Sarvan Kumar 23/11/2021
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Last Updated on 05/01/2022 by Sarvan Kumar

एक वाक्या जो जस्टिस काटजू से संबंधित है, मार्कंडेय काटजू एक भारतीय विधिवेत्ता और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश हैं। लोगों को भूमिहारों केेे बारे मेें कितना समझ है, यह इस वाक्या से पता चलता है। वे Facebook लिखते हुए कहते हैं “उच्च न्यायालय में एक वरिष्ठ वकील आर.एन. सिंह, जो एक भूमिहार थे। एक दिन वह मेरे दरबार में पेश हुआ, और मैंने मज़ाक में उससे कहा: “श्री सिंह, हिंदुओं में चार जातियाँ बताई जाती हैं, ब्राह्मण, क्षत्रिय (राजपूत), बनिया और शूद्र। जो कोई पहली तीन श्रेणियों में नहीं है वह अवशिष्ट श्रेणी यानी शूद्र में आता है। तुम भूमिहार न ब्राह्मण हो, न क्षत्रिय, न बनिया। तो आप अवशिष्ट श्रेणी में आते हैं, अर्थात शूद्र ” वह मुस्कुराया और कहा “मेरे भगवान, कृपया इसे किसी क्रम में घोषित करें, ताकि हमें आरक्षण का लाभ मिल सके। ” जस्टिस काटजू जैसे पढ़े-लिखे लोग ऐसी समझ रखते हैं तो आम लोगों का क्या।  1911 के  जातिगत जनगणना के आधार पर ब्राह्मणों की जनसंख्या 21 लाख और भूमिहारों  (बाभन) की जनसंख्या लगभग 10 लाख थी। प्रसन्न कुमार चौधरी -श्रीकांत के द्वारा लिखित पुस्तक ‘बिहार में सामाजिक परिवर्तन के कुछ आयाम‘ जो 2001 में प्रकाशित हुआ था, के अनुसार ब्राह्मणों और भूमिहारों की यह जनसंख्या भ्रामक थी। दरअसल जनगणना में बहुत सारे भूमिहारों के द्वारा अपनी जाति ब्राह्मण बताई गई थी। 1921-31 के बीच सिर्फ भूमिहार ही थे जिनकी आबादी 8.5% घट गई थी। दरभंगा जिले में 3 में से 2 बाभनों ने अपनी जाति ब्राह्मण बताई थी। वही ब्राह्मणों की जनसंख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि खुद भूमिहार भी अपनी उत्पति के लिए कितने भ्रमित हैं। यहां हम समझने का प्रयास करेंगे की भूमिहारों की उत्पत्ति कैसे हुई? क्या कुछ ब्राह्मण ही बाद मेंं भूमिहार हो गए या भूमिहार एक अलग ही जाती है, आइए समझते हैं ब्राह्मण और भूमिहार में क्याा अंतर है?

ब्राह्मण और भूमिहार में अंतर

इतिहासकार लिखते हैं, जो ब्राह्मण बौद्ध काल में बौद्ध हो गए थे या उनका प्रभाव उस पर पड़ गया था उनके लिए बाभन शब्द का प्रयोग होता है। बाभन शब्द ब्राह्मण का अपभ्रंश जान पड़ता है यह शब्द भूमिहार शब्द से  प्राचीन है। बाबू रामदीन सिंह ने 1883 में लिखित अपनी पुस्तक ‘विहार दर्पण’ में  लिखा बहुत दिनों से यह झगड़ा चला आता था बाभन कौन वर्ण के हैं? महाराज रामकृष्ण सिंह, टेकारी के भूतपूर्व राजा ने बताया की बाभन शब्द ब्राह्मण का अपभ्रंश है। भूमिहार अधिक लोकप्रिय रूप से बाभन के नाम से जाने जाते थे। नृवंशविज्ञान संबंधी दस्तावेजों के साथ ब्रिटिश जनगणना रिकॉर्ड इस कथन के प्रमाण हैं। भूमिहार या भुइंहार बाभन समुदाय के कुछ सदस्यों की उपाधि मात्र थी, क्योंकि वे बड़ी सम्पदा के मालिक थे। यह भूमिहार ब्राह्मण सभा का प्रयास था कि पुराने बाभन पद पर भूमिहार नाम को लोकप्रिय बनाया जाए। इस शब्द को पारंगत बनाने के लिए ‘भूमिहार’ या भूमिहार ब्राह्मण के नाम से स्कूल और कॉलेज खोले गए। बाभन शब्द अशोक के कुछ शिलालेखों में मिलता है जो निश्चित रूप से बताता है कि यह समुदाय सम्राट अशोक के समय में मौजूद था। बाभन ब्राह्मण के लिए केवल एक पाली शब्द है जिसका अशोक के शिलालेखों में उस युग के मगध ब्राह्मणों को संदर्भित करने के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया गया है। इस ऐतिहासिक साक्ष्य से यह स्पष्ट होता है कि अशोक के समय में बाभन मगध में थे जो लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व है।मगध के महान पुष्य मित्र शुंग और कण्व वंश दोनों ही ब्राह्मण राजवंश भूमिहार ब्राह्मण (बाभन) के थे।

