
Last Updated on 30/10/2021 by Sarvan Kumar
ब्राह्मण ( Brahamin) जाति काफी विकसित और बुद्धिमान मानी जाती है। समाज में इन्हे उच्च जाति का दर्जा प्राप्त है। ब्राह्मण जाति का इतिहास काफी गौरवशाली है। लोग अपने आपको ब्राह्मण कहने पर फख्र महसूस करते हैं। अब सवाल उठता है कि क्या कोई भी ब्राह्मण( Brahaman) बन सकता है या ये जन्म के आधार पर ही तय किया जा सकता है। सबसे पहले ब्राह्मण शब्द का प्रयोग अथर्वेद के उच्चारण कर्ता ऋषियों के लिए किया गया था। फिर प्रत्येक वेद को समझने के लिए ग्रन्थ लिखे गए उन्हें भी ब्राह्मण साहित्य कहा गया। ब्राह्मण तब किसी जाति या समाज से नहीं था। Brahaman ब्रह्मांड में सर्वोच्च सार्वभौमिक सिद्धांत और परम वास्तविकता को दर्शाता है। जाति से ब्राह्मण ( Brahamin): मतलब जो ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ हो। उसे अपने पिता की जाति मिलती है। गुणों से ब्राह्मण (चरित्र) (Brahaman): गुण का मतलब चरित्र है हिंदू दर्शन में तीन गुणों का वर्णन किया गया है रजस, तमस और सत्व। आइए जानते हैं Brahaman और Brahamin में क्या अंतर है?
(What is the difference between Brahman and Brahamin)
Brahaman और Brahamin अंतर
ब्रह्मा, ब्राह्मण (Brahman) और ब्राह्मण (Brahamin) कभी-कभी हमारे मन को भ्रमित करते हैं और इस भ्रम के कारण हम चीजों को स्पष्ट रूप से समझ नहीं पाते हैं।
Brahaman (ब्रह्माण) शब्द का क्या अर्थ है?

ब्रह्माण शब्द की उत्पति ब्रह्मा से हुई है, ब्रह्मा को सृष्टि का देवता कहा गया है। उन्हें जीवों के निर्माण का कर्तव्य सौंपा गया है। उन्हें लोगों के भाग्य का लेखक और चारों वेदों का निर्माता कहा जाता है। पुराणों में ब्रह्मा का वर्णन किया गया है कि उनके चार मुख हैं, जो चार दिशाओं में देखते हैं। भगवती सरस्वती ब्रह्मा जी की पत्नी हैं। ब्रह्मा की उत्पत्ति विष्णु की नाभि से निकले कमल में स्वयंभू हुई थी। उन्होंनें चारों ओर देखा जिनकी वजह से उनके चार मुख हो गये।
दर्शनशास्त्रों में ब्रह्म का मतलब
भारतीय दर्शनशास्त्रों में निर्गुण, निराकार और सर्वव्यापी माने जाने वाली चेतन शक्ति के लिए ब्रह्म शब्द प्रयोग किया गया है।इन्हें परब्रह्म या परम तत्व भी कहा गया है। ब्रह्म के इसी मतलब को Brahman ( ब्रह्माण) कहा गया है, यह एक भाववाचक (Abstract noun ) संज्ञा है। यानि Brahman ( ब्रह्माण ) कोई व्यक्ति नही बल्कि उसका quality (गुण, आचरण, स्वाभाव) है। ब्रह्म (संस्कृत: ब्रह्मन्) हिन्दू (वेद परम्परा, वेदान्त और उपनिषद) दर्शन में इस सारे विश्व का परम सत्य है और जगत का सार है। वो दुनिया की आत्मा है। वो विश्व का कारण है, जिससे विश्व की उत्पत्ति होती है, जिसमें विश्व आधारित होता है और अन्त में जिसमें विलीन हो जाता है। वो एक और अद्वितीय है, वो स्वयं ही परमज्ञान है, और प्रकाश-स्त्रोत की तरह रोशन है। वो निराकार, अनन्त, नित्य और शाश्वत है। ब्रह्म सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी है।
कौन है असली ब्राह्मण ( Brahman)
Brahman ( ब्राह्मण)का अर्थ ब्रह्मा पुजारी जो सभी वेदों को जानते हैं, और बलिदान के पूरे विधि-विधान और अर्थ को समझते हैं। उन्हें देवत्व का एक पूर्ण स्वामी माना जाता है। जिसने सर्वोच्च ब्रह्म को जान लिया है, वह आत्म-साक्षात्कार वाला व्यक्ति बन जाता है। जिन्हे गर्मी और सर्दी, सुख-दुख, लाभ-हानि, जीत-हार-असफलता और सफलता जैसे सभी विपरीत युग्मों को एक समान मानता है। वह असफलताओं और अपमानों से परेशान नहीं होता है। वह अपने मन पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लेता है। वह हर जगह ब्रह्म को देखता है और प्राप्त करता है। कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण(Brahman) हो सकता है ब्राह्मण( Brahaman )का अर्थ ब्रह्मज्ञानी से होता है यह शब्द किसी भी जात- पात में नहीं बंधा हुआ है.
Brahamin का अर्थ क्या है?
प्राचीन वर्ण व्यवस्था के अनुसार Brahamin चार वर्णॉ में से एक है। एक समय था जबकि हमारा देश उन्नति के शिखर पर विराजमान था देशोत्पन्न ब्राह्मणों से संपूर्ण संसार के लोग विद्या, धर्म, नीति ,सदाचार, शिष्टाचार व्यवसाय आदि की शिक्षा दीक्षा लिया करते थे। ब्राह्मण का कर्त्तव्य अध्ययन, अध्यापन, यज्ञ करना और करवाना , दान देना और लेना बताया गया है। अब ब्राह्मण (Brahamin ) समाज के अधिकतर लोग मूल ब्राह्मण कर्त्तव्य छोड़कर अन्य दुसरे पेशाओं को भी अपना लिया है।
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