Sarvan Kumar 02/09/2018
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Last Updated on 25/08/2020 by Sarvan Kumar

51 साल की उम्र में शनिवार 1 सितम्बर , जैन मुनि तरुण सागर का निधन हो गया. 20 दिन पहले उन्हें पीलिया की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन उनकी स्थिति में सुधार नहीं हुआ.

तरुण सागर का संक्षिप्त जीवन परिचय

जैन मुनि तरुण सागर एक दिगंबर जैन साधु थें. मुनि तरुण सागर का जन्म 26 जून 1967 में मध्य प्रदेश के दमोह में हुआ था. उनका असली नाम पवन कुमार जैन था.
13 साल की आयु में उन्होंने घर छोड़ दिया और दीक्षा ली. 20 साल की उम्र में वो दिगंबर मुनि की दीक्षा ली. वे समाज और देशहित के मुद्दों पर अपनी बेबाक राय देने के कारण अपने प्रवचन को ‘कड़वे प्रवचन’ कहते थे. अपने ,  कड़वे प्रवचनों के कारण वो काफी प्रसिद्ध हुए.

दिगंबर मुनि कौन होता है?

जैन मुनि तरुण सागरजी के अनुसार

1.दिगंबर जैन वो होता है जो समाज का तन ढकने के लिए अपना वस्त्र उतारकर फेंक देता है

2. जिसके पैर में जूता नहीं, जिसके सर छाता नहीं, जिसका बैंक में खाता नहीं और जिसका परिवार से नाता नहीं – वो होता है जैन दिगंबर मुनि .

3. जिसके तन पर कपड़े नहीं, जिसके मन में लफड़े नहीं, जिसके वचन में झगड़े नहीं , जीवन में कोई रगड़े नहीं -वो होता यही दिगंबर मुनि.

4. जिसका कोई घर नहीं, जिसको किसी बात का डर नहीं , दुनिया का असर नहीं, जिससे बड़ा कोई सुपर नहीं- उसे कहते हैं दिगंबर मुनि.

मुनि तरुण सागर के 14 अनमोल विचार (कड़वे प्रवचन)

1. मंजिल को पाना है तो चलो, बैठने से काम नहीं चलेगा. श्रम करो, पुरुषार्थ करो. केवल प्रार्थना से काम नहीं चलेगा. हम में से बहुत सारे लोग उम्र भर केवल प्रार्थना ही करते रहते हैं,प्रयास नहीं करते. प्रार्थना के साथ प्रयत्न भी जरुरी है, प्रयास भी ज़रूरी है.

2. सफलता का पैमाना क्या है? सफलता का पैमाना है 10% भाग्य , 90% पुरुषार्थ.

3. लोग कहते हैं मनुष्य के हाथों की लकीरों में उसका भाग्य लिखा होता है. मगर मैं इस बात को नहीं मानता क्योंकि जिनके हाथ नहीं होते उनका भी तो भाग्य होता है.

4. आज का प्रयास, आज का पुरुषार्थ कल भाग्य बन जाता है. इसलिए भाग्य के भरोसे मत बैठो.

5. केवल राम भरोसे बैठने से काम नहीं चलेगा, अपने आप पर भी भरोसा रखिये. हिन्दू धर्म में जीने वाला व्यक्ति साढ़े तैंतीस कड़ोर देवी-देवताओं के अस्तित्व पर भरोसा कर लेता है. जैन धर्म में जीने वाला व्यक्ति 24 तीर्थंकरों के होने विश्वास कर लेता है. लेकिन तुम्हारे अंदर भी एक राम. कृष्ण, बुद्ध ,महावीर बैठा है , इस बात पर तुम्हे भरोसा होना चाहिए.

6. तन की खुराक है समोसा, मन की खुराक है भरोसा. समोसा को बाजार के किसी भी दुकान पर मिल जायेगा, लेकिन भरोसा किसी के ज़ुबान पर मिल जायेगा.

8. ये मत कहो की मैं बहुत, छोटा आदमी हूँ, गरीब आदमी हूँ. समाज के लिए क्या कर सकता हूँ. देश के लिए मैं क्या कर सकता हूँ. मनुष्य केवल मांस , मज़्ज़ा , हड्डी का पुतला नहीं है. इस मनुष्य के चोले में अनंत की संभावना है. उस अनंत की संभावना को पहचानो.

9. सारी गड़बड़ियां आँख से शुरू होती है. अपने आँख और ज़ुबान संभाल लो, परिवार और ज़िन्दगी संभल जायेगा.

10. ज़ुबान को छोड़कर सारे इंद्रिर्यों का एक ही काम है. ज़ुबान के दो काम हैं- चखना और बकना. कड़वा मत बोलो, मीठा बोलो. जानकारी के बिना मत बोलो. ज़रूरत से ज़्यादा मत बोलो. कम बोलो, काम का बोलो

11. मेरा जन्म मुर्दा फूंकने ले लिए नहीं हुआ है. मेरा जन्म मुर्दा हो चले समाज में जान फूंकने के लिए हुआ है. मैं उसी दिन से मुर्दा समाज में प्राण फूंकने के लिए निकल पड़ा.

12. चादर छोटी है तो पैर सिकोड़ना सीखो. जब पुण्य की चादर छोटी हो तो इच्छाओं के पैर बड़े मत करो.
मन को वश में रखो. घर में कई रूम होते हैं, एक कंट्रोल रूम भी होना चाहिए. अगर घर का कोई सदस्य कंट्रोल के बाहर हो जाए तो उसे कंट्रोल रूम में भेज दो.

13. जीवन की मूलभूत समस्या अहंकार है और समर्पण उसका मूल समाधान है. अहंकार लोगों को अँधा कर देता है. अहंकार में रावण अँधा हो गया था और उसके परिवार का नाश हो गया था. अहंकार से बचो.

14. कुछ पाना है तो कुछ छोड़ो. बहुत कुछ पाना है तो बहुत कुछ छोड़ो. सबकुछ पाना है तो सबकुछ छोड़ो .

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