
Last Updated on 03/12/2022 by Sarvan Kumar
भारतीय समाज की सामाजिक संरचना जटिल है. विभिन्न धार्मिक समूह और जातियाँ भारतीय समाज के महत्वपूर्ण घटक हैं. हम भले ही विविधता में एकता का दावा करते रहें, लेकिन असल में जब दो समुदायों या जातियों के बीच हितों का टकराव होता है तो वे एक-दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं. आइए इसी क्रम में जानते हैं कि भूमिहारों का दुश्मन कौन हैं?
भूमिहारों का दुश्मन कौन हैं?
आगे बढ़ने से पहले यहां यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि दुश्मन का अर्थ केवल शत्रु या जान के दुश्मन से नहीं है. दुश्मन का अर्थ विरोधी या प्रतिद्वंद्वी भी होता है. भूमिहार मुख्य रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में निवास करने वाली एक अत्यंत ही प्रभावशाली जमीदार कृषक जाति है. आइए अब निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं से भूमिहारों के दुश्मनों या प्रतिद्वंद्वियों के बारे में समझने का प्रयास करते हैं-
भूमिहार के दुश्मन भूमिहार
एक जाति के भीतर भी कई प्रकार के मतभेद होते हैं. इन मतभेदों के कारण एक जाति के भीतर कई गुट बन जाते हैं और जातिगत एकता नहीं बन पाती है. एकता के अभाव में वह समाज प्राय: अपने सामूहिक लक्ष्य को प्राप्त करने में असमर्थ रहता है और कई बार अपने साझा हितों की रक्षा नहीं कर पाता. इसीलिए अन्य जातियों के की तरह भूमिहार समाज के लोग भी कहते हैं- “भूमिहार हीं भूमिहार का दुश्मन हैं.”
नक्सली संगठन
यहां बिहार के सवर्णों और बड़े व मध्यम वर्ग के किसानों के भाकपा माले नामक नक्सली संगठन से खूनी संघर्ष का जिक्र करना जरूरी है. एक समय भूमिहार जाति के किसान व जमींदार भाकपा माले नामक नक्सली संगठन के अत्याचारों से परेशान थे. अक्सर माले जैसे प्रतिबंधित संगठन, जिसमें कई दलित जातियों के लोग शामिल थे, किसी भी जमींदार की जमीन पर लाल झंडे लगा देते थे और हिंसक घटनाओं को अंजाम देते थे. नक्सलियों का मुकाबला करने के लिए भूमिहार जाति के लोगों ने रणवीर सेना नामक एक जातीय सेना का गठन किया था. कई सालों तक नक्सलियों और रणवीर सेना के बीच खूनी संघर्ष चलता रहा जिसमें दोनों पक्षों के सैकड़ों लोग मारे गए.
भूमिहार और पिछड़ी जाति
भूमिहार और पिछड़ी जातियों में खूनी संघर्ष
बिहार की धरती जातीय संघर्ष के खून से लाल होती रही हैं. यादव, कुर्मी और कुशवाहा– बिहार के तीन प्रमुख ओबीसी जातियां हैं. यहां पर पारसबीघा और दोहिया कांड (1979-80) का उल्लेख करना जरूरी है जिसमें भूमिहार और यादव जाति के लोग मारे गए थे.
वहीं, अफसर नरसंहार बिहार के नवादा और शेखपुरा क्षेत्र में भूमिहारों और कुर्मी-कोइरी जाति के बीच लंबे समय से चल रहे जातिगत युद्ध का एक हिस्सा था.
भूमिहार और राजपूत
भूमिहार और राजपूत बिहार की प्रमुख सवर्ण जातियाँ हैं. 1947 से 1967 तक, पिछड़ी जातियों और दलितों की बड़ी आबादी के बावजूद, बिहार कांग्रेस में उच्च जातियों का वर्चस्व था. उस समय देश की राजनीति में कांग्रेस पार्टी का बोलबाला था. कांग्रेस में वर्चस्व होने का मतलब सत्ता में वर्चस्व होना था. वर्चस्व की इस लड़ाई में भूमिहार और राजपूत कई बार आमने-सामने आ चुके हैं.
भूमिहार और मुसलमान
कई जगहों पर भूमिहारों और मुसलमानों के बीच वर्चस्व की लड़ाई हुई है. वर्ष 2005 में मुख्तार अंसारी पर पूर्वांचल में भूमिहारों के बड़े नेता के रूप में उभरे भाजपा के तत्कालीन विधायक कृष्णानंद राय की हत्या का आरोप लगा था.
यादव-कुर्मी बनाम भूमिहार
1990 में बिहार की राजनीति में लालू यादव के उदय के बाद आज तक कोई भी स्वर्ण समाज का व्यक्ति मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है. लालू यादव और राबड़ी देवी के बाद कई सालों तक बिहार के मुख्यमंत्री का पद संभाल रहे नीतीश कुमार कुर्मी जाति से आते हैं. बिहार की राजनीति में कुर्मी और यादव जातियों के लोगों का दबदबा है और ये दोनों जातियां भूमिहारों की राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रही हैं.
References:
•https://www.bhaskar.com/article/BIH-history-of-ranveer-sena-3349663.html
•https://www.telegraphindia.com/india/12-shot-dead-in-bihar-midnight-massacre/cid/895371
•https://www.bbc.com/hindi/india-48094938
•https://www.aajtak.in/india-today-plus/rajya/story/why-bhumihar-caste-is-important-in-up-politics-1263370-2021-05-29

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