Last Updated on 05/09/2022 by Sarvan Kumar
“तेली बनिया” शब्द सुनकर आपके मन में पहला प्रश्न यह आता होगा कि -क्या तेली भी बनिया हैं? तो आइए इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने का प्रयास करते हैं और जानते हैं तेली बनिया के बारे में-
तेली बनिया
भारत में हजारों जातियां और उपजातियां हैं जो वैदिक काल से अस्तित्व में हैं. तेली जाति का उल्लेख प्राचीन ग्रंथो और प्रचलित कथाओं में मिलता है जिससे पता चलता है की यह हिन्दुओ की अति प्राचीन जाति है. तेली भारत, पाकिस्तान और नेपाल में निवास करने वाली एक जाति है. इनका पारंपरिक व्यवसाय तेल पेरना और बेचना रहा है. तेली शब्द की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है तिल से तेल और तेल से तेली बना है. तेली संस्कृत के शब्द ‘तैलिक:’ से आया है जो “खाद्य तेल बनाने” के उनके पेशे के कारण है.
तेली-बनिया जाति की परिभाषा
(Definition of Teli-Baniya caste)
वैदिक वर्ण व्यवस्था के अनुसार; कर्म के आधार पर; मनुष्यों, जातियों और जातियों की उपजातियों को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र. वर्ण स्थिति की बात करें तो तेली को हिंदू धर्म में वैश्य वर्ण से संबंधित माना जाता है. यानी कि तेली तेल पेरने और बेचने वाली वैश्य/बनिया जाति है. तेली खुद को साहू वैश्य (Sahu Vaishya) भी कहते हैं. वैश्य वर्ण में व्यापारी, खेतिहर या पशुपालक वर्ग को रखा गया है. “तेली-बनिया” तेली जाति का एक समूह या उपजाति है जिसने आजीविका के लिए दुकानदारी (shopkeeping) को अपना लिया. इसीलिए तेली जाति के इस उपवर्ग को “तेली बनिया” के नाम से जाना जाता है.वैसे समुदाय में बनिया, तेली, सूरी, कलवार, सोनार आदि प्रमुख हैं. सोनार और सूरी को आर्थिक रूप से मजबूत माना जाता है, लेकिन यह जातियां जनसंख्यात्मक रूप से कमजोर हैं. वैश्य समुदाय में तेली जनसंख्यात्मक रूप से मजबूत हैं, लेकिन इनमें आर्थिक संसाधनों की कमी है. जहां तक तेली समुदाय की सामाजिक स्थिति का प्रश्न है भारत के विभिन्न राज्यों में तेली की अलग-अलग समाजिक स्थिति है. बंगाल के तेली सुवर्णबानिक, गंधबानिक, साहा जैसे व्यापारी समुदायों के साथ समान सामाजिक स्थिति साझा करते हैं, जिनमें से सभी को वैश्य या बनिया समुदाय के रूप में वर्गीकृत किया गया है. गुजरात के घांची समुदाय को तेलियों के “समकक्ष” के रूप में वर्णित किया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी घांची समुदाय से आते हैं, जो गुजरात में अन्य पिछड़ा वर्ग या ओबीसी में सूचीबद्ध हैं. बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में, घांची के समकक्ष तेली हैं, जिन्हें ओबीसी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. बता दें कि तेली समुदाय का इतिहास अतीत प्राचीन और समृद्ध रहा है. प्राचीन भारत के प्रमुख संस्कृत महाकाव्य में से एक महाभारत में तुलाधार नामक तत्वादर्शी का उल्लेख मिलता है (महाभारत- शांतिपर्व, अ० 261-264) जो तेल के व्यवसायी थे किन्तु इन्हें तेली न कहकर ‘वैश्य’ कहा गया, अर्थात तब तक तेली जाति नहीं बनी थी. पद्म पुराण के उत्तरखण्ड में विष्णु गुप्त नामक तेल व्यापारी की विद्वता का उल्लेख किया गया है. ईसा की पहली सदी में मिले शिला लेखों में तेलियों के श्रेणियों/संघों का उल्लेख मिलता है. प्राचीन भारत में महान गुप्त वंश का उदय हुआ, जिसने लगभग 500 वर्षों तक संपूर्ण भारत पर शासन किया. इतिहासकारों ने गुप्त वंश को वैश्य वर्ण का माना है. गुप्त काल को साहित्य एवं कला के विकास के लिए स्वर्णिम युग कहा जाता है. गुप्त काल में पुराणों एवं स्मृतियों की रचना प्रारंभ हुई. गुप्त वंश के राजा बालादित्य गुप्त के समय में नालंदा विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार पर भव्य स्तूप का निर्माण हुआ. चीनी यात्री ह्वेनसांग ने बालादित्य गुप्त को तेलाधक वंश का बताया है. इतिहासकार ओमेली और जेम्स ने भी गुप्त वंश के तेली होने का संकेत किया है.
Refrences;
•Gupta, Sankar Sen (1976). Folklore of Bengal: A Projected Study. Indian Publications.
•जातियों का राजनीतिकरण
By कमल नयन चौबे · 2008
ISBN:9788181437358, 8181437357
Publisher:वाणी प्रकाशन
•https://www.ndtv.com/india-news/nitish-kumars-wait-and-watch-on-bihar-bjps-latest-narendra-modi-gimmick-521396
•https://www.tv9hindi.com/opinion/history-of-teli-community-dharmaraj-teli-of-banaras-which-reminds-of-yudhishthira-of-mahabharata-829361.html