
Last Updated on 28/07/2022 by Sarvan Kumar
कुर्मी परंपरागत रूप से मेहनती कृषक रहे हैं. जानकार मानते हैं कि कृषि के क्षेत्र में गतिशीलता लाने में इस समाज का बहुत बड़ा योगदान रहा है. लेकिन इनका योगदान केवल कृषि तक ही सीमित नहीं है. कुर्मी समुदाय के लोगों की एक खास विशेषता है कि यह केवल अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज और देश के लिए सोचते हैं. जब-जब जरूरत पड़ी या कोई संकट आया, इस समाज के लोगों ने आगे आकर कुशल और सक्षम नेतृत्व देकर देश और समाज को आगे बढ़ाने का काम किया. कुर्मी समाज से आने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज इस बात के बड़े उदाहरण हैं. भारत की आजादी के बाद देशी रियासतों का एकीकरण कर अखंड भारत के निर्माण में कुर्मी कुल से आने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है. कुर्मी समाज के लोगों का मुख्य पेशा कृषि रहा है, लेकिन वर्तमान समय में विभिन्न क्षेत्रों में अपना योगदान देकर राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशासनिक सेवा, डिफेंस, व्यापार, समाज सेवा और राजनीति आदि क्षेत्रों में भी इस समाज के लोगों ने ना केवल अपना अमूल्य योगदान दिया है, बल्कि काफी नाम भी कमाया है. आज इस समाज के लोग पुलिस और सेना में भर्ती होकर देश की रक्षा कर रहे हैं. इनमें से कई प्रोफेसर और शिक्षक बनकर देश का भविष्य संवारने का काम कर रहे हैं. राजनीति के क्षेत्र में इस समाज के कई लोग अपनी पहचान बना चुके हैं और वर्षों से समाज की सेवा में लगे हुए हैं जैसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश सिंह बघेल और गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र भाई पटेल, आदि. व्यापार के क्षेत्र में भी समाज के लोग देश दुनिया में नाम कर रहे हैं और आर्थिक विकास को गति देने का काम कर रहे हैं.कुर्मी समाज कई उप समूहों में विभाजित है. आइए जानते हैं, कनौजिया कुर्मी (kanaujia kurmi) का इतिहास, कनौजिया शब्द की उत्पति कैसे हुई?
कनौजिया कुर्मी
सामाजिक संरचना की बात करें तो अन्य जातियों की भांति कुर्मी समाज भी कई उपजातियों में विभाजित है, जैसे-अवधिया, गंगवार, मनवा, बैस, चंद्राकर, जायसवर, मिल्लीवार, पतरिया, और कनौजिया आदि. मानव जाति के इतिहास में ऐसा कई बार देखा गया है कि जातीय समूह अपने अस्तित्व बनाए रखने और रोजी-रोटी की तलाश में एक जगह से दूसरे जगह पलायन करते रहे हैं. यदि सब कुछ ठीक है तो वह अपेक्षाकृत अधिक समय के लिए किसी विशेष स्थान पर बस जाते हैं. समय के साथ, नए आवास या प्रदेश में उत्प्रवासी एक उप जाति बन जाते हैं जो आमतौर पर एक क्षेत्रीय नाम जैसे जौनपुरिया, तिरहुतिया आदि नामों से जाने जाने लगते हैं. अंग्रेज़ नृवंशविज्ञानशास्त्री और औपनिवेशिक प्रशासक हर्बट होप रिस्ले (Herbert Hope Risley) ने स्थानीय रूप से आधारित नामों का उल्लेख जातियों के मुख्य नामों के साथ किया है जो सामाजिक प्रथा के विशेष क्षेत्र को दर्शाता है जिसमें यह परिवर्तन होता है. इस प्रकार रिस्ले अवधिया और कनौजिया कुर्मी को महान कुर्मी जाति की उपजातियां बताते हैं (People of India, Ed. 1915. PP. 75- 94). वर्तमान में कनौजिया कुर्मी मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं. छत्तीसगढ़ में भी इनकी आबादी है.

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