Ranjeet Bhartiya 15/04/2022

Last Updated on 15/04/2022 by Sarvan Kumar

कोटवार (Kotwar) भारत में पाया जाने वाला एक जातीय समुदाय है. कोटवार का अर्थ होता है- “ग्राम चौकीदार का पद धारण करने वाला व्यक्ति”. पुराने जमाने में यह पद आमतौर पर मूल निवासी आदिम जातियों के सदस्यों को दिया जाता था, जैसे कि महार, रामोशी, गंडास, पनका, मीना और खंगार .मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में फसल कटने के बाद प्रत्येक काश्तकार (Tenant farmer) के खेतों में कोतवार को एक दिन के लिए बीनने की अनुमति दी जाती थी. ब्रिटिश शासन के तहत कोटवार को एक गांव के पुलिसकर्मी के रूप में बनाए रखा गया, और उनका वेतन बढ़ा दिया गया और आमतौर पर नगद में उनको भुगतान किया जाने लगा. वर्तमान में यह छोटे और मध्यम आकार के किसानों का समुदाय है. इनमें से कुछ शिक्षा और रोजगार के आधुनिक अवसरों का लाभ उठाकर अन्य नौकरी-पेशा और व्यवसायों में भी कार्यरत हैं.आइए जानते हैं कोटवार समाज का इतिहास, कोटवार की उत्पति कैसे हुई?

Featured image: साभार Dainik  Bhaskar 

कोटवार समाज एक परिचय

वर्तमान परिस्थिति (कैटेगरी): कई राज्यों में इन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग में रखा गया था. लेकिन आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक रुप से पिछड़ा होने के कारण इन्हें मध्य प्रदेश और झारखंड में पिछड़ा वर्ग सूची से विलोपित करके अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल करने का फैसला किया गया है.

पॉपुलेशन, कहां पाए जाते हैं? यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं. उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से सोनभद्र और मिर्जापुर जिलों में निवास करते हैं. मध्य प्रदेश और झारखंड में भी इनकी आबादी है.

धर्म: यह हिंदू धर्म का पालन करते हैं. कोटवार कई पूर्व आदिवासी समुदायों में से एक हैं जिन्हें अब हिंदू जाति व्यवस्था में शामिल कर लिया गया है. यह कई आदिवासी देवी-देवताओं जैसे दूल्हा देव, महारानी देवी और सीतला देवी की उपासना करते हैं.

भाषा
यह मुख्य रूप से हिंदी भाषा बोलते हैं.

कोटवार समाज का इतिहास

यह पनिका जाति के उप-समूह हैं. पनिका पारंपरिक रूप से बुनाई से जुड़ी एक जाति थी, और कोटवार द्वारा व्यवसाय में बदलाव के कारण ये पनिका का एक अलग अंतर्विवाही उप-समूह बन गए. कोटवार को (मध्य प्रदेश में स्थित) सागर जिले में चादर जाति के पर्याय के रूप में प्रयोग किया जाता है. इन्हें कोरी जाति की उपजाति भी माना जाता है.शासन व्यवस्था और पुलिस प्रशासन में शामिल होने के कारण इनका समाज में महत्वपूर्ण और प्रभावशाली स्थान रहा है. देशी शासन व्यवस्था के तहत कोतवाल महत्वपूर्ण शहरों में पुलिस प्रमुख थे, आज भी कुछ शहरों में केंद्रीय पुलिस कार्यालय को इनके नाम पर कोतवाली कहा जाता है. कुछ गाँवों में अभी भी एक कोतवाल और एक कोटवार दोनों मिलते हैं. कोतवाल गांव की निगरानी और रखरखाव के कर्तव्यों को निभाते हैं; जबकि कोटवार संदेशवाहक और आपूर्ति इकट्ठा करने जैसे छोटे-मोटे काम करते हैं. पुराने समय में, दोनों का भुगतान किसानों से अनाज के निश्चित सालाना योगदान द्वारा किया जाता था. कोतवार गांव की सीमाओं का संरक्षक भी थे, और जमीन के विवाद के सभी मामलों में उनकी राय को अक्सर आधिकारिक माना जाता था. यह पद शायद उन्होंने पूर्व-आर्य जनजातियों के प्रतिनिधि के रूप में कब्जा कर लिया, जो देश के सबसे पुराने निवासी थे, और उनकी नियुक्ति भी आंशिक रूप से इस विचार पर आधारित हो सकती है कि उनमें से एक को गाँव की भूमि के संरक्षक के रूप में नियुक्त करना उचित था. गाँव में गश्त करने के अलावा, इन्हें सभी संज्ञेय अपराधों की सूचना निकटतम पुलिस चौकी में देनी होती थी. इसके साथ यह गाँव में होने वाले जन्म और मृत्यु का लेखा-जोखा भी रखते थे. अपराध का पता लगाने में नियमित पुलिस को सामान्य सहायता देना भी इनकी जिम्मेदारी थी .

कोटवार शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

कोटवार शब्द कोतवाल का अपभ्रंश है. “कोटवार” शब्द “कोतवाल” शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है- “कोट (दुर्ग) या महल के रखवाले या संरक्षक”. ऐसा प्रतीत होता है कि कोतवाल शब्द कालांतर में अपभ्रंश होकर कोटवार हो गया कहा जाता है कि इन्हें यह नाम इसीलिए मिला है कि यह परंपरागत रूप से गांव के चौकीदार थे.


References;
(a). Book Title: The Tribes and Castes of the Central Provinces of India–Volume I (of IV)
Author: R.V. Russell

(b). People of India Uttar Pradesh Volume XLII Part Three edited by A Hasan & J C Das

(c ).
https://www.prabhatkhabar.com/state/jharkhand/ranchi/pike-khandit-pike-kotwar-pradhan-manjhi-and-other-bhuis-will-be-included-in-scheduled-castes-srn

(d ).
https://mp.punjabkesari.in/madhya-pradesh/news/decided-to-annihilate-kotwar-caste-from-backward-class-list-818675

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