‘भूमिहार ब्राह्मण’ शब्द अस्तित्व में कब आया

बनारस के महाराज ईश्वरी प्रसाद सिंह ने 1885 ई० में बिहार और उत्तर प्रदेश के जमींदार ब्राह्मणों की एक सभा बुलाकर प्रस्ताव रखा कि हमारी एक जातीय सभा होनी चाहिए। सभा बुलाने के प्रश्न पर सभी सहमत थेI परन्तु सभा का नाम क्या हो इस पर बहुत ही विवाद उत्पन्न हो गया। मगध के बाभनों ने जिनके नेता स्व.कालीचरण सिंह जी थे, सभा का नाम ” बाभन सभा ” रखने का प्रस्ताव रखा। स्वयं महाराज “भूमिहार ब्राह्मण सभा ” के नाम के पक्ष में थेI बैठक मैं आम राय नहीं बन पाई, अतः नाम पर विचार करने हेतु, एक उपसमिति गठित की गईl सात वर्षो के बाद समिति की सिफारिश पर “भूमिहार ब्राह्मण ” शब्द को स्वीकृत किया गया।

भूमिहारों के ब्राह्मण होने के प्रमाण

भारतीय और अंग्रेजी साहित्यकारों/ विद्वानों कि किताबों का गहन अध्ययन करने से पता चलता है कि भूमिहार और ब्राह्मण एक ही है । ब्राह्मणों को दो समुदाय में बांटा जा सकता है एक याचक और दूसरा अयाचक। हजारों साल पहले ब्राह्मण का कर्तव्य सिर्फ वेद पढ़ना और पढ़ाना ,दान लेना था।ग्रन्थों में ब्राह्मणों के मुख्य छ: कर्तव्य (षट्कर्म) बताये गये हैं- 1-पठन 2-पाठन 3-यजन 4-याजन 5-दान 6-प्रतिग्रह। इनमें पठन, यजन और दान सामान्य तथा पाठन, याजन तथा प्रतिग्रह विशेष कर्तव्य हैं। जब ब्राह्मणों को भारी मात्रा में दान मिलने लगे और उन्हें भूमि भी दान में मिलने तो वे धनी हो गए। पारिवारिक विचार-विमर्श से परिवार के कुछ सदस्यों ने खेती करना शुरू किया। बाद में धीरे-धीरे ये भारी जमीनों के मालिक बन गए और जमींदार कहे जाने लगे। प्राचीन काल में इन्हें बाभन कहा जाता था। जोकि धीरे-धीरे भूमिहार ब्राह्मण और फिर भूमिहार हो गया। आज स्थिति यह है कि ब्राह्मण और भूमिहार दो अलग-अलग समुदाय बन गए हैं। ब्राह्मण, भूमिहार को ना तो  ब्राह्मण मानते हैं ना हीं भूमिहार खुद को ब्राह्मण कहलवाना पसंद करते हैं। वह अपने आप को भूमिहार कहे जाने से ही ज्यादा संतुष्ट होते हैं। लेकिन भूमिहारों को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह ब्राह्मण ही है। अगर वह अपने आप को ब्राह्मण कहने में संकोच नहीं करेंगे तो दूसरे लोग भी इन्हें इनकी उत्पत्ति के बारे में सवाल नहीं उठाएंगे।

