
Last Updated on 05/04/2023 by Sarvan Kumar
किसान यानि अन्नदाता, इंसान कितना भी पैसा कमा ले पर वह भोजन बिना तो नहीं रह सकता। पूरी दुनिया का पेट भरने वाला किसान ही तो है । हम कह सकते हैं की किसान बिना यह दुनिया तो चल ही नहीं सकता। कुर्मी (Kurmi) जाति देश की कृषक जाति की प्रतिनिधि है। ज्यादातर कुर्मी उत्तरी भारत के पूर्वी गंगा के मैदान मेें पाए जाते हैं। कुर्मी जाति के अधिकांश लोग परंपरागत कृषि से संबंधित कार्य से जुड़े हुए हैं। कुर्मी (Kurmi) को हम कन्बी, कुनबी (Kunbi) , कुरमी, कुनवी, कूर्मि इत्यादि नामों से भी जानते हैं। ऐतिहासिक प्रमाणों से यह तथ्य उजागर होता है कि कूर्मि जाति के पूर्वज उच्च कोटि के विशुद्ध पराक्रमी तथा शूरवीर क्षत्रिय थे। आइए जानते हैं कुर्मी जाति का इतिहास, कुर्मी शब्द की उत्पति कैसे हुई।
कुर्मी जाति किस कैटेगरी में आते हैं? (Kurmi Caste Category )
देश के अधिकांश राज्यों में जैसे आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली , उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा आदि राज्यों में कुर्मी ओबीसी (Other Backwards class) के अंतर्गत सूचित है।
अलग-अलग राज्यों में कुर्मी के उपनाम
हिंदू धर्म के अनुसार, कुर्मी हिंदुओं की एक जाति या जाति का नाम है। कुर्मियों को भारत की प्रमुख प्राचीन कृषि जाति के रूप में जाना जाता है। सिंगरौर, उमराव, चंद्राकर, गंगवार, कम्मा, कान्बी, कापू, कटियार, कुलंबी, कुलवाड़ी, कुनबी, कुटुम्बी, नायडू, पटेल, रेड्डी, सचान, वर्मा और वोक्कालिगा सभी कुर्मी जाति के हैं। कुछ कुर्मी उन क्षेत्रों द्वारा जाने जाते हैं जहां से वे आते हैं। इसलिए, उत्तर प्रदेश के लोगों को पूरबिया कुर्मी, बिहार के बिहारी कुर्मी और मध्य प्रदेश के लोगों को मनवा कुर्मी के नाम से जाना जाता है।
कुर्मी जाति की जनसंख्या
कुर्मी मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश , बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और असम राज्यों में व्यापक रूप से पाये जाते हैं। पूरे देश में इनकी जनसंख्या लगभग 20 मिलियन के आस पास हैं। दो प्रमुख राज्यों जैसे बिहार में 5% और उत्तर प्रदेश में 7.5% आबादी कुर्मियों की है।
कुर्मी शब्द की उत्पति कैसे हुई?
