
Last Updated on 23/12/2022 by Sarvan Kumar
फर्निचर, घरेलू उपकरण इत्यादि जो कि लकड़ी के सहायता से बनाई जाती है के बिना हमारा जीवन इतना आरामदायक कभी नही हो पाता. प्लास्टिक और धातुओं के खोज के कारण भले ही लकड़ी से बने समानों की उपयोगिता कमी आयी है पर इसका महत्व समाज में हमेशा बना रहेगा. विज्ञान के दृष्टिकोण से देखें तो लकड़ी का प्रयोग ज्यादा तर्कसंगत लगता है. लकड़ी Biodegradable होते हैं अर्थात जो प्राकृतिक रूप से पुनः पृथ्वी में घुल-मिल जाए ताकि पर्यावरण को हानि न हो. प्लास्टिक आसानी से डीकंपोज नहीं होते है और सालों तक जमीन में परे रहते है और पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाते हैं.उद्योग धंधे के पनपने से पहले बढ़ई को गाँव समाज में वास्तुकार या मुख्य अभियंता जैसा रुतबा मिलता था. उन्हें आज के मुख्य अभियन्ता (Chief Engineer) का स्तर प्राप्त था और वे बहुत से तकनीकी कार्यों हेतु विभिन्न अन्य सहायक समुदायों को रेखाचित्र या ब्लूप्रिंट प्रदान करते थे। प्राचीन समय में आजकल के समान लोहकार, काष्ठकार, सुतार और स्वर्णकारों जैसे जाति भेद नहीं थे। तब शिल्प कर्म बहुत ऊँचा समझा जाता था और सभी जाति, वर्ण, समाज के लोग यह काम करते थे। आइए जानते हैं बढ़ई ब्राह्मण और बढ़ई समाज से जुड़े कुछ रोचक बातें.

Image : Wikimedia commons
बढ़ई समाज के रोचक बातें
1.संस्कृत भाषा में बढ़ई को तक्षन् या तक्षक कहा जाता है। तक्षन का मतलब हैं-छीलना, चीरना, काटना, छेनी से तराशना, ये सारे शब्द लकड़ी के कारीगर से जुड़े हैं.
2. वाल्मीकि रामायण, महाभारत और कालिदास के महाकाव्य ‘मेघदूतम्’ में बढ़ई के लिए ‘वर्धकि’ शब्द का प्रयोग हुआ है।
3. कहीं-कहीं इन्हें ‘सुधार’ भी कहा जाता है। इनका पारंपरिक काम बढ़ई (काष्ठकारी) होता है । ‘सूत्रधार’ संस्कृत शब्द है। संस्कृत में सूत्र का अर्थ है – धागा (जिसका उपयोग आरी के निशान को चिह्नित करने के लिए किया जाता है) और धार मतलब धारण करना। सुथार नाम सूत्रधार का तद्भव रूप है।
4. विश्वकर्माऽभवत्पूर्व ब्रह्मण स्त्वपराऽतनुः ।
त्वष्ट्र: प्रजापतेः पुत्रो निपुणः सर्व कर्मस |
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूत्रधार विश्वकर्मा के पुत्र माया के वंशज हैं। ऋग्वेद के अनुसार विश्वकर्मा ब्रह्मांड के दिव्य इंजीनियर हैं। स्कंद पुराण के मुताबिक उनके पाँच बच्चे थे – मनु, माया, तवस्तार, शिल्पी और विश्वजना । ऐसा माना जाता है कि विश्वकर्मा समुदाय के लोग उनके पाँच उप-समूहों के अग्रदूत थे, जो कि लोहार और बढ़ई के गोत्रों (कुलों) के थे।
बढ़ई ब्राह्मण
5. पुराणों में विश्वकर्मा कहीं-कहीं भृगु से और कहीं अंगिरा से संबंध रखते हैं। लगता है कि हर कुल में अलग-अलग विश्वकर्मा हुए हैं। हमारे देश में विश्वकर्मा नाम से एक ब्राह्मण समाज भी है, जो जांगिड़ ब्राह्मण, सुतार, सुथार और दूसरे निर्माण कला एवं शास्त्र ज्ञान में पारंगत होते हैं। शिल्पज्ञ विश्वकर्मा ब्राह्मणों को प्राचीन काल में रथकार वर्धकी, एतब कवि, मोयावी, पांचाल, रथपति, सुहस्त सौर और परासर आदि शब्दों से जाना जाता था।
References:
1. देखो हमारी काशी किताब- लेखक- हेमंत शर्मा -2022 (प्रभात प्रकाशन )
2. दूसरा लखनऊ किताब- Makhanalala Caturvedi- 2011 (वाणी प्रकाशन, New Delhi )

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