
Last Updated on 14/04/2022 by Sarvan Kumar
समाज में कुमरावतों को सम्मानजनक स्थिति प्राप्त है.
सामाजिक पद-सोपान में इन्हें कई स्थानों (जैसे जबलपुर आदि) पर काछी के समान दर्जा प्राप्त है. कई इलाकों (जैसे बैतूल आदि) में डांगुर सामाजिक स्थिति में कुणबी के समान हैं. कोई भी समाज भोजन के बिना जिंदा नहीं रह सकता है. इसके लिए अनाज उपजाने के बाद उसका भंडारण और वितरण बहुत जरूरी है. अनाज के भंडारण और ढोने के लिए प्रयोग किए जाने वाले बोरियों के निर्माण में शामिल होने के कारण समाज में इनका महत्वपूर्ण स्थान रहा है. कुमरावत (Kumrawat) भारत में पाई जाने वाली एक जाति है. इन्हें पटबीना (Patbina) और डांगुर (Dangur) के नाम से भी जाना जाता है. कुमरावत अक्सर एकल गांवों में केंद्रित पाए जाते हैं. कुमरावतों का पारंपरिक व्यवसाय सनई (जूट, sunn hemp) उगाना, और उसे बुनकर बोरियों बनाना रहा है, जिसका इस्तेमाल अनाज ढोने और स्टोर करने के लिए किया जाता है. हालांकि, यहां पर यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि कालांतर में जूट की खेती में अन्य जातियों के शामिल होने के कारण इसकी खेती पर इस समुदाय का एकाधिकार जैसा कुछ नहीं है.आइए जानते है कुमरावत समाज का इतिहास, कुमरावतों की उत्पति कैसे हुई?
कुमरावत समाज एक परिचय
रॉबर्ट वेन रसेल (R.V. Russell) ने इन्हें सनई (Sunn hemp) उगाने वाले और बोरी (sack) के बुनकरों की एक जाति के रूप में वर्णित किया है. रसेल के अनुसार, इन्हें उत्तरी जिलों में कुमरावत कहा जाता है और छत्तीसगढ़ में पटबीना के नाम से जाना जाता है.मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, दिल्ली हरियाणा और गुजरात आदि राज्यों में इनकी आबादी है. यह हिंदू धर्म को मानते हैं. यह हिंदू देवी देवताओं की पूजा करते हैं तथा हिंदू त्योहारों को बड़े धूमधाम से श्रद्धा भाव से मनाते हैं.
कुमरावत समाज का उप-विभाजन
कुमरावत, पटबीना और डांगुर इस समुदाय के तीन विभाजन की तरह हैं. यह आपस में विवाह करते हैं.अपने बहिर्विवाही समूहों के लिए डांगुरों में आमतौर पर अलग-अलग राजपूत कुलों के नाम होते हैं. कुमरावतों के क्षेत्रीय नाम होते हैं, और पटबीना के नाम निर्जीव वस्तुओं से प्राप्त होते हैं.
कैसी है कुमरावत समाज मे विवाह की परम्परा ?
पुराने समय में, अन्य जातियों की तरह कुमरावतों में भी
लड़कियों की शादी बहुत कम उम्र में कर दी जाती थी. एक अनोखी प्रक्रिया के माध्यम से विवाह तय किया जाता था. लड़के के पिता, अपने कुछ दोस्तों के साथ, लड़की के पिता के पास जाते थे और उन्हें निम्नलिखित शब्दों में शादी का प्रस्ताव देते थे: “आपने एक इमली का पेड़ लगाया है जिसमें फल लगे हैं. मैं नहीं जानता कि यदि मैं अपनी छड़ी से फल को मारूँ तो आप उसे जमीन पर गिरने से पहले पकड़ोगे या नहीं.” अगर लड़की के पिता को रिश्ता स्वीकार होता था, तो उनका जवाब होता था- “मैं इसे क्यों न पकड़ूं?” और इस तरह से विवाह तय हो जाता था. डांगुरों में विवाह के पश्चात दूल्हा और दुल्हन को हनुमान जी के मंदिर में जाकर पूजा करने की प्रथा है, और इस दौरान पूरे रास्ते दुल्हन दूल्हे को इमली की टहनी से पीटती है.
अंतिम संस्कार
इनमें मृतकों को दफनाया और जलाया जाता है. किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर 10 दिनों तक जबकि बच्चों की मृत्यु पर 3 दिनों तक शोक मनाने की परंपरा है.
कुमरावत समाज का इतिहास
पटबीना शब्द “पट/पट्टी” + “बिन्ना” से बना है. “पट/पट्टी” अर्थ होता है- “बोरी” और “बिन्ना” का अर्थ होता है- “बुनाई करना”. बैतूल जिले में जूट (hemp) उगाने वालों की एक छोटी बस्ती को डांगुर के नाम से जाना जाता है. संभवत: इस बस्ती का नाम डांग या लकड़ी के तुलादंड से से लिया गया है, जिसका उपयोग वह जूट तौलने के लिए करते थे. इस समुदाय की उत्पत्ति के बारे में निम्नलिखित मान्यताएं प्रचलित हैं- एक मान्यता के अनुसार; कुमरावत और डांगुर दोनों राजपूत मूल का दावा करते हैं, इसीलिए दोनों को एक साथ वर्गीकृत किया जा सकता है. दूसरी मान्यता यह है कि बरई (पान उगाने वालों की जाति) में कुमरावत नामक एक उपजाति पाई जाती है. इस प्रकार से कुमरावत बरई की एक शाखा हो सकती है, जो सनई (जूट) की खेती करने अपनाने के कारण अपने मूल से अलग हो गई.
References;
(a). Book Title: The Tribes and Castes of the Central Provinces of India–Volume I (of IV)
Author: R.V. Russell

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