
Last Updated on 22/01/2023 by Sarvan Kumar
हमें मुख्य रूप से तीन स्रोतों – जनगणना, सर्वेक्षण और प्रशासनिक रिकॉर्ड- से जनसांख्यिकीय और सामाजिक आंकड़ो के बारे में पता चलता है. ये आंकड़े नीति निर्माण, विकास योजनाएं बनाने, अनुसंधान सहित कई प्रशासनिक उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं. गजेटियर भी सूचनाओं का एक महत्वपूर्ण स्रोत है जिससे हमें कई प्रकार की सूचनाएं प्राप्त होती हैं. आइए इसी क्रम में जानते हैं बहराइच गजेटियर के बारे में.
बहराइच गजेटियर
बहराइच गजेटियर (Bahraich Gazetteer) के बारे में बात करने से पहले आइए संक्षेप में जान लेते हैं कि गजेटियर क्या होता है. गजेटियर एक भौगोलिक सूचकांक या निर्देशिका या पुस्तक है जिसमें किसी विशेष क्षेत्र की संपूर्ण प्रामाणिक भौगोलिक, सांस्कृतिक, सामाजिक जानकारी का सचित्र संग्रह होता है. इसका आविष्कार मूल रूप से ब्रिटिश प्रशासकों की जानकारी और सुविधा के लिए किया गया था. इसमें आमतौर पर किसी देश, क्षेत्र या महाद्वीप के इतिहास, भूगोल, भौगोलिक संरचना, जलवायु, सामाजिक सांख्यिकी, भौतिक विशेषताओं, साक्षरता, उद्योग, आर्थिक गतिविधियों, शहरों, जातियों, भाषा-साहित्य-संस्कृति आदि से संबंधित जानकारी शामिल होती है. बहराइच गजेटियर का संकलन और संपादन एच.आर. नेविल (आई.सी.एस.) ने किया था और इसे संयुक्त प्रांत आगरा और अवध के जिला गजेटियर के 45वें खंड के रूप में वर्ष 1903 में प्रकाशित किया गया था. इस गजेटियर में बहराइच जिले की सीमाओं, भौतिक विन्यास, नदियों, झीलों, वनों, खनिजों, जलवायु, कृषि, सिंचाई, व्यापार, औषधालय, जमींदारी आदि के बारे में बताया गया है. साथ ही जिले और जातियों के इतिहास के बारे में भी विस्तार से वर्णन किया गया है. विदित हो कि बहराइच जिला भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के जिलों में से एक है. बहराइच गजेटियर राज्य में रहने वाली कई जातियों के लिए एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज है. यहां हम नीचे कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख कर रहे हैं-
•ऐतिहासिक रूप से क्षेत्र का संबंध भर या राजभर जाति से रहा है. इतिहासकारों का मानना है कि मध्यकाल में यह स्थान भर वंश की राजधानी थी. इसलिए इसे “भराइच” कहा जाता था. कालांतर में यह क्षेत्र “बहराइच” के नाम से जाना जाने लगा.
•कई ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार श्रावस्ती के राजा प्रसेनजित ने बहराइच राज्य की स्थापना की थी, जिसका प्रारंभिक नाम ‘ब्रह्माइच’ था. इन्हीं महाराजा प्रसेनजित को माघ माह की बसंत पंचमी के दिन 990 ई. को एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम सुहेलदेव रखा गया. बहराइच गजेटियर (अवध गजेटियर) के अनुसार इनका शासन काल 1027 ई. से 1077 ई. तक माना गया है. महाराज सुहेलदेव जाति से वे पासी थे, राजभर थे या जैन, इस पर एक मत नहीं है. लेकिन वर्तमान में राजभर समाज के लोगों का दावा है कि महाराजा सुहेलदेव राजभर जाति के थे.
References:
•Bahraich: A Gazetteer, being Volume XLV of the District Gazetteers of the United Provinces of Agra and Oudh. Editor: Nevill, H. R
•हसनपुर के राम, ऐतिहासिक उपन्यास
By परशुराम गुप्त · 2021


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