Ranjeet Bhartiya 17/04/2023
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Last Updated on 17/04/2023 by Sarvan Kumar

भारत में रहने वाली हजारों जातियों में ब्राह्मणों का अपना एक अलग स्थान है. ब्राह्मणों का अपना एक प्राचीन और गौरवशाली इतिहास रहा है. खासकर धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में इनका दबदबा रहा है. ब्राह्मण समुदाय ने भारत के सांस्कृतिक विकास में, संस्कृति की रक्षा में और आधुनिक भारत के निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाई है. समय के साथ ब्राह्मणों के व्यवसाय में कई परिवर्तन हुए हैं. यहां हम जानेंगे कि ब्राह्मणों का मुख्य व्यवसाय क्या है.

ब्राह्मणों का मुख्य व्यवसाय क्या है?

सामाजिक व्यवस्थाओं का जन्म किसी भी समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए होता है. एक सामाजिक व्यवस्था के भीतर, समाज की विभिन्न इकाइयाँ कार्यात्मक संबंधों के आधार पर कार्य करती हैं और एक सार्थक तरीके से संबंधित होती हैं. हिन्दू धर्म ग्रंथों में एक विशेष प्रकार की सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख किया गया है जिसे वर्ण व्यवस्था के नाम से जाना जाता है. इस व्यवस्था के तहत समाज को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र नामक 4 वर्गों में बांटा गया है. इन चारों वर्णों के लिए अलग-अलग व्यवसाय सुझाए गए हैं.

• वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत ब्राह्मणों का मुख्य व्यवसाय अध्ययन करना, वेद पढ़ाना, स्वयं और दूसरों के कल्याण के लिए यज्ञ करना और कराना तथा दान देना और लेना है. इस प्रकार से ब्राह्मण मुख्य रूप से पुजारी (पुरोहित) और आध्यात्मिक शिक्षक (गुरु या आचार्य) के रूप में सेवा करते थे.

• उत्तर वैदिक काल में ब्राह्मण भी क्षत्रिय-कर्म अपनाने लगे। कालांतर में भारत के विभिन्न भागों में अनेक ब्राह्मण वंशों का उदय हुआ, जिनमें शुंग वंश, आर्य चक्रवर्ती वंश, सिंध का ब्राह्मण वंश, कर्नाट वंश, ओइनवार वंश, पटवर्धन वंश आदि प्रमुख हैं. अंग्रेजों के शासन काल के दौरान ब्राह्मणों की रियासतें और बड़ी-बड़ी जिम्मेदारियां भी थी.

•वर्तमान परिस्थितियों की बात करें तो अधिकांश ब्राह्मणों ने अपने पारंपरिक पेशे को छोड़कर जीवनयापन के लिए अन्य व्यवसायों को अपनाना शुरू कर दिया है. इनमें से कई कृषक हैं. इस समुदाय के शिक्षित वर्ग की निजी और सरकारी क्षेत्र की नौकरियों में मजबूत उपस्थिति है. आज ब्राह्मण समुदाय के लोग बड़े-बड़े कंपनियों में बड़े-बड़े पदों पर काम कर रहे हैं.

यहां इस बात का उल्लेख कर देना जरूरी है कि ब्राह्मणों का एक तबका आर्थिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन का शिकार है जो भी छोटे-मोटे नौकरियों और व्यवसायों के माध्यम से अपना जीवन यापन कर रहा है.


References:

•Samajik Kranti ke Dastavej-2

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