गया. इस बात को लेकर ओम प्रकाश राजभर और मायावती में विवाद हो गया. ओमप्रकाश राजभर का कहना था भदोही जिला उनकी जाति के इतिहास से जुड़ा हुआ है. नाम बदलने से भदोही में राजभरों का इतिहास मिट रहा था. इस नाराजगी के कारण उन्होंने बहुजन समाजवादी पार्टी छोड़ दिया. बहुजन समाजवादी पार्टी छोड़ने के बाद राजभर सोनेलाल पटेल से जुड़ गए और अपना दल में शामिल हो गए. लेकिन 1 साल बाद उन्होंने अपना दल भी छोड़ दिया. उन्होंने अपनी पार्टी बनाने का निर्णय लिया और 27 अक्टूबर 2002 को सारनाथ के महाराजा सुहेलदेव राजभर पार्क में एक नए पार्टी का गठन किया और नाम रखा- “सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी”. उन्होंने राजभर समुदाय को एकजुट करना शुरू कर दिया और पिछड़े वर्ग के लोगों के अधिकारों के लिए लड़ाई शुरू कर दी. साल 2004 लोकसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर ने उत्तर प्रदेश और बिहार में अपने प्रत्याशी उतारे. लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. इसके बाद 2007 के विधानसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी चुनावी मैदान में उतरी, लेकिन एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाई. साल 2012 में राजभर ने कौमी एकता दल से गठबंधन किया. लेकिन यहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी और उनके प्रत्याशी नहीं जीत पाए. हार का सिलसिला लगातार चलता रहा लेकिन राजभर ने हिम्मत नहीं हारी और लगातार चुनाव लड़ते रहे. वह जमीन पर काम करते रहे और राजभर समाज में अपनी पैठ बनाते चले गए. लगभग 35 सालों के लंबे संघर्ष के बाद वह खुद को पिछड़ी जाति के नेता के रूप में स्थापित करने में कामयाब रहे.
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का चुनाव चिन्ह
निर्वाचन आयोग द्वारा सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को चुनाव चिन्ह के रूप में छड़ी आवंटित किया गया है.
