Ranjeet Bhartiya 10/11/2022

Last Updated on 14/11/2022 by Sarvan Kumar

भारत का हिंदू समाज चार वर्णों तथा हजारों जातियों और उपजातियों में विभाजित है. जातियों की उत्पत्ति और इतिहास अपने आप में एक उलझा हुआ विषय है. भारत में निवास करने वाली अनेक पिछड़े वर्ग और दलित वर्ग की जातियां क्षत्रिय वंश से होने का दावा करती हैं. दलित जातियों में चमार जाति भी चँवर वंश के क्षत्रिय होने का दावा करती है. आइए इसी क्रम में जानते हैं चमार वंश के राजा कौन थे.

चमार वंश के राजा कौन थे?

चमार जाति समूह का परंपरागत पेशा चर्म-कर्म और चमड़े के जूते आदि बनाना रहा है. लेकिन लंबे समय से इस समुदाय के लोग क्षत्रिय योद्धा जाति के वंशज होने का दावा करते रहे हैं. चमार समुदाय की एक प्रमुख उपजाति है जाटव, जिसे यादव का अपभ्रंश माना जाता है. यादव जाति को वैदिक क्षत्रिय माना जाता है. चमार अपेक्षाकृत एक नया शब्द है. चमार शब्द सन् 1872 ई० की जनगणना के बाद से ही धीरे-धीरे प्रचार में आया है. ‘हिंदू चर्मकार जाति’ नामक पुस्तक में उल्लेख किया गया है कि काफी लंबे अरसे तक ‘चमार’ कहे जाने के कारण इनके प्राचीन जाति-नाम भुला दिया गया. फलस्वरूप कई इतिहासकार भी भूलवश वर्तमान चमार जाति को प्राचीन काल की जाति मानने लगे, जबकि वर्तमान चमार जाति प्राचीन काल में नहीं थी. इस पुस्तक में दावा किया गया है कि मध्यकाल में, विदेशी आक्रमणकारियों तुर्क, मुस्लिम और मुगल शासकों द्वारा लाखों धर्मनिष्ठ ब्राह्मणों और स्वाभिमानी क्षत्रियों को जबरन चमार जाति में परिवर्तित कर दिया गया था और वह भी केवल इसलिए कि उस जाति ने हिंदू धर्म में अपना विश्वास बनाए रखा और किसी भी कीमत पर इस्लाम स्वीकार नहीं किया. कई जानकार ‘चमार’ शब्द को चमर या चँवर शब्द का अपभ्रंश मानते हैं और चमार जाति की उत्पत्ति चँवर वंश से मानते है. चंवर वंश का संबंध पिप्पल गोत्र से होना प्रमाणित है. ऐसी मान्यता है कि पिप्पल गोत्र की उत्पत्ति पिप्पल ऋषि से हुई थी. प्राचीन काल में चँवर वंश की सामाजिक स्थिति क्षत्रिय वर्ण की थी. इस राजवंश में कई प्रतापी राजा और शूरवीर योद्धाओं ने जन्म लिया था. मध्य युग में भी चमार कुल के अन्य वंशों में चंवर वंश सर्वाधिक प्रतिष्ठित था. कर्नल टाड ने अपनी पुस्तक ‘राजस्थान का इतिहास’ में इस चंवर वंश का विस्तार से उल्लेख किया है. एतिहासिक ग्रंथों में चंवर वंश का स्पष्ट उल्लेख मिलता है. कहा जाता है कि यह राजवंश सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल से संबंधित था. राजा चंवरसेन का जन्म इसी चंवर वंश में हुआ था जो इस वंश के प्रथम प्रतापी राजा थे. गुजरात स्थित चंवरावती नगरी राजा चंवरसेन की राजधानी थी. चंवरपुराण के अनुसार राजा चंवरसेन ने सतयुग में शासन किया था. अंबरिका के राजा अंबारिष्टदेव की पुत्री चंवरसेन की पत्नी थी. इनसे 56 पुत्र और 13 पुत्रियाँ उत्पन्न हुईं. चंवरसेन के पुत्रों में कमलसेन, ब्रह्मसेन, रतिसेन आदि का नाम उल्लेखनीय है. कालांतर में इस वंश में भद्रसेन नाम के शक्तिशाली राजा हुए. भद्रसेन के पुत्र का नाम श्रीसेन था. उसके बाद क्रमशः सूर्यसेन और चामुण्डराय नाम के वीर राजा भी इसी वंश में हुए. चामुण्डराय इस वंश के अंतिम राजा थे.


References:

•शूद्रों का खोजपूर्ण इतिहास, अर्थात् भारत का सच्चा इतिहास

By के. पी. संखवार · 2004

•हिंदू चर्मकार जाति

एक स्वर्णिम गौरवशाली राजवंशीय इतिहास

By विजय सोनकर शास्त्री · 2014

•Dalit Jnan-Mimansa- 02 Hashiye Ke Bheetar

By Edited by Kamal Nayan Chaube · 2022

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