Ranjeet Bhartiya 20/03/2023
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Last Updated on 20/03/2023 by Sarvan Kumar

बाल काटने की परंपरा बहुत प्राचीन है. भारत में बाल काटने का काम नाई नामक पेशेवर जाति द्वारा किया जाता है. लेकिन भारत में ऐतिहासिक तौर पर इस समुदाय का काम सिर्फ बाल काटने तक ही सीमित नहीं है. इन्हें शुरुआती सर्जन माना जाता है. इसके अलावा प्राचीन भारत में इनका उपयोग संदेशवाहक और मध्यस्थ के रूप में भी किया जाता था. भारत के अलग-अलग हिस्सों में इन्हें अलग-अलग नामों से संबोधित किया जाता है. भारत के कुछ हिस्सों में नाई समुदाय के लोगों को ठाकुर भी कहा जाता है. यहां हम यह जानेंगे कि नाई को ठाकुर क्यों कहते हैं.

नाई को ठाकुर क्यों कहते हैं?

भारत में कई ऐसे समुदाय हैं जो किसी खास क्षेत्र में ही पाए जाते हैं. लेकिन नाई जाति की बात करें तो यह समुदाय भारत में व्यापक रूप से वितरित है. इस जाति के भीतर कई विभाजन हैं जो सामाजिक स्थिति के मामले में एक दूसरे से भिन्न हैं. इन विभाजनो के आगे, यह समाज चौहान, परिहार, सोलंकी, गहलोत, भाटी, परमार, आदि जैसे कई बहिर्विवाही कुलों में विभाजित है. इस समुदाय के लोग अपने नाम के साथ अलग-अलग उपनामों (Surnames) का प्रयोग करते हैं, जैसे सेन, शर्मा, वर्मा, खवास आदि.

निम्न तीन कारणों से नाई को ठाकुर कहा जाता है-

• कई राज्यों में इस जाति के लोग अपने उपनाम के रूप में ठाकुर का उपयोग करते हैं, जैसे कर्पूरी ठाकुर, भिखारी ठाकुर आदि. संभवतः इसीलिए नाई को ठाकुर कहा जाता है.

• नाई समुदाय के लोगों का कहना है कि तीन समाज को ठाकुर कहलाने का गौरव प्राप्त है, जिनमें एक नाई समाज है. राजपूत समाज को ठाकुर कहलाने का गौरव प्राप्त है, क्योंकि मातृभूमि की रक्षा के लिए राजपूत अपना शीश काटने से नहीं हिचकिचाते. एक ठाकुर आदिवासी गोंड़ समाज के लोग होते हैं, जो प्रकृति के उपासक हैं और प्रकृति की सेवा करते हैं. नाई समाज भी ठाकुर कहलाता है क्योंकि नाई, समाज के सेवक होते हैं.

• ठाकुर शब्द का प्रयोग उपाधि या पदवी के रूप में भी किया जाता है. यह उपाधि छोटी-बड़ी विरासत के राजाओं और बड़े जमींदारों को दी जाती थी. ठाकुर शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है- स्वामी. ठाकुर उपाधि सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक मानी जाती है. यह उपाधि केवल क्षत्रियों और राजपूतों को ही नहीं दी जाती थी, बल्कि अन्य जातियों को भी दी जाती थी, जो भूमि अनुदान प्राप्त करती थीं और सैन्य कर्तव्यों का पालन करती थीं. यही कारण है कि ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ और नाई सहित कई अन्य जातियों में ठाकुर की उपाधि का प्रचलन मिलता है. जिस जमीन पर वे खेती करते थे, जब उन्हें मालिकाना हक दिया गया, तो नाई ने सचेत रूप से ठाकुरों के समान विशेषाधिकार और सामाजिक रुतबे की तलाश शुरू कर दी और खुद को नाई ठाकुर बताने लगे.

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