Ranjeet Bhartiya 26/12/2021

Last Updated on 26/12/2021 by Sarvan Kumar

बिश्नोई या विश्नोई (Bishnoi or Vishnoi) पश्चिमी थार रेगिस्तान और भारत के उत्तर-पश्चिमी राज्यों में पाया जाने वाला एक हिंदू समुदाय है. यह राजस्थान के मूल निवासी हैं. पर्यावरण के प्रति अपने प्रेम के कारण यह समुदाय पर्यावरण रक्षकों के रूप में जाना जाता है. बिश्नोई स्वभाव से मेहनती, निडर, साहसी और बहादुर होते हैं. यह शाकाहारी होते हैं. अधिकांश बिश्नोई जीवन यापन के लिए कृषि और पशुपालन करते हैं. भारत में इनकी कुल जनसंख्या 10 लाख के करीब है.यह मुख्य रूप से राजस्थान में पाए जाते हैं. हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब और गुजरात में भी इनकी आबादी है. यह हिंदू धर्म का पालन करते हैं. बिश्नोई वैष्णव संप्रदाय के एक उप-संप्रदाय हैं. खेजड़ी के हरे वृक्षों की रक्षा करने के लिए अमृता देवी बिश्नोई के नेतृत्व में 363 बिश्नोईयों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये थे। बिश्नोई विशुद्ध शाकाहारी होते हैं।आइए जानते हैैं बिश्नोई समाज का इतिहास, बिश्नोई शब्द की उत्पति कैसे हुई?

बिश्नोई जाति की उत्पत्ति कैसे हुई?

बिश्नोई शब्द की उत्पत्ति “बिस+नोई” से हुई है. स्थानीय भाषा में “बिस” का अर्थ होता है-“20”, और “नोई” का अर्थ होता है-“9”. गुरु जम्भेश्वर ने अपने अनुयायियों को 29 उपदेश दिए दिए थे, जिसका समुदाय पालन करता है. इसी कारण इस समुदाय का नाम “बिश्नोई” पड़ा. स्थानीय बोली में एक कहावत प्रचलित है,”

उनतीस धर्म की अखाड़ी, हृदय धरियो जोय, जम्भेजी कृपा कर, नाम बिश्नोई होय”

जो लोग गुरु जम्भेश्वर के 29 सिद्धांतों का हृदय से पालन करेंगे, गुरु जंभोजी उन्हें आशीर्वाद देंगे और वह बिश्नोई होंगे. ऐसी मान्यता है कि श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान विष्णु के अवतार थे, इनसे बना ‘विष्णोई’ शब्द कालातंर में परिवर्तित होकर पहले विश्नोई और फिर बाद में बिश्नोई हो गया. बिश्नोई समुदाय में सभी उत्तर भारतीय जातियों के लोग शामिल हैं, लेकिन अधिकांश बिश्नोई राजस्थान के जाट और राजपूत जातियों से हैं. बिश्नोई पंथ की स्थापना श्री गुरु जम्भेश्वर (1451-1536) ने की थी, जिन्हें जम्भोजी के नाम से भी जाना जाता है. कुछ लोग “विश्नोई_ शब्द का प्रयोग करते हैं, अर्थ होता है- “भगवान विष्णु के अनुयाई”.जबकि अधिकांश खुद को बिश्नोई कहते हैं.  गुरु जम्भेश्वर ने स्वयं विश्नोई का उल्लेख नहीं किया, लेकिन विशन का उल्लेख किया है. गुरु जम्भेश्वर के प्रति श्रद्धा और समर्पण के कारण यह जम्बेश्वरपंथी के रूप में भी जाने जाते हैं.

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