Ranjeet Bhartiya 25/01/2022
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Last Updated on 27/01/2022 by Sarvan Kumar

आजादी के आंदोलन में दलित समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. 1857 की प्रथम स्वाधीनता संग्राम की एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि इसमें दलित समाज के लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था. उन्होंने रणभूमि में अंग्रेजी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे . इनमें से कईयों ने मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. मिसाल के तौर पर वीर पासी योद्धा मक्का पासी जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ चिनहट की लड़ाई में अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया था. चिनहट की लड़ाई में अंग्रेजों से बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे, लेकिन प्राणों की आहुति देने से पहले उन्होंने कई अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था. इनके पराक्रम को देखकर अंग्रेज भी स्तब्ध रह गए थे. शायद ऊदा देवी और मक्का पास ही एकमात्र युगल हैं, जो मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति देकर शहीद हुए. लेकिन मुख्यधारा के इतिहास में इन्हें कोई जगह नहीं दी गई. शायद राजघराने से ताल्लुक नहीं रखने, गरीब दलित परिवार में जन्म लेने और एक मामूली सैनिक होने के कारण उनके बारे में इतिहास की किताबों में नहीं लिखा गया और वह गुमनाम हो गए. इसीलिए उन्हें वह यश और सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे. आइए जानते हैं पासी समाज के महान स्वतंत्रता सेनानी मक्का पासी की वीरता की कहानी.

कौन थे मक्का पासी?

मक्का पासी (Makka Pasi) 1857  के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के वीर सिपाही थे. वह अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पलटन में एक सैनिक थे. इनका जन्म लखनऊ के पास उजरियांव गांव में एक दलित पासी परिवार में हुआ था. वह बचपन से ही साहसी और बहादुर थे. इनका विवाह पीलीभीत की वीरांगना ऊदा देवी से हुई थी‌. यहां इस बात का उल्लेख करना जरूरी है कि पीढ़ियों से चली आ रही अपमान और अन्याय के कारण वर्तमान में पासी समाज की जो भी स्थिति हो, लेकिन इनका इतिहास समृद्ध और गौरवशाली रहा है. यह एक शासक जाति रही है. मध्यकाल में पासी राजाओं ने उत्तर प्रदेश में विशाल साम्राज्यों पर शासन किया था.

वाजिद अली शाह के सेना में भर्ती

जब वाजिद अली शाह अवध के नवाब बने तो उनके सामने कई चुनौतियां थीं. देसी रियासतों पर अंग्रेजों का हस्ताक्षेप बढ़ता जा रहा था. इस चुनौती का सामना करने के लिए नवाब वाजिद अली शाह ने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए अपनी सेना में नए सैनिकों को भर्ती करना शुरू कर दिया. सैन्य शक्ति बढ़ाने के उद्देश्य से लखनऊ में नवाब के सेना में नए सैनिकों की भर्ती की गई, जिसमें समाज के सभी वर्ग के गरीब लोगों को नौकरी प्राप्त करने का एक अच्छा अवसर प्राप्त हुआ. अंग्रेजों के प्रति भारतीयों का गुस्सा बढ़ता जा रहा था. चारों तरफ क्रांति की अग्नि प्रज्वलित हो रही थी. ऐसे में साहसी और पराक्रमी मक्का पासी भी आजादी की लड़ाई में सक्रिय योगदान देने के लिए नवाब की सेना में भर्ती हो गए. उस समय लॉर्ड डलहौजी भारत का वायसराय था. वह लखनऊ को हड़पने का षड्यंत्र रच रहा था. अवध रियासत को हड़पने की योजना के तहत उसने अपने एक दूत को समझौता पत्र लेकर नवाब के पास भेजा. समझौता पत्र के शर्त के अनुसार अवध पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकार होना था. जब वाजिद अली शाह ने समझौता पत्र पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया तो उन्हें नजरबंद करके कोलकाता भेज दिया गया. नवाब के अनुपस्थिति में उनकी बड़ी बेगम हजरत महल ने मोर्चा संभाला और अंग्रेजों का मुकाबला करने लगीं.

मक्का पासी की शहादत

10 जून 1857 को लखनऊ के चिनहट कस्बा के पास इस्माइलगंज में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और भारतीय विद्रोही सैनिकों के बीच एक भीषण युद्ध हुआ. इस युद्ध में अंग्रेजी फौज का नेतृत्व हेनरी लॉरेंस ने किया था. वहीं, संगठित भारतीय विद्रोही सेना का नेतृत्व मौलवी अहमदुल्लाह शाह ने किया था, मक्का पासी इसी फौज के सदस्य थे. इस ऐतिहासिक लड़ाई में विद्रोही सेना विजय हुई थी, जबकि हेनरी लॉरेंस के अगुवाई वाली अंग्रेजी फौज को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था और वह मैदान छोड़कर भाग गए थे. इस लड़ाई को भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है. देश को गौरव से भर देने वाली और क्रांतिकारियों का मनोबल बढ़ाने वाली इस ऐतिहासिक लड़ाई में अन्य भारतीय सैनिकों के साथ मक्का पासी की शहादत भी हुई थी. कहा जाता है कि 10 जून 1857 को यह ऐतिहासिक लड़ाई तब हुई जब हेनरी लॉरेंस के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों की छोटी सी बटालियन अवध से चिनहट जाने के रास्ते बाराबंकी से गुजर रही थी. चिनहट में हेनरी लॉरेंस की सेना का सामना मक्का पार्टी द्वारा इकट्ठा किए गए 200 पासियों की सेना से हुई. पासियों की सेना अंग्रेज सेना पर काल बनकर टूट गई और कई अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया. जब मक्का पासी अंग्रेज सैनिकों के लिए एक बड़ा खतरा बन गए तो कैप्टन हेनरी लॉरेंस ने मक्का पासी को एक बड़ा खतरा मानते हुए और अपने सैनिकों को मौत से बचाने के लिए मक्का पासी को गोली मार दिया. लेकिन वीरगति को प्राप्त होने से पहले मक्का पासी वीरता से लड़े और रणभूमि में उन्होंने उत्कृष्ट पराक्रम का परिचय दिया. उन्होंने अकेले दम पर कई अंग्रेज सैनिकों को मार डाला.

मक्का पासी और उदा देवी

वीरांगना ऊदा देवी के जीवन पर पति मक्का पासी  का व्यापक प्रभाव रहा. जब मक्का पासी नवाब की सेना में शामिल हुए तो उनके साहस और पराक्रम से प्रेरणा लेकर ही उदा देवी भी बेगम हजरत महल के महिला बटालियन में शामिल हुई थीं. इतना ही नहीं, पति के बलिदान का बदला लेने के लिए उन्होंनेे सिकंदर बाग में 32 अंग्रेज अफसरों और सैनिकों को मौत के घाट उतार कर त्याग बलिदान और वीरता के लिए अपना नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित करवा लिया.


References;

State of Justice In India: Issues of Social Justice: edited by Ranabir Samaddar

Dalit Freedom Fighters : By Mohanadāsa Naimiśarāya

Women Heroes and Dalit Assertion in North India: Culture, Identity and Politics: By Badri Narayan

Mutiny at the Margins: New Perspectives on the Indian Uprising of 1857

1857 Ki Rajkiranti : Vichar Aur Vishleshan :By Karmendu Śiśira

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