कौन है भूमिहार

धन प्रबन्धक अयाचक ब्राह्मण (भूमिहार/त्यागी) सत्ययुग से लेकर कलियुग तक थे और अपनी स्वतंत्र पहचान बनाये रखी। हालांकि वे अयाचक ब्राह्मण (बाभन/त्यागी) की संज्ञा से ही विभूषित रहे।. साहस, निर्णय क्षमता, बहादुरी, नेतृत्व क्षमता और प्रतिस्पर्धा की भावना इनमे कूट-कूटकर भरी थी तथा ये अपनी जान-माल ही नहीं बल्कि राज्य की सुरक्षा के लिए भी शक्तिसंपन्न थे।आइए देखते हैं भूमिहारों के ब्राह्मण होने के कुछ प्रमाण।
1.गया के सूर्यमंदिर के पुजारी भूमिहार ब्राह्मण है.।
2.एम.ए. शेरिंग ने 1872 में अपनी पुस्तक Hindu Tribes & Caste में कहा “भूमिहार ब्राह्मण जाति के लोग हथियार उठाने वाले ब्राह्मण हैं।
3.पंडित अयोध्या प्रसाद ने अपनी पुस्तक “वप्रोत्तम परिचय” में भूमिहार को भूमि की माला या शोभा बढ़ाने वाला, अपने महत्वपूर्ण गुणों तथा लोकहितकारी कार्यों से भूमंडल को शुशोभित करने वाला, समाज के हृदयस्थल पर सदा विराजमान- सर्वप्रिय ब्राह्मण कहा है
4.हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “बाणभट की आत्मा कथा ” में काशी के भूमिहार ब्राह्मणों को भूमि अग्रहार ब्राह्मण की संज्ञा दी है एवं उन परिस्थितियों की चर्चा की है जिनमेें भूमिहार ब्राह्मणों ने वैदिक कर्मकांड को छोड़कर सामंती वृति अपनाना पड़ा
5.हिन्दी शब्दसागर : 1925 नागरी प्राचारिणी सभा काशी के लोग कहते है की जब भगवान परशुराम ने पृथ्वी को क्षत्रिय   रहित कर दिया, तब जिन ब्राहणो को उन्होने राज्य का भार सौंपा उन्ही के वंशधर ये भूमिहार या बाभन है।
6. कान्यकुब्ज ब्राह्मण के निम्नलिखित पांच प्रभेद हैं:-
(1) प्रधान कान्यकुब्ज (2) सनाढ्य (3) सरवरिया (4) जिझौतिया (5) भूमिहार
7. सहजानंद सरस्वती कि  ब्रह्मर्षि वंश विस्तर किताब में भूमिहारों को ब्राह्मण होने के कई तर्क बताए गए हैं।
8.विद्वान योगेन्द्र नाथ भट्टाचार्य ने अपनी पुस्तक हिन्दू कास्ट & सेक्ट्स में लिखा है की भूमिहार ब्राह्मण की सामाजिक स्थिति का पता उनके नाम से ही लग जाता है, जिसका अर्थ है भूमिग्राही ब्राह्मण।

9.पंडित नागानंद वात्स्यायन द्वारा लिखी गई पुस्तक – ” भूमिहार ब्राह्मण इतिहास के दर्पण में ” के अनुसार भूमिहार  ब्राह्मण जाति ब्राह्मणों के विभिन्न भेदों और शाखाओं के अयाचक लोगो का एक संगठन ही है. प्रारंभ में कान्यकुब्ज शाखा से निकले लोगो को भूमिहार ब्राह्मण कहा गया। उसके बाद सारस्वत, महियल, सरयूपारी, मैथिल, चितपावन, कन्नड़ आदि शाखाओं के अयाचक ब्राह्मण लोग, पूर्वी उत्तरप्रदेश तथा बिहार के अयाचकों से संबंध स्थापित कर भूमिहार ब्राह्मणों में मिलते गए। मगध के बाभनों , मिथिलांचल के पश्चिम तथा प्रयाग के जमींदार ब्राह्मण भी अयाचक होने से भूमिहार ब्राह्मणों में ही सम्मिलित होते गए।

10. बनारस के गौतम लोग भूमिहार कहलाते हैं इस कारण से है कि अधिकांश भूमिहार लोग गौतम गोत्री हैं।

भूमिहारों का इतिहास, कौन है अयाचक ब्राह्मण?

भूमिहार की परिभाषा, भूमिहार शब्द की उत्पति कैसे हुई?

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