Last Updated on 30/01/2023 by Sarvan Kumar
जाटव (Jatav) चमार समुदाय की एक उप-जाति है जो उत्तरी भारत में पाई जाती है. दलितों में सामाजिक जागृति अपेक्षाकृत कम है इसीलिए दलित समुदायों में अंबेडकरवादी विचारधारा का प्रचार प्रसार अपेक्षाकृत अधिक हुआ है. अपना इतिहास नहीं जानने के कारण कई दलित जाति हीन भावना का शिकार हो जाती हैं. लेकिन दलित समुदाय के कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी जाति का इतिहास खोजने का प्रयास जरूर किया है जिसमें जाटव भी शामिल हैं. आइए जानते हैं जाटव के इतिहास के बारे में.
जाटव का इतिहास
जाटव के इतिहास को समझने के लिए हमें इस समुदाय की पृष्ठभूमि को समझना होगा. जाटव को जाटवा, जाटन, जटुआ और जटिया के नाम से भी जाना जाता है. उत्तरी भारत के कई राज्यों में इनकी महत्वपूर्ण उपस्थिति है जैसे कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा,उत्तराखंड और दिल्ली. उत्तर प्रदेश से सटे छत्तीसगढ़ राज्य में भी यह पाए जाते हैं. उत्तर प्रदेश में इनकी बहुतायत आबादी है और यहां राजनीतिक रूप से काफी मजबूत है. आरक्षण व्यवस्था के अंतर्गत चमार जाति समूह के अन्य उपजातियों की तरह इन्हें भी अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है. इस समुदाय के अधिकांश सदस्य हिंदू धर्म का पालन करते हैं. इनमें से कुछ इस्लाम और बौद्ध धर्म का अनुसरण करते हैं.आइए जाटव के इतिहास के बारे में विस्तार से जानते हैं-
•जॉर्ज वेयर ब्रिग्स (George Ware Briggs) ने अपनी प्रसिद्ध किताब “The Chamars” में जाटव को चमार जाति में ही समाहित माना है.
•चमार या चर्मकार भारत में निवास करने वाली एक प्राचीन जाति है. भारतीय उपमहाद्वीप में चमारों का बहुत प्रारंभिक समय में पता लगाया जा सकता है. इनका उल्लेख ऋग्वेद में किया गया है, जो वेदों में सबसे प्राचीन माना जाता है.
•कालांतर में चमार समुदाय अनेक समूहों में बट गया, लेकिन फिर भी सभी चमार समूहों की कुछ विशेषताएं समान हैं. जैसे कि इनका पारंपरिक व्यवसाय मृत मवेशियों को संभालना, खाल निकालना और चमड़े का सामान बनाना है. इस कार्य को अपवित्र माना जाता था, इसलिए इन्हें पहले के समय में भी छुआछूत और भेदभाव का सामना करना पड़ा है.
•जानकारों का मानना है कि नए नामों को अपनाना या जाति विशेष में नई उपजाति में विकसित होना, चमार जाति के लोगों द्वारा स्वयं को सामाजिक स्तरीकरण में ऊपर उठाने के प्रयासों का परिणाम है.
•जाटव अपेक्षाकृत एक नया शब्द है. उत्तर प्रदेश में चमार जाति की कई उपजातियां निवास करती हैं जैसे कि जैसवार, कुरील, धूसिया, रैदास, जाटव, अहिरवार आदि. आजादी के पहले और आजादी के बाद भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इन लोगों ने खुद को जाटव के नाम से संगठित किया था.
•”दिल्ली की अनुसूचित जातियां व आरक्षण व्यवस्था” नामक पुस्तक में उल्लेख किया गया है कि जाटव शब्द पहली बार सरकारी रिकॉर्ड में 1.12.1942 को अस्तित्व में आया और इसके पूर्व के दस्तावेजों में जाटव शब्द का उल्लेख नहीं मिलता है.
• अधिकांश जाटव मुख्यतः पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं. जाटव समुदाय के लोग अपने उच्च सामाजिक स्थिति का दावा करते हैं. ब्रिग्स ने 1920 में प्रकाशित नृजातिवर्णन (ethnography) के आधार पर बताया है कि उस समय भी जाटव समुदाय एक प्रतिष्ठित समुदाय के रूप में स्थापित हो चुका था. मेरठ और आसपास के इलाकों में इनका दबदबा था. इनमें से कुछ लोगों ने शाकाहार अपना लिया था ताकि वे अपने आप को छुआछूत के दंश से मुक्त कर सकें.
• 20वीं सदी के मध्य में चमार समुदाय के लोगों ने जाति आधारित नीच व्यवसायों को त्याग दिया और अपनी इच्छा के अनुसार व्यवसाय चुनना शुरू कर दिया. इससे उन्हें समाज में प्रतिष्ठा मिली. जहां तक जाटव समुदाय का प्रश्न है बीसवीं शताब्दी के आरंभ में इन्होंने पश्चिम और मध्य उत्तर प्रदेश में स्वयं को नीच कार्यों से आजाद कर लिया था.
•द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों ने चमार रेजिमेंट का गठन किया था. इससे यह पता चलता है कि इस समुदाय में मार्शल गुण हैं. जाटव को उत्तरी भारत की एक जाति माना जाता है, लेकिन इनके इतिहास की तुलना महाराष्ट्र के महार और तमिलनाडु के नादरों से की जा सकती है. 1917 में इस समुदाय के शिक्षित लोगों ने “जाटव वीर” नाम से एक संगठन बनाया. कुछ वर्षों तक काम करने के बाद संगठन के टुकड़े-टुकड़े हो गए. 1924 में, “जाटव प्रचारक संघ” नामक एक अलग गुट ने सामाजिक पदानुक्रम सीढ़ी में इस जाति की ऊर्ध्वगामी गतिशीलता के लिए कठिन प्रयास किया और जाटवों को क्षत्रिय का दर्जा दिलाने के लिए इस संगठन ने तीव्र और आक्रामक अभियान चलाया.
References:
•A Social Force in Politics
Study of Scheduled Castes of U.P.
By M. P. S. Chandel · 1990
•Dalit Jnan-Mimansa- 02 Hashiye Ke Bheetar
By Edited by Kamal Nayan Chaube · 2022
•Apne Apne Pinjare -2
By Mohandas Naimisharay · 2013
•Delhi Ki Anusuchit Jatiyan Va Aarakshan Vyavastha
By Ramesh Chander · 2016