कुर्मी की उत्पत्ति के कई सिद्धांत हैं।
1. आदि कृषकों ने क्षत्रित्व /राजसी जीवन त्याग कर अपने कुटुम्ब परिवारों के साथ ग्राम बसाकर एक स्थान पर रहना प्रारंभ किया। इन परिवारों को कुटुम्ब कहा जाता था और परिवार के सदस्यों की जाती -बोधक संज्ञा कुटुम्बिन/ कुटुम्बिक बन गयी। धीरे-धीरे बोल चाल की भाषा में कुटुम्बिक का टु गायब हो गया और कुम्बी, कुरमी, कुणबी, कणवी आदि शब्द चलन में आने लगे। कुटुम्ब को कुल भी कहा जाता था अतः कुल से कुलम्बी, कुलमी, कुरमी, कूर्मि क्षत्रिय, कुर्मी इत्यादि हो गया।
2 . जोगेंद्र नाथ भट्टाचार्य (1896) के अनुसार, यह शब्द एक भारतीय आदिवासी भाषा से लिया जा सकता है, या संस्कृत यौगिक शब्द कृषी कृमि हो सकता है। गुस्ताव सालोमन ओपर्ट (1893) का सिद्धांत भी यह मानता है कि इसे क़ृषि से लिया जा सकता है।
3. आर्यो के पूज्यतम देवराज इन्द्र थे, जिन्हें अनेक वैदिक मंत्रों में ”तुवि कूर्मि“ अर्थात महान पराक्रमी कर्मयोगी कहा गया है (ऋग्वेद, 3.10.3)। कूर्मि का शाब्दिक अर्थ है- कर्मशील, पराक्रमी। तुवि कूर्मि का अर्थ है- अत्यन्त कार्यकुशल, महान पराक्रमी, महान कर्मयोगी।
4. कु अर्थात पृथ्वी, रमी अर्थात रमी हुई या संलग्न। कुरमी अर्थात वह व्यक्ति या जाति जिसका कर्मक्षेत्र भूमि है।
5. वैदिक कालीन सुप्रसिद्ध मनीषी महर्षि कूर्म की वंशधर कूर्मवंशी क्षत्रिय जाति भारत की ही नहीं अपितु विश्व की प्राचीनतम विशुद्ध क्षत्रिय जाति है।
6. कुछ लेखक कछुआ (कूर्म) से कुर्मी की उत्पत्ति का समर्थन करते हैं, कूर्म जिसे विष्णु का अवतार माना गया है।
कुर्मी जाति का इतिहास
ऐतिहासिक प्रमाणों से यह तथ्य उजागर होता है कि कूर्मि जाति के पूर्वज उच्च कोटि के विशुद्ध पराक्रमी तथा शूरवीर क्षत्रिय थे। कूर्मि जाति विशुद्ध क्षत्रिय वर्ण की है, इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। कूर्मि जाति के आदि पूर्वज महर्षि कूर्म क्षत्रिय थे। अतः उनके वंशजों का क्षत्रित्व स्वयं सिद्ध है (लघु नारदीय उपपुराण, चन्द्रवंशीय राजर्षि वर्णन) कूर्मि- कु अर्थात पृथ्वी और उर्मि अर्थात गोद। इस प्रकार कूर्मि शब्द से तात्पर्य है पृथ्वी की गोद में पलने वाला या पृथ्वीपुत्र। कहा भी गया है- भूमि मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूँ। कूरम- कु अर्थात पृथ्वी और रम अर्थात पति या बल्लभ। अतः कूरम शब्द का अर्थ है भूपति या पृथ्वीपति जो कि क्षत्रिय शब्द का पर्यायवाची है।
क्या कुर्मी क्षत्रिय हैं?
2020 में अखिल भारतीय कुर्मी क्षत्रिय महासभा सम्मेलन को संबोधित करते हुए महासभा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अखिलेश कुमार सिंह ने कहा कि आज ही नहीं सदियों से कूर्म (कुर्मी) वंश का गौरवशाली इतिहास रहा है। आदिकाल में राज, राजा चोलम, मिहिरभोज, संभाजी महाराज, छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे कई क्षत्रिय राजा-महाराजा हुए हैं। तब से लेकर आज तक आधुनिक भारत में भी कई ऐसे वीर क्रांतिकारी और राजनेता हुए जिन्होंने अपने पराकर्म के बल पर कुर्मी वंश की लाज रखी। इनमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लौहपुरुष के नाम एवं पहचान रखने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल एवं 1942 के आंदोलन जैसे कई आंदोलनों में अपने प्राणों की आहुति देने वाले ज्ञात-अज्ञात कुर्मी समाज के कई वंशज थे.
बाम्बे गजेटियर बेलगाम जिल्द-21 के अनुसार कुनबी (कुर्मी) लोगों के कुल सम्बन्धी नाम 292 हैं। सम्पूर्ण संख्या में से 102 की उत्पत्ति चन्द्र वंश से, 78 की उत्पत्ति सूर्य वंश से तथा 81 की उत्पत्ति ब्रह्म वंश से मानी जाती है। शेष 31 कुलों के सम्बन्ध में कहा जाता है कि उनका सम्बन्ध विविध वंशों से है।
किसान कुर्मी
इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका (चैदहवां संस्करण, 1768 ई. जिल्द-13, पृष्ठ-517) में कुनबी जाति के बारे में कहा गया है- कुनबी, महान हिन्दू कृषक जाति है, जो मुख्यतः पश्चिमी भारत में पायी जाती है। यह मद्रास के तेलगू प्रदेश के कापू, बेलगाम के कुलबी, दक्षिण के कुलम्बी, दक्षिणी कोकण के कुलवदी, गुजरात के कणबी तथा भड़ोच के पाटीदारों के समरूप है। वर्षाऋतु के मध्य में मनाया जाने वाला ”पोला“ उनका प्रमुख त्योहार है। इसमें वे हल-बैलों का जुलुस निकालते हैं।
साहसी कुर्मी
कुर्मि का जीवन कर्मशीलता, साहस, संग्राम, संघर्ष, आशा, उत्साह, उमंग तथा उल्लास का होता है। वह साहस के साथ संकटों का सामना करता है। वह संसार में परिस्थितियों का कभी दास नहीं बनता, अपितु उनका स्वामी बनकर जीवन को ज्योतिर्मय बना लेने में समर्थ होता है। वह मंगलमयी, आशामयी, उदात्त भावनाओं का केन्द्र है। वह अपने चारों ओर, न केवल अपनी जाति में, न केवल अपने देश या राष्ट्र में, न केवल पृथ्वी पर, अपितु समस्त विश्व में सुख, शान्ति, सौमनस्य, सौहार्द तथा प्रकाश का साम्राज्य चाहता है। उसका दृष्टिकोण अत्यधिक विशाल होता है।
कुर्मी समाज के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए यह किताब पढ़ें- KURMI SAMAJ ITIHAS AUR SANSKRITI( पूर्वाग्रह, मिथक एवं वास्तविकताएं)

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कुणबी या कुरमी या कुछ अन्य कुछ भी कह लें, इसका प्रमुख कार्य कृषि ही था. इस जाति की उत्पत्ति के लिए हमें पीछे जाना होगा. सिंधु घाटी की सभ्यता के काल में. उस समय भारत में कृषि का प्रारम्भ हो चुका था. उसी समय में बहु फसली खेती भी प्रारंभ हो चुकी थी. आज का कुणबी भी मिश्रित फसल करता है. कुणबी संस्कृत शब्द नहीं है. इसलिए हो सकता है कि सिंधु घाटी की सभ्यता के पतन के पश्चात वहाँ के लोग पूरे देश में फैल गये हों . सिंधु घाटी की सभ्यता में संस्कृत के प्रमाण नहीं मिलते हैं. कुणबी न तो हिन्दी का शब्द है और न ही संस्कृत का. इसलिए संभव है कि कृषि में कुण पद्धति का इस्तेमाल करने के कारण उन्हें कुणबी कहा गया हो. कालांतर में उन्होंने अपनी भाषा छोड़ कर, जहाँ भी गये वहाँ की भाषा को अपना लिया हो. जहाँ भी गये होंगे वहाँ भी पहले से लोग रह रहे होंगे और उनके साथ सामंजस्य स्थापित किया होगा.
sab bolte hain ki bahut hi swarnim itihas tha kurmiyon ka aur bahut sare raja maharaja huye, agr ye sb sach hai to vo itihas gya kahan? koi bhi kahin bhi solid proof ni dikhata bas muhboli hi karta hai. jitna confusion kurmiyon ko apni jati ko lekar hai utna to shayad chamar log ko bhi ni hai. kuch kurmi khud ko kshatriya batane k liye mrte hai to vhi kuch log apne ko reservation k liye pichda hua batate hain, kam se kam 20 surname use krte h. kabhi khud ko maratha bolenge kabhi lav kush ke vansaj to avadh wale khud ko suryavanshi bolenge lekin koi ek b saboot ni dikha pata hai. mujhe itni shrm aati hai jb koi puchta hai ki kya itihas hai tumahra.kuch ni rehta hai bolne k liye. pichle 6 mahine se ek ek article pdh rha hun internet par lekin kahin kuch ni milta, yaha tak ki hmare papa aur baba bhi saf saf kuch ni bata pate. Agr kisi ke pas koi bhi solid proof hai kisi gazeteere ya kisi historian ka to pls mujh deadshot684@gmail.com pr email kro. pls.