
Last Updated on 07/02/2022 by Sarvan Kumar
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और अंग्रेजों के बीच एक निर्णायक युद्ध हुआ. इस युद्ध में झांसी की हार हुई. रानी की हार का एक मुख्य कारण यह था कि अंदरूनी लोगों ने उन्हें धोखा दिया और किले का संरक्षित दरवाजा खोल दिया था. आइए जानते हैं झांसी के किले का दरवाजा किसने और क्यों खोला.
रानी लक्ष्मी बाई के हार का कारण
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई 375 दिन तक सत्ता में रहीं. इस दौरान उन्हें कठिन समय से गुजरना पड़ा. ताजपोशी के बाद रानी ने राजपाट को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक मंत्रिमंडल का गठन किया. इस मंत्रिमंडल में उन्होंने अपने विश्वासपात्र लोगों को स्थान दिया. रानी यह समझती थीं कि सभी उनके प्रति वफादार हैं. लेकिन यह भूल उनके जीवन पर भारी पड़ी और झांसी के पतन का कारण बनी. रानी के मंत्रिमंडल में दो गद्दार भी शामिल थे.
झांसी के किले का दरवाजा किसने खोला?
मोतीलाल द्विवेदी की पुस्तक ‘अशान्त’ में उल्लेख किया गया है कि इस 20 सदस्यीय मन्त्रिमण्डल में 18वें नम्बर पर दूल्हा जू और 20वें नम्बर पर पीर अली का नाम शामिल था. जब अंग्रेजी फौज ने झांसी पर हमला किया तो तब इन दोनों गद्दारों ने सैंयर गेट और ओरछा गेट खोल दिया, जिससे अंग्रेज आसानी से झांसी के किले में प्रवेश कर गए. लक्ष्मीबाई किसी तरह से जान बचाकर झांसी के किले से निकलने में कामयाब रहीं. ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि अंग्रेज 8 दिनों तक झांसी के किले पर गोले बरसाते रहे. अंग्रेज दिन में तो हमला करते हीं थे, साथ में रात के अंधेरे में भी आक्रमण करते थे. इसके बावजूद झांसी का किला उनके हाथ नहीं लग रहा था. अंग्रेजी फौज के सेनापति ह्यू रोज ने सोचा कि केवल सैन्य बल के सहारे झांसी के किले को नहीं जीता जा सकता है. फिर उसने एक चाल चली. उसने लक्ष्मीबाई के सेनानायकों में से एक दूल्हा सिंह जू को प्रलोभन दिया. दूल्हा जू एक उच्च जाति का ठाकुर था. दीवान दूल्हा जू लालच में आ गया और उसने रानी के साथ विश्वासघात किया. उसने किले के दक्षिणी दरवाजा ओरछा गेट, जो किले का एक अच्छी तरह से संरक्षित द्वार था, को खोल दिया. इससे झाँसी की सेना को तैयारी करने का कम समय मिल पाया. इस तरह से ब्रिटिश फौज झांसी के प्राय: अभेद्य किले में प्रवेश कर गई और झांसी को जीत लिया.
दरवाजा क्यों खोला?
रानी को झांसी के किले से सुरक्षित निकालने में वीरांगना झलकारी बाई की महत्वपूर्ण भूमिका थी. झलकारी बाई लक्ष्मी बाई की पसंदीदा महिला सैनिकों में से एक महिला थी. अपने वीरता, नेतृत्व क्षमता और युद्ध रणनीति बनाने की अद्भुत क्षमता के कारण वह दुर्गा वाहिनी की सेनापति के साथ-साथ रानी की विश्वासपात्र भी बन गई. रानी लक्ष्मीबाई झलकारी बाई को अपनी बहन की तरह मानती थीं. रानी के साथ उनकी निकटता के परिणामस्वरूप, महल में उच्च जाति के कर्मचारी ईर्ष्या का भाव रखते थे.शुरुआती दौर में रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजो के खिलाफ नहीं लड़ना चाहती थी. झांसी की रानी अगर अंग्रेजो के खिलाफ लड़ी तो इसमें झलकारी बाई और उनके पति पूरन कोरी समेत कोरी जाति के योद्धाओं का महत्वपूर्ण योगदान था. झलकारी बाई के पति पूरन कोली किले के मुख्य द्वार पर तोपची के रूप में तैनात थे. अंग्रेजों ने झांसी के किले पर हमला किया तो पूरन कोली ने कोरी जाति के बहादुर सैनिकों के साथ अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया. कोरी जाति के लोग बहुत सटीकता से गोलंदाजी कर रहे थे. उनके इस बहादुरी से दूल्हा जू को बहुत ईर्ष्या होती थी. अंग्रेजों ने दूल्हा जू को प्रलोभन दिया कि झांसी जीतने के बाद उसे मालामाल कर दिया जाएगा. ऐतिहासिक अभिलेखों से पता चलता है किले के अंदर कई ऐसे लोग थे जो रानी को हारते हुए देखना चाहते थे. लेकिन कोरी जाति समेत कई अन्य निचली जाति के लोग रानी के प्रति पूरी तरह से वफादार थे. वह रानी के लिए अपने प्राणों की बलि देने का भी जज्बा रखते थे. वह रानी के खिलाफ होने वाली हर साजिश को नाकाम कर देते थे. इस तरह से ईर्ष्या और लालच में आकर दूल्हा जू ने रानी के साथ विश्वासघात किया और किले किले का दरवाजा खोल दिया. झांसी के आसपास रहने वाले कई लोग ठाकुर दूल्हा जू को आज भी गद्दार मानते हैं. दूल्हा जू कटेरा का रहने वाला था. कटेरा में उसकी समाधि है. आज भी झांसी के लोग गुस्सा निकालते हैं और उसकी समाधि पर जूतों से प्रहार करते हैं.
References;
Book; Vīraṅganā Jhalakārī Baī: nāṭaka
Mātā Prasāda
https://www.jagran.com/uttar-pradesh/jhansi-city-19766857.html
https://www.google.com/amp/s/m.jagran.com/lite/uttar-pradesh/jhansi-city-14171610.html
https://www.telegraphindia.com/india/jhansi-s-maid-finds-place-of-pride/cid/888752

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