Last Updated on 07/03/2023 by Sarvan Kumar
भारत में हजारों जातियां निवास करती हैं, जिन्हें संवैधानिक व्यवस्था के तहत अगड़ी जाति, पिछड़ी जाति, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है. अगड़ी जातियों में वे जातियाँ शामिल हैं जो सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक आधार पर अन्य जातियों से आगे मानी जाती हैं. ब्राह्मण, कायस्थ और राजपूत जातियों को अगड़ी जातियों में गिना जाता है. यहाँ हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि ब्राह्मण, कायस्थ और राजपूत में श्रेष्ठ कौन है?
ब्राह्मण, कायस्थ और राजपूत में श्रेष्ठ कौन है?
श्रेष्ठता के कई मापदंड हो सकते हैं, उन्हीं में से एक है वरिष्ठता या श्रेष्ठता. ऋग्वेद के पुरुषसूक्त के अनुसार ब्राह्मण वैदिक ईश्वर (ब्रह्मा) के मुख से, राजन्य अर्थात क्षत्रिय भुजाओं से, वैश्य उरु से, शूद्र पैरों से उत्पन्न हुए हैं. कालांतर में जब धर्मराज यमराज को पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने के लिए एक योग्य सहायक की आवश्यकता पड़ी तो उन्होंने ब्रह्मा जी से आग्रह किया. फिर चार वर्णों की रचना के बाद भगवान ब्रह्मा ने अपने शरीर से महाराज चित्रगुप्त की रचना की. महाराज चित्रगुप्त के वंशज कायस्थ जाति में विकसित हुए. राजपूतों के सन्दर्भ में कहा जाता है कि राजपूत शब्द की उत्पत्ति सर्वप्रथम छठी शताब्दी ई. में हुई. राजपूतों ने 6ठी शताब्दी ईस्वी से 12वीं सदी के बीच भारतीय इतिहास में एक प्रमुख स्थान प्राप्त किया था. इस प्रकार वरिष्ठता के आधार पर ब्राह्मण श्रेष्ठ प्रतीत होते हैं. लेकिन केवल वरिष्ठता को ही श्रेष्ठता का आधार मान लेना उचित नहीं है. इसलिए हमें इस चर्चा को आगे बढ़ाना चाहिए. शरीर के विभिन्न अंगों से भिन्न-भिन्न वर्णों की उत्पत्ति का अर्थ सांकेतिक है. ब्राह्मणों का कार्य मुख से संबंधित है, अर्थात उनका परम कर्तव्य लोगों को ज्ञान और उपदेश देना है. बाहु शक्ति का प्रतीक हैं, इसलिए क्षत्रियों (राजपूतों) का मुख्य कार्य शक्ति के बल पर मानव जाति की रक्षा करना है. वर्ण-व्यवस्था में ब्राह्मण बौद्धिक शक्ति का अधिकारी है, लेकिन शासन और आर्थिक शक्ति से वंचित है. कायस्थ समुदाय अपनी बौद्धिक क्षमता और प्रशासनिक कौशल के लिए प्रसिद्ध है. इनमें ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों के गुण पाए जाते हैं. ब्राह्मणों में भी कई वर्ग है जिसे मार्शल (योद्धा) माना जाता है. ब्राह्मणों में भी कई समूह ऐसे हैं जिन्हें मार्शल (योद्धा) माना जाता है. वर्तमान संदर्भ में बात करें तो ब्राह्मण केवल अध्ययन और धार्मिक कार्यों तक ही सीमित नहीं है. न ही राजपूतों का कार्य केवल क्षत्रिय दायित्वों का निर्वाह करना है. न ही कायस्थ केवल प्रशासनिक कार्यों में लगे हैं. आधुनिक काल में कोई भी जाति अपनी प्रतिभा और योग्यता के अनुसार किसी भी क्षेत्र में काम करने के लिए स्वतंत्र है. धर्म, संस्कृति, कला, साहित्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, राजनीति, संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में ब्राह्मणों, कायस्थों और राजपूतों ने बहुत बड़ा योगदान दिया है. ये तीनों जातियाँ अपने-अपने स्थान पर श्रेष्ठ हैं!