Last Updated on 30/10/2022 by Sarvan Kumar
कुलदेवता और कुलदेवी की अवधारणा हिंदू धर्म का एक अनिवार्य हिस्सा है. देश में प्रत्येक जाति और वंश में कुलदेवता या कुलदेवी की पूजा किसी न किसी रूप में जरूर की जाती है. ऐसी मान्यता है कि कुलदेव या कुलदेवी कुल की रक्षा के लिए सुरक्षा घेरा बनाए रखते हैं तथा अप्रिय घटनाओं से बचाते हैं. चूंकि कुल अलग-अलग होते हैं, इसीलिए स्वाभाविक है कि कुलदेवी-देवता भीअलग-अलग होते हैं. आइए इसी क्रम में जानते हैं चमार जाति की कुलदेवी कौन हैं.
चमार जाति की कुलदेवी
हिंदू धर्म में देवियों का महत्व हमेशा से रहा है. लक्ष्मी के बिना विष्णु अपूर्ण हैं. यदि शक्ति नहीं हैं, तो शिव भी नहीं हैं. सरस्वती के बिना ब्रह्मा नहीं हैं. हिंदू धर्म के मूल में पुरुष और स्त्री दोनों के बराबरी वाले सह-अस्तित्व की परिकल्पना है. देवी किसी भी देवता को कहते हैं जो स्त्री हो या जिसे स्त्री रूप में माना जाता हो. हिन्दू धर्म के धार्मिक ग्रंथों में कई देवियों का उल्लेख मिलता है, जैसे पार्वती, दुर्गा, काली, सरस्वती, गंगा, अन्नपूर्णा, चामुंडा, मनसा देवी, लक्ष्मी और उनके अवतार जैसे सीता, राधा,बाला सुंदरी, शाकम्भरी आदि. भारत में निवास करने वाले अधिकांश चमार हिंदू धर्म का पालन करते हैं. हिंदू देवियों में इनकी गहरी आस्था है. यह दिवाली और नवरात्रि का त्यौहार श्रद्धा भाव से मनाते हैं जिसमें देवी लक्ष्मी और नव दुर्गा की पूजा की जाती है. जानाई माता और तुलजा भवानी में भी इन समुदाय के लोगों की गहरी आस्था है.
जहां तक कुलदेवी का प्रश्न है विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार चमड़िया देवी (Chamaria Devi) चमार समुदाय की कुलदेवी हैं. चमड़िया देवी देवी को माता शक्ति का एक शक्तिशाली रूप माना जाता है. इन्हें देवी चमरिया या परमेश्वरी देवी के नाम से भी जाना जाता है. भारत में मुख्य रूप से राजस्थान और अन्य आस-पास के राज्यों में इनकी पूजा की जाती है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, देवी चमरिया बच्चों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों और समस्याओं से बचाती हैं. इसके अलावा चमार समुदाय की कुलदेवी के रूप में देसाई माता, चंडी माता और मरही माता का भी उल्लेख मिलता है.
[नोट: हम चमार समुदाय के सदस्यों से अनुरोध करते हैं कि वे हमें उनकी कुलदेवी के बारे में बताएं ताकि हम इस लेख को और बेहतर कर सकें.]