Ranjeet Bhartiya 09/07/2022
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Last Updated on 09/07/2022 by Sarvan Kumar

हिंदू धर्म में गोत्र का बहुत महत्व है. प्रारंभ में गोत्र के पीछे का मूल भाव या मुख्य उद्देश्य एकत्रीकरण का था. लेकिन कालांतर में ईर्ष्या, द्वेष और आपसी मनमुटाव के कारण परस्पर संघर्ष होने लगे. प्रेम और सौहार्द की कमी के कारण धीरे-धीरे गोत्र का महत्व कम होने लगा और वर्तमान में इसकी उपयोगिता केवल शादी-विवाह और धार्मिक अनुष्ठान तक ही सिमट कर रह गई है. आइए जानते हैं कुशवाहा जाति के गोत्र के बारे में-

कुशवाहा जाति के गोत्र

कुशवाहा सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं. मान्यताओं के अनुसार इनकी उत्पत्ति, भगवान विष्णु के अवतार अयोध्या के सूर्यवंशी राजा श्रीराम से हुई है. कुशवाहा जाति का मुख्य गोत्र कश्यप है. कुशवाहा समाज के लोगों के अनुसार, इस जाति में पाए जाने वाले अन्य गोत्र हैं- मानव मानव्य (राजस्थान में), गौतम और काशी. मान्यताओं के अनुसार, कश्यप गोत्र की उत्पत्ति कश्यप नाम नाम के ऋषि से हुई है. कश्यप एक वैदिक ऋषि थे. इन्हें सप्तर्षियों में से एक माना जाता है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि के प्रसार में कश्यप ऋषि वंशजों का महत्वपूर्ण योगदान है. विष्णु पुराण और वायु पुराण में कश्यप ऋषि को देवों, दानवों, यक्षों, दैत्यों और सभी जीवित प्राणियों के पिता होने का श्रेय दिया जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, कश्यप ऋषि ने सबसे अधिक शादियां की थी. इसीलिए अन्य ऋषियों की तुलना में इनके संतानों की संख्या अधिक है. बता दें कि आमतौर पर ‘गोत्र’ को ऋषि परम्परा से संबंधित माना गया है. ऐसा माना जाता है कि गोत्र ऋषियों के ही वंशज हैं. इस प्रकार, गोत्र मूल रूप से किसी एक ऋषि की ओर संकेत देता है. सबसे पहले गोत्र सप्तर्षियों के नाम से प्रचलन में आए. बृहदारण्यक उपनिषद 2.2.4 के अनुसार, कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम महर्षि, जमदग्नि और भारद्वाज सात ऋषि हैं (जिन्हें सप्तर्षि भी कहा जाता है) और जम्बू महर्षि एक अन्य ऋषि हैं (जिन्हें कश्यप से संबंधित रेणुका भी कहा जाता है). मूल रूप से इन आठ ऋषियों की संतान को गोत्र घोषित किया गया है. महाभारत के शांतिपर्व के एक श्लोक के अनुसार, उस समय मूल रूप से प्रमुख चार गोत्र थे – अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु. लेकिन कालांतर में जमदग्नि, अत्रि, विश्वामित्र और अगस्त्य ऋषि के नाम जुड़ने से इनकी संख्या आठ हो गई